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महाभारत युद्ध के पहले दिन हुआ था ये भारी फेरबदल, मारे गए थे करीब 10 हजार सैनिक

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अनिरुद्ध जोशी

महाभारत का युद्ध आज से लगभग 5 हजार 150 वर्ष पूर्व हुआ था। कलियुग के आरंभ होने से 6 माह पूर्व मार्गशीर्ष शुक्ल 14 को महाभारत का युद्ध का आरंभ हुआ था, जो 18 दिनों तक चला था। हरियाणा राज्य के कुरुक्षेत्र में लड़े गए इस युद्ध में लाखों लोगों की जान चली गई थी। इस युद्ध में कौरवों की ओर से 11 और पांडवों की 7 अंक्षोहिणी अर्थात 18 अंक्षोहिणी सेना ने लड़ाई लड़ी थी। इस युद्ध में 18 ही योद्धा जीवित बचे थे। माना जाता है कि महाभारत युद्ध में एकमात्र जीवित बचा कौरव युयुत्सु था और 24,165 कौरव सैनिक लापता हो गए थे। युद्ध के पहले दिन का हाल जानिए..
 
 
महाभारत का प्रथम दिन का युद्ध :
-इस युद्ध का हाल धृतराष्ट्र को संजय सुना रहे थे। एक ओर कौरव सेना खड़ी थी तो दूसरी ओर पांडवों की सेना।
 
- युद्ध में श्रीकृष्ण-अर्जुन अपने रथ के साथ दोनों ओर की सेनाओं के मध्य खड़े हो गए थे और भगवान श्रीकृष्‍ण मोहग्रस्त अर्जुन को गीता का 'कर्मयोग' का उपदेश दे रहे थे। अर्जुन फिर भी युद्ध से विमुख होकर पलायन करने की सोच रहा था। तब श्रीकृष्ण ने अर्जुन को अपना विराट रूप दिखाया। तब अर्जुन का मोह दूर हो गया तथा वे युद्ध करने के लिए तैयार हो गए।
 
- युद्ध से पूर्व युधिष्ठिर रथ से उतरकर पैदल ही पितामह भीष्म के निकट पहुंचे और उन्होंने उनके चरणस्पर्श किए। भीष्म ने युधिष्ठिर को विजय का आर्शीवाद दिया। इसी प्रकार युधिष्ठिर ने कृपाचार्य और द्रोणाचार्य के भी चरणस्पर्श किए। दोनों ने उन्हें विजय का आर्शीवाद दिया। युधिष्ठिर की धर्म-नीति को देखकर धृतराष्ट्र का पुत्र युयुत्सु बहुत प्रभावित हुआ।
 
-इसी दौरान भीष्म पितामह ने सभी योद्धाओं को कहा कि अब युद्ध शुरू होने वाला है। इस समय जो भी योद्धा अपना खेमा बदलना चाहे वह स्वतंत्र है कि वह जिसकी तरफ से भी चाहे युद्ध करे। इस घोषणा के बाद धृतराष्ट्र का पुत्र युयुत्सु डंका बजाते हुए कौरव दल को छोड़ पांडवों के खेमे में चले गया।
 
- युयुत्सु तो कौरवों की ओर से थे। वे कौरवों के भाई थे लेकिन उन्होंने चीरहरण के समय कौरवों का विरोध कर पांडवों का साथ दिया था। बाद में जब युद्ध हुआ तो वह ऐन युद्ध के समय युधिष्ठिर के समझाने पर पांडवों के दल में शामिल हो गए थे। अपने खेमे में आने के बाद युधिष्ठिर ने एक विशेष रणनीति के तहत युयुत्सु को सीधे युद्ध के मैदान में नहीं उतारा बल्कि उनकी योग्यता को देखते हुए उसे योद्धाओं के लिए हथियारों और रसद की आपूर्ति व्यवस्था का प्रबंध देखने के लिए नियुक्त किया।
 
- श्रीकृष्ण के उपदेश के बाद अर्जुन ने देवदत्त नामक शंख बजाकर युद्ध की घोषणा की। देखते-ही-देखते घमासान युद्ध छिड़ गया। भीष्म के सामने पांडव सेना में हाहाकार मच गया। भीम ने दु:शासन पर आक्रमण किया। अभिमन्यु ने भीष्म का धनुष तथा रथ का ध्वजदंड काट दिया। संध्या होते ही युद्ध समाप्ति की घोषणा की गई।
 
- युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण से कहा कि- "आज के युद्ध से पितामह की अजेयता सिद्ध हो गई है।" श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को धैर्य बँधाया। इस दिन पांडव किसी भी मुख्य कौरव वीर को नहीं मार पाए।
 
- पहले दिन की समाप्ति पर पांडव पक्ष को भारी नुकसान उठाना पड़ा। विराट नरेश के पुत्र उत्तर और श्वेत क्रमशः शल्य और भीष्म के द्वारा मारे गए। भीष्म द्वारा उनके कई सैनिकों का वध कर दिया गया। कहते हैं कि इस दिन लगभग 10 हजार सैनिकों की मृत्यु हुई थी।
 
कौन मजबूत रहा:- पहले दिन पांडव पक्ष को नुकसान उठाना पड़ा और कौरव पक्ष मजबूत रहा।
 

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