Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

महाभारत में मायावी हिडिम्बा और उसके पुत्र घटोत्कच की 5 रोचक बातें

हमें फॉलो करें महाभारत में मायावी हिडिम्बा और उसके पुत्र घटोत्कच की 5 रोचक बातें

अनिरुद्ध जोशी

, गुरुवार, 23 अप्रैल 2020 (14:24 IST)
हिडिम्बा राक्षस जाती की मायावी महिला थी। उसके पुत्र का नाम घटोत्कच था। दोनों का ही महाभारत में बहुत ही महत्वपूर्ण कार्य रहा है। आओ जानते हैं दोनों के संबंध में 5 रोचक बातें।
 
 
1. हिडिम्बा भीम का विवाह : पांचों पांडव लक्षागृह से बचने के बाद एक रात जंगल में सो रहे थे और भीम पहरा दे रहे थे। जिस जंगल में सो रहे थे वह जंगल नरभक्षी राक्षसराज हिडिम्ब का था। हिडिम्ब ने हिडिम्बा को जंगल में मानव का शिकार करने के लिए भेजा। हिडिम्ब जब जंगल में गई तो उससे भीम को पहरा देते हुए देखा और बाकी पांडव अपनी माता कुंती के साथ सो रहे थे। भीम को देखकर हिडिम्बा मोहित हो गई और मन ही मन उससे विवाह करने का सोचने लगी। वह भेष बदलकर भीम के समक्ष प्रस्तुत हो गई और तभी वहां हिडिम्ब आ धमका।
 
 
उसने हिडिम्बा से कहा कि अकेले ही इस हष्ठ-पुष्ठ मानव को खाना चाहोगी क्या? हिडिम्ब ने भीम पर हमला कर दिया। हिडिम्बा ने इस हमले में भीम का साथ दिया। फिर भीम और हिडिम्ब में भयानक युद्ध हुआ। अंत में हिडिम्ब मारा गया।
 
 
हिडिम्ब के मरने पर कुंती सहित सभी पांडव लोग वहां से प्रस्थान की तैयारी करने लगे, इस पर हिडिम्बा पांडवों की माता कुंती के चरणों में गिरकर प्रार्थना करने लगी, 'हे माता! मैंने आपके पुत्र भीम को अपने पति के रूप में स्वीकार कर लिया है। आप लोग मुझे कृपा करके स्वीकार कर लीजिए। यदि आप लोगों ने मुझे स्वीकार नहीं किया तो मैं इसी क्षण अपने प्राणों का त्याग कर दूंगी।'
 
 
कुंती ने युधिष्ठिर की ओर देखा और पूछा, धर्म इस संबंध में क्या कहता हैं पुत्र? युधिष्ठिर ने कहा कि माते! आपका आदेश ही धर्म है। यह सुनकर कुंती ने हिडिम्बा से कहा कि मेरा पुत्र सदैव तुम्हारे साथ नहीं रह सकता।...इस पर हिडिम्बा ने कहा कि मुझे मंजूर है विवाह के बाद पुत्र प्राप्ति के बाद वह स्वतंत्र है।...यह सुनकर कुंती ने भीम के हाथ में हिडिम्बा का हाथ रख दिया।
 
 
2. हिडिम्बा का पुत्र घटोत्कच : हिडिम्बा और भीम आनन्दपूर्वक जीवन व्यतीत करने लगे। एक वर्ष व्यतीत होने पर हिडिम्बा का पुत्र उत्पन्न हुआ। उस पुत्र के सिर पर केश (उत्कच) न होने के कारण उसका नाम घटोत्कच रखा गया। वह अत्यन्त मायावी निकला और जन्म लेते ही बड़ा हो गया।
 
