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सुनिए मंत्री प्रहलाद पटेल जी, जनता मांग पत्रों के जरिए भीख नहीं अपना हक मांगती है!

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विकास सिंह

, सोमवार, 3 मार्च 2025 (13:30 IST)
लोकतंत्र में क्या सरकार से अपना हक मांगना भीख है? लोकतंत्र में जनता जिसको अपना सांसद और विधायक चुनती है उसको अपनी परेशानी बताना क्या भीख मांगना है? लोकतंत्र में जनता के वोटों से चुनी सरकार क्या उनको भीख देती है? यह कुछ ऐसे सवाल है कि जिसको आज मध्यप्रदेश की जनता पूछ रही है। नेता चुनाव में घर-घर जब जाकर अपने लिए वोटों की भीख मांगते है वह चुनाव के बाद कैसे बदल जाते है, इसकी बानगी भाजपा के दिग्गज नेता और प्रदेश सरकार में मंत्री प्रहलाद पटेल के बयान से अच्छी तरह समझती जा सकती है। जिसमें उन्होंने कहा कि लोगों को सरकार से भीख मांगने की आदत पड़ गई है।

क्या कहा मंत्री प्रहलाद पटेल ने?- भाजपा के दिग्गज नेता और प्रदेश सरकार में पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री प्रह्लाद पटेल ने राजगढ़ जिले के सुठालिया कस्बे में रानी अवंती बाई लोधी की प्रतिमा का अनावरण करने के बाद एक जनसभा को संबोधित करते हुए कहा लोगों को सरकार से ‘‘भीख मांगने’’ की आदत पड़ गई है। इतना ही नहीं पटेल ने कहा कि लोगों को समाज से लेने की आदत पड़ गई है। अब तो वे सरकार से भीख मांगने के भी आदी हो गए हैं। जब भी लोगों के बीच नेता पहुंचते हैं, तो उन्हें काफी संख्या में मांग-पत्र पकड़ा दिया जाता है। नेताओं को मंच पर माला पहनाई जाती है और फिर उन्हें मांग-पत्र थमा दिया जाता है। यह अच्छी आदत नहीं है। उन्होंने लोगों को देश के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वालों से सीख लेने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि भिखारियों की फौज इकट्ठा करना’ समाज को मजबूत नहीं करता, बल्कि उसे कमजोर करता है।

नेताओं को मांग पत्र देना क्या भीख मांगना है?-राजनीति में नेताओं का बनाने वाला पार्टी का कार्यकर्ता और जनता जब अपने बीच अपने नेता को पाती है तो स्वाभाविक रूप से अपनी समस्याओं और जरूरतों को मांग पत्र के रुप में नेताओं तक पहुंचाती है। भाजपा के कार्यकर्ता साफ शब्दों में कहते हैं कि इन मांग पत्रों में अक्सर उन्हीं वादों का जिक्र होता है जिसको नेता चुनाव के समय जनता से करते है और फिर भूल जाते है।

चुनाव के समय नेता जिस तरह गांव-गांव और गली-गली लोगों के दरवाजे पहुंचकर अपने लिए वोट की भीख मांगते है औऱ विकास के तमाम वादे करते है, वह सब चुनाव जीतने के बाद सिर्फ वादे ही रह जाते है। ऐसे में स्थानीय लोग पार्टी के स्थानीय कार्यकर्ताओं के माध्यम से अपनी बात को पहुंचाने के लिए सालों नेताजी  के अपने इलाके में फिर से आने का इंतजार करते है और जब वह पहुंचता है तो स्थानीय कार्यकर्ता पहले फूल मालाओं से नेताजी का स्वागत करता है और फिर जतना की समस्याओं से जुड़ा मांग पत्र देता है। ऐसे में क्या जनता के द्वारा चुने गए जनप्रतिनिधियों को अपना मांग पत्र सौंपना भीख मांगना है, यह नेताओं से ही पूछना चाहिए और नेताओं को इसका जवाब भी देना चाहिए।

जीतू पटवारी ने मंत्री को घेरा- प्रहलाद पटेल के बयान पर पीसीसी चीफ  जीतू पटवारी ने कहा कि जब जनता अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाती है, जब किसान, महिलाएं, युवा और कर्मचारी अपने हक की मांग करते हैं, तो भाजपा उन्हें 'भिखारी' कहकर अपमानित करती है. उन्होंने पूछा, जब BJP कर्ज लेती है, घोटाले करती है और नेता कमीशनखोरी में लिप्त होते हैं, तो क्या वह भी भीख नहीं?
 
उन्होंने कहा कि भाजपा सरकार जनता को भीख मांगने का ताना देती है, लेकिन खुद राज्य को कर्ज के दलदल में धकेल रही है. मध्य प्रदेश सरकार पर आज लाखों करोड़ रुपये का कर्ज है. हर साल सरकार हजारों करोड़ रुपए का नया कर्ज लेती है, जिससे प्रदेश की आर्थिक स्थिति बिगड़ती जा रही है। उन्होंने कहा कि भाजपा सरकार महिलाओं के लिए बड़ी-बड़ी योजनाओं का ऐलान करती है, लेकिन जब महिलाएं अपने हक की मांग करती हैं, तो उसे भीख कहा जाता है. लाड़ली बहना योजना के तहत पहले 1000 रुपये दिए गए, फिर इसे 1250 किया गया, लेकिन चुनाव से पहले 3000 रुपये देने का वादा किया गया था. अब जब महिलाएं अपने वादे पूरे करने की बात कर रही हैं, तो BJP उन्हें 'भिखारी' कह रही है।

उन्होंने कहा कि किसानों के लिए पैसा नहीं, लेकिन चुनाव और उद्योगपतियों के लिए हजारों करोड़ मिल जाते हैं. जब किसान फसल का सही दाम मांगे, तो वह भीख कैसे हो सकती है? जीतू पटवारी ने कहा कि रोजगार, महिला सहायता और किसानों का हक मांगना भीख नहीं है, बल्कि अधिकार है. जनता को अपमानित करने वाली अहंकारी BJP सरकार को सत्ता में रहने का हक नहीं है।

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