भोपाल। मध्यप्रदेश में पदस्थ भारतीय प्रशासनिक सेवा की अधिकारी दीपाली रस्तोगी के एक अंग्रेजी अखबार में लिखे लेख ने प्रदेश में एक बार फिर विवादों को हवा दे दी है।
अपने लेख 'द फिलॉसाफी ऑफ पॉवर एंड प्रेस्टीज' में श्रीमती रस्तोगी ने आला प्रशासनिक अधिकारियों की कार्यप्रणाली को सवालों के घेरे में लिया है। इसके पहले वे केंद्र सरकार की स्वच्छ भारत योजना के तहत शौचालय निर्माण पर भी सवाल उठाकर विवादों में आ चुकी हैं। इसके लिए उन्हें कारण बताओ नोटिस भी जारी किया गया था।
अपने हालिया लेख में श्रीमती रस्तोगी ने लिखा है- आईएएस अधिकारियों का सबसे बड़ा गुण ये माना जाने लगा है कि वे अपने नेता की इच्छा से काम करें। सबसे अच्छा अधिकारी वह है जिसका अपना कोई मत नहीं हो और अगर हो भी तो वह उसे अपने तक सीमित रखे।
उन्होंने लिखा है कि ज्यादातर प्रशासनिक अधिकारी अब खुद को एक सुरक्षित घेरे में रखने लगे हैं, उन्हें कुछ भी बोलने के पहले अपने शब्दों को तौलना पड़ता है और ज्यादातर अधिकारी तो संवेदनशील मामलों पर अब बोलना ही पसंद नहीं करते। अधिकारी खुद को ठगा हुआ महसूस करते हैं, वह वो हैं जो अपनी रीढ़ की हड्डी को खत्म कर दें और वही बोलें जो उनके आका सुनना पसंद करते हैं। इस संबंध में श्रीमती रस्तोगी से चर्चा करने की कोशिश की गई, लेकिन उनसे संपर्क नहीं हो सका।
वर्ष 1994 बैच की मध्यप्रदेश कैडर की अधिकारी श्रीमती रस्तोगी के पति और आईएएस मनीष रस्तोगी ने पिछले दिनों प्रदेश में ई-टेंडरिंग घोटाले का खुलासा किया था। इसके बाद रस्तोगी का तबादला हो गया था। ऐसे में श्रीमती रस्तोगी के इस लेख ने एक बार फिर प्रदेश में राजनीतिक विवाद को जन्म दे दिया है।
भाजपा प्रदेश प्रवक्ता रजनीश अग्रवाल ने इस बारे में पूछे जाने पर कहा कि अखिल भारतीय सेवा अधिकारियों के लिए अपनी आचरण संहिता है। यदि वे इसे लांघकर निर्वाचित जनप्रतिनिधियों के मत और नीति की अवहेलना या सार्वजनिक आलोचना कर स्वयं के मत को श्रेष्ठ समझें, तो यह न केवल अहंकार बल्कि लोकतंत्र और संविधान की भावना का खिलवाड़ होगा। संविधान में विधायिका और कार्यपालिका के अधिकार परिभाषित हैं और किसी को अपनी सीमा नहीं लांघनी चाहिए।
वहीं कांग्रेस ने श्रीमती रस्तोगी के लेख के बहाने केंद्र और प्रदेश की भाजपा सरकार पर निशाना साधा है। पार्टी के प्रदेश मीडिया विभाग अध्यक्ष मानक अग्रवाल ने कहा कि श्रीमती रस्तोगी ने जो बातें उठाई, वे सही हैं। भाजपा सरकार अधिकारियों पर दबाव बना रही है और कई अधिकारी सरकार की चापलूसी कर रहे हैं। अधिकारी सही को सही और गलत को गलत नहीं कह पा रहे हैं।
दूसरी ओर प्रदेश के पूर्व मुख्य सचिव कृपाशंकर शर्मा ने श्रीमती रस्तोगी के लेख से सहमति जताते हुए कहा कि वर्तमान में अधिकारी अपनी भूमिका सही तरीके से नहीं निभा रहे और इसी के चलते प्रशासन में गिरावट आ रही है। उन्होंने कहा कि प्रशासनिक सुधार के लिए सबसे जरूरी कदम यही है कि अधिकारी अपने विचार स्वतंत्र तौर पर रख सकें। हालांकि उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि अधिकारियों का अपना एक मंच होता है और उन्हें वहीं अपनी बात कहनी चाहिए।
श्रीमती रस्तोगी ने अपने लेख में हाल ही में केंद्र सरकार द्वारा संयुक्त सचिव के पदों पर सीधी नियुक्ति के फैसले का भी संदर्भ दिया है, इस पर प्रतिक्रिया देते हुए शर्मा ने कहा कि इससे वंशवाद बढ़ेगा और अधिकारियों की जवाबदेही भी सुनिश्चित नहीं होगी। (वार्ता)