 
3. हिडिम्बा ने सौंपा अपने पुत्र को : हिडिम्बा ने अपने पुत्र को पाण्डवों के पास ले जा कर कहा, 'यह आपके भाई की सन्तान है अत: यह आप लोगों की सेवा में रहेगा।' इतना कहकर हिडिम्बा वहां से चली गई। घटोत्कच श्रद्धा से पाण्डवों तथा माता कुन्ती के चरणों में प्रणाम कर के बोला, 'अब मुझे मेरे योग्य सेवा बताएं? उसकी बात सुनकर कुन्ती बोली, 'तू मेरे वंश का सबसे बड़ा पौत्र है। समय आने पर तेरी सेवा अवश्य ली जाएगी।'
 
 
इस पर घटोत्कच ने कहा, 'आप लोग जब भी मुझे स्मरण करेंगे, मैं आप लोगों की सेवा में उपस्थित हो जाऊंगा।' 
 
कहते हैं कि हिडिम्बा मूल रूप से नागालैंड की राजकुमारी थी। लेकिन पुत्र के जन्म के बाद पुत्र को पांडवों को सौंपकर वो हिमाचल प्रदेश के मनाली जिले में रहने लगी थी। यहीं पर उनका राक्षस योनी से दैवीय योनी में परिवर्तन हुआ था। इसीलिए यहां पर हिडिम्बा का एक प्राचीन मंदिर भी है। मंदिर के भीतर एक प्राकृतिक और पुराततन चट्टान है जिसे देवी हिडिम्बा का स्थान माना जाता है। इसी चट्टान पर देवी हिडिम्बा के पैरों के चिन्ह मौजूद हैं। चटटान को स्थानीय बोली में 'ढूंग कहते हैं इसलिए देवी को 'ढूंगरी देवी कहा जाता है।
 
 
4. घटोत्कच का पुत्र : घटोत्कच के एक पुत्र का नाम बर्बरीक और दूसरे का नाम अंजनपर्वा था। भीम के पुत्र घटोत्कच का विवाह दैत्यराज मुरा की बेटी काम्कंठ्का से हुआ था। इस काम्कंठ्का को भगवान् श्री कृष्ण ने वरदान दिया था की तेरी कोख से एक महावीर पुत्र जन्म लेगा जिसको युद्ध में कोई परास्त नहीं कर सकेगा,वो सर्वशक्तिमान होगा। भीम पुत्र घटोत्कच का पुत्र बर्बरीक दानवीर था। बर्बरीक दुनिया के सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर थे। अर्जुन और कर्ण से भी बड़े धनुर्धर थे। बर्बरीक के लिए तीन बाण ही काफी थे जिसके बल पर वे कौरवों और पांडवों की पूरी सेना को समाप्त कर सकते थे। यह बात जानकर श्रीकृष्ण से उससे दान में उसका शीश मांग लिया। बाद में श्रीकृष्‍ण ने कहा कि कलयुग में तुम मेरे नाम से पूजे जाओगे। वर्तमान में उन्हें खाटू श्याम कहते हैं।
 
 
5. घटोत्कच की मृत्यु : द्रौपदी के शाप के कारण ही महाभारत के युद्ध में घटोत्कच कर्ण के हाथों मारा गया था। भीम पुत्र घटोत्कच की चर्चा उनके विशालकाय शरीर को लेकर और युद्ध में कोहराम मचाने को लेकर होती है। कर्ण ने अपने अमोघास्त्र का प्रयोग दुर्योधन के कहने पर भीम पुत्र घटोत्कच पर किया था जबकि वह इसका प्रयोग अर्जुन पर करना चाहता था। यह ऐसा अस्त्र था जिसका वार कभी खाली नहीं जा सकता था। लेकिन वरदान अनुसार इसका प्रयोग एक बार ही किया जा सकता था। यदि कर्ण यह कार्य नहीं करता तो युद्ध का परिणाम कुछ और होता।

 
संदर्भ : महाभारत आदिपर्व

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

पराशर ऋषि के बारे में जानिए 8 खास बातें