खजुराहो। छतरपुर जिले के विश्व पर्यटन स्थल खजुराहो मंदिर परिसर में अतिथि देवो भव:' स्लोगन का मखौल उड़ता दिखाई दिया है।
खजुराहो के यूनेस्को साइट वेस्टर्न ग्रुप ऑफ टेम्पल्स में मंदिर तक पहुचने के लिए विदेशी पर्यटकों को परेशान होना पड़ रहा है जबकि खजुराहो के वेस्टर्न ग्रुप ऑफ टेम्पल्स देखने के लिए विदेशी पर्यटक को 500 रुपएका शुल्क चुकाना पड़ता है, लेकिन जब कोई दिव्यांग पर्यटक इन मंदिरों को देखने के लिए सात समुंदर पार कर खजुराहो पहुंचता है तो उसे सुविधा के नाम पर हिकारत और असुविधा झेलनी पड़ती है।
इटली से खजुराहो आया 11 सदस्यीय विदेशी दल में आधा दर्जन बुजुर्ग महिला और पुरुष दिव्यांग पर्यटक थे। खजुराहो के इन मंदिरों तक पहुंचने के लिए सीढ़ियां एकमात्र साधन थीं। मंदिरों की ऊंचाई भी काफी थी। भारतीय पुरातत्व विभाग ने इन दिव्यांग पर्यटकों के लिए किसी भी तरह की सहायता मुहैया नहीं कराई थी जबकि नियम बनाता है कि इस तरह के दिव्यांग पर्यटकों को सुविधा मुहैया कराई जाए ताकि उन्हें कोई किसी भी तरह की परेशानी न हो।
विश्व स्तर के इन मंदिरों में दिव्यांग पर्यटकों के लिए किसी भी प्रकार का रैंप सुविधा या टोचिंग की व्यवस्था नहीं है। दिव्यांग ग्रुप को मंदिरों के ऊपर पहुंचने इन व्हील चेयरों के बलबूते पहुंचना नामुमकिन था, क्योंकि वहां रैंप नहीं था।
एस्कार्ट को अपने बलबूते लोगों के सहयोग से बुजुर्ग दिव्यांग पर्यटकों को उठाकर मंदिर के प्लेटफार्म तक ले जाना पड़ा। इन लोकल लोगों का इंतजाम अकस्मात ही ट्रेवल कंपनी को पैसे देकर करना पड़ा।