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महाभारत के प्रमुख पात्रों का परिचय भाग 1

हमें फॉलो करें महाभारत के प्रमुख पात्रों का परिचय भाग 1

अनिरुद्ध जोशी

महाभारत महाभारत में यूं तो हजारों किरदार हैं, लेकिन यहां प्रस्तुत है उन लोगों के बारे में संक्षिप्त परिचय जिनका महाभारत के युद्ध से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से संबंध रहा है। वह भी जिनकी महाभारत में ज्यादा चर्चा होती है।
 
कृष्ण- वसुदेव और देवकी की 8वीं संतान और भगवान विष्णु के 8वें अवतार जिन्होंने अपने दुष्ट मामा कंस का वध किया था। भगवान कृष्ण ने अर्जुन को कुरुक्षेत्र युद्ध के प्रारंभ में गीता उपदेश दिया था। कृष्ण की 8 पत्नियां थीं, यथा रुक्मणि, जाम्बवंती, सत्यभामा, कालिंदी, मित्रबिंदा, सत्या, भद्रा और लक्ष्मणा। श्रीकृष्ण के लगभग 80 पुत्र थे। उनमें से खास के नाम हैं- प्रद्युम्न, साम्ब, भानु, सुबाहू आदि। साम्ब के कारण ही कृष्ण कुल का नाश हो गया था। साम्ब ने दुर्योधन की पुत्री लक्ष्मणा से विवाह किया था।
 
भीष्म- 8 वसुओं में से एक और शांतनु एवं गंगा के पुत्र भीष्म का नाम देवव्रत था। जब देवव्रत ने अपने पिता की प्रसन्नता के लिए आजीवन ब्रह्मचारी रहने का प्रण लिया, तब से उनका नाम भीष्म हो गया। उनके पिता की दूसरी पत्नी का नाम सत्यवती था, जो निषाद कन्या थीं।
 
द्रोण- भारद्वाज ऋषि की संतान थे। द्रोणाचार्य का विवाह कृपाचार्य की बहन कृपि से हुआ था जिससे उनको एक पुत्र मिला जिसका नाम अश्वत्थामा था। गुरु द्रोणाचार्य ने शपथ ली थी कि मैं हस्तिनापुर के राजकुमारों को ही शस्त्र विद्या सिखाऊंगा इसीलिए उन्होंने एकलव्य को अपना शिष्य बनाने से इंकार कर दिया था। युद्ध में द्रौपदी के भाई धृष्टद्युम्न ने एक छल से द्रोणाचार्य का वध कर दिया था।
 
धृतराष्ट्र- शांतनु और सत्यवती के पुत्र विचित्रवीर्य की दूसरी पत्नी अम्बिका से धृतराष्ट्र का जन्म हुआ। धृतराष्ट्र जन्म से ही अंधे थे। उनका विवाह गांधार प्रदेश की राजकुमारी गांधारी से हुआ। उनके दुर्योधन सहित 100 पुत्र और एक पुत्री थी। युयुत्सु भी उनका ही पुत्र था, जो एक दासी से जन्मा था।
 
पांडु- शांतनु और सत्यवती के पुत्र विचित्रवीर्य की पहली पत्नी अ‍म्बालिका से पांडु का जन्म हुआ। पांडु का विवाह कुंती और माद्री से हुआ। श्राप के चलते दोनों से ही उनको कोई पुत्र नहीं हुआ तब कुंती और माद्री ने मंत्रशक्ति के बल से देवताओं का आह्‍वान किया और 5 पुत्रों को जन्म दिया। कुंती ने विवाह पूर्व भी एक पुत्र को जन्म दिया था जिसका नाम कर्ण था। इस तरह दोनों के मिलाकर 6 पुत्र थे।
 
विदुर- महर्षि अंगिरा, राजा मनु के बाद विदुर ने ही राज्य और धर्म संबंधी अपने सुंदर विचारों से ख्याति प्राप्त की थी। अम्बिका और अम्बालिका को नियोग कराते देखकर उनकी एक दासी की भी इच्छा हुई। तब वेदव्यास ने उससे भी नियोग किया जिसके फलस्वरूप विदुर की उत्पत्ति हुई। विदुर धृतराष्ट्र के मंत्री किंतु न्यायप्रियता के कारण पांडवों के हितैषी थे। विदुर को उनके पूर्व जन्म का धर्मराज कहा जाता है। जीवन के अंतिम क्षणों में इन्होंने वनवास ग्रहण कर लिया तथा वन में ही इनकी मृत्यु हुई।
 
