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द्रौपदी ने दिया था ये श्राप, वर्ना नहीं मरता घटोत्कच

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अनिरुद्ध जोशी

महाभारत के कई श्राप और वरदान प्रसिद्ध हैं। जैसे अम्बा ने दिया था भीष्म को श्राप, पांडु को दिया थश एक ऋषि ने श्राप, कर्ण को परशुरामजी ने दिया था श्राप, अर्जुन को उर्वशी ने, श्रीकृष्ण को गांधारी ने, अश्वत्थापा को श्रीकृष्ण ने, दुर्योधन को महर्षि मैत्रेय ने, राजा परीक्षित को शमीक ऋषि के पुत्र ऋंगी ने दिया था श्राप उसी प्रकार द्रौपदी ने हिडिम्बा के पुत्र घटोत्कच को एक श्राप दिया था।
 
भीम पुत्र घटोत्कच की चर्चा उनके विशालकाय शरीर को लेकर और युद्ध में कोहराम मचाने को लेकर होती है। कर्ण ने अपने अमोघास्त्र का प्रयोग दुर्योधन के कहने पर भीम पुत्र घटोत्कच पर किया था जबकि वह इसका प्रयोग अर्जुन पर करना चाहता था। यह ऐसा अस्त्र था जिसका वार कभी खाली नहीं जा सकता था। लेकिन वरदान अनुसार इसका प्रयोग एक बार ही किया जा सकता था। यदि कर्ण यह कार्य नहीं करता तो युद्ध का परिणाम कुछ और होता।
द्रौपदी ने घटोत्कच को शाप दिया : मान्यता अनुसार जब घटोत्कच पहली बार अपने पिता भीम के राज्य में आया तो अपनी मां (हिडिम्बा) की आज्ञा के अनुसार उसने द्रौपदी को कोई सम्मान नहीं दिया। द्रौपदी को अपमान महसूस हुआ और उसे बहुत गुस्सा आया। वह उस पर चिल्लाई कि वह एक विशिष्ट स्त्री है, वह युधिष्ठिर की रानी है, वह ब्राह्मण राजा की पुत्री है तथा उसकी प्रतिष्ठा पांडवों से कहीं अधिक है। और उसने अपनी दुष्ट राक्षसी मां के कहने पर बड़ों, ऋषियों और राजाओं से भरी सभा में उसका अपमान किया है। जा दुष्‍ट तेरा जीवन बहुत छोटा होगा तथा तू बिना किसी लड़ाई के मारा जाएगा।
 
 
घटोत्कच के एक पुत्र का नाम बर्बरीक और दूसरे का नाम अंजनपर्वा था। भीम के पुत्र घटोत्कच का विवाह दैत्यराज मुरा की बेटी काम्कंठ्का से हुआ था। इस काम्कंठ्का को भगवान् श्री कृष्ण ने वरदान दिया था की तेरी कोख से एक महावीर पुत्र जन्म लेगा जिसको युद्ध में कोई परास्त नहीं कर सकेगा,वो सर्वशक्तिमान होगा। भीम पुत्र घटोत्कच का पुत्र बर्बरीक दानवीर था। बर्बरीक दुनिया के सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर थे। अर्जुन और कर्ण से भी बड़े धनुर्धर थे। बर्बरीक के लिए तीन बाण ही काफी थे जिसके बल पर वे कौरवों और पांडवों की पूरी सेना को समाप्त कर सकते थे। यह बात जानकर श्रीकृष्ण से उससे दान में उसका शीश मांग लिया। बाद में श्रीकृष्‍ण ने कहा कि कलयुग में तुम मेरे नाम से पूजे जाओगे। वर्तमान में उन्हें खाटू श्याम कहते हैं।

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