संजय- संजय के पिता बुनकर थे इसलिए उन्हें सूत पुत्र माना जाता था। उनके पिता का नाम गावल्यगण था। उन्होंने महर्षि वेदव्यास से दीक्षा लेकर ब्राह्मणत्व ग्रहण किया था अर्थात वे सूत से ब्राह्मण बन गए थे। वेदादि विद्याओं का अध्ययन करके वे धृतराष्ट्र की राजसभा के सम्मानित मंत्री भी बन गए थे। कहते हैं कि गीता का उपदेश दो लोगों ने सुना- एक अर्जुन और दूसरा संजय। यहीं नहीं, देवताओं के लिए दुर्लभ विश्वरूप तथा चतुर्भुज रूप का दर्शन भी सिर्फ इन दो लोगों ने ही किया था। संजय हस्तिनापुर में बैठे हुए ही कुरुक्षेत्र में हो रहे युद्ध का वर्णन धृतराष्ट्र को सुनाते हैं। महाभारत युद्ध के पश्चात अनेक वर्षों तक संजय युधिष्ठिर के राज्य में रहे। इसके पश्चात धृतराष्ट्र, गांधारी और कुंती के साथ उन्होंने भी संन्यास ले लिया था। बाद में धृतराष्ट्र की मृत्यु के बाद वे हिमालय चले गए, जहां से वे फिर कभी नहीं लौटे।
 
कर्ण- सूर्यदेव एवं कुंती के पुत्र कर्ण का पालन-पोषण अधिरथ और राधा ने किया था। कर्ण को दानवीर कर्ण के नाम से भी जाना जाता है। कर्ण कवच एवं कुंडल पहने हुए पैदा हुए थे। इंद्र ने उनसे ये कवच और कुंडल दान में मांग लिए थे। छल करने के कारण बदले में इंद्र को अपना अमोघ अस्त्र देना पड़ा था। 'अंग' देश के राजा कर्ण की पहली पत्नी का नाम वृषाली था। वृषाली से उसको वृषसेन, सुषेण, वृषकेत नामक 3 पुत्र मिले। दूसरी सुप्रिया से चित्रसेन, सुशर्मा प्रसेन, भानुसेन नामक 3 पुत्र मिले। माना जाता है कि सुप्रिया को ही पद्मावती और पुन्नुरुवी भी कहा जाता था।
 
युधिष्ठिर- धर्मराज और कुंती के पुत्र युधिष्ठिर के धर्मपिता पांडु थे। ये सत्य वचन बोलने के लिए प्रसिद्ध थे। द्रौपदी से जन्मे युधिष्ठिर के पुत्र का नाम प्रतिविंध्य था। युधिष्ठिर की दूसरी पत्नी देविका थी। देविका से धौधेय नाम का पुत्र जन्मा।
 
अर्जुन- राजा पांडु के धर्मपुत्र और देवराज इंद्र के पुत्र अर्जुन की माता का नाम कुंती था। भगवान श्रीकृष्ण के सखा और उनकी ही बहन सुभद्रा के पति अर्जुन को ही गीता का उपदेश दिया गया था। द्रौपदी से जन्मे अर्जुन के पुत्र का नाम श्रुतकर्मा था। द्रौपदी के अलावा अर्जुन की सुभद्रा, उलूपी और चित्रांगदा नामक 3 और पत्नियां थीं। सुभद्रा से अभिमन्यु, उलूपी से इरावत, चित्रांगदा से वभ्रुवाहन नामक पुत्रों का जन्म हुआ।
 
भीम- पवनदेव और कुंती के पुत्र भीम के धर्मपिता पांडु थे। भीम में 10 हजार हाथियों का बल था। युद्ध में इन्होंने ही सभी कौरवों का वध कर दिया था। द्रौपदी से जन्मे भीमसेन से उत्पन्न पुत्र का नाम सुतसोम था। द्रौपदी के अलावा भीम की हिडिम्‍बा और बलंधरा नामक 2 और पत्नियां थीं। हिडिम्‍बा से घटोत्कच और बलंधरा से सर्वंग का जन्म हुआ।
 
नकुल- अश्विन कुमार और माद्री के पुत्र नकुल के धर्मपिता पांडु थे। मद्रदेश के राजा शल्य नकुल-सहदेव के सगे मामा थे। नकुल ने अश्‍व विद्या और चिकित्सा में भी निपुणता हासिल की थी। द्रौपदी से उनके शतानीक नाम के एक पुत्र भी हुए। द्रौपदी के अलावा नकुल की करेणुमती नामक पत्नी थीं। करेणुमती से निरमित्र नामक पुत्र का जन्म हुआ। करेणुमती चेदिराज की राजकुमारी थीं।
 
सहदेव- अश्विनकुमार और माद्री के पुत्र सहदेव के धर्मपिता पांडु थे। सहदेव पशुपालन शास्त्र, चिकित्सा और ज्योतिष शास्त्र में दक्ष होने के साथ ही त्रिकालदर्शी भी थे। सहदेव की कुल 4 पत्नियां थीं- द्रौपदी, विजया, भानुमति और जरासंध की कन्या। द्रौपदी से श्रुतकर्मा, विजया से सुहोत्र पुत्र की प्राप्ति हुई। इसके अलावा इनके 2 पुत्र और थे जिसमें से एक का नाम सोमक था।
 
कृपाचार्य- हस्तिनापुर के ब्राह्मण गुरु और अश्वत्थामा के मामा। इनकी बहन 'कृपि' का विवाह द्रोणाचार्य से हुआ था। महाभारत के युद्ध में कृपाचार्य बच गए थे, क्योंकि उन्हें चिरंजीवी रहने का वरदान था। कृपाचार्य अश्वत्थामा के मामा और कौरवों के कुलगुरु थे। महाभारत युद्ध में कृपाचार्य कौरवों की ओर से सक्रिय थे। वे आज भी जीवित हैं।
 
युयुत्सु- महाराज धृतराष्ट्र के एक पुत्र युयुत्सु ने पांडवों की ओर से लड़ाई की थी। महाभारत महाकाव्य में 'युयुत्सु' राजा धृतराष्ट्र के वैश्य दासी महिला से उत्पन्न पुत्र थे। माना जाता है कि युयुत्सु के वंशज आज भी मौजूद हैं। महाभारत के युद्ध में युयुत्सु ने पांडवों के लिए हथियारों की आपूर्ति और रखरखाव का कार्य किया था।
 
कृतवर्मा- कृतवर्मा यादव थे और यह भोजराज ह्रदिक के पुत्र तथा कौरव पक्ष के अतिरथी योद्धा थे। मथुरा पर आक्रमण के समय श्रीकृष्ण ने कृतवर्मा को पूर्वी द्वार की रक्षा का भार सौंपा था। कृतवर्मा ने बाण के मंत्री कूपकर्ण को हराया था। श्रीकृष्ण ने कृतवर्मा को हस्तिनापुर भी भेजा था, जहां ये पांडवों, द्रोण तथा विदुर आदि से मिले थे और मथुरा जाकर श्रीकृष्ण को सारा हाल बताया था। कृतवर्मा ने शतधंवा की सहायता करना अस्वीकार किया था। यादवों की आपसी लड़ाई में सात्‍यकि ने कृतवर्मा का सिर धड़ से अलग कर दिया था।
 
सात्यकि- महाभारत युद्ध में सात्यकि पांडवों की ओर से लड़ने वाले यादव योद्धा थे। सात्यकि ने कौरवों के अनेक उच्च कोटि के योद्धाओं को मार डाला जिनमें से प्रमुख जलसंधि, त्रिगर्तों की गजसेना, सुदर्शन, म्लेच्छों की सेना, भूरिश्रवा, कर्णपुत्र प्रसन थे। सात्यकि ने यादवों के झगड़े में कतवर्मा का सिर काट दिया था और वे भी मारे गए थे।
 
जयद्रथ- सिन्धु के राजा और धृतराष्ट्र का दामाद जयद्रथ महाभारत युद्ध में अभिमन्यु के चक्रव्यूह में फंसने के बाद दुर्योधन आदि योद्धाओं के साथ मिलकर उसका वध कर देता है तब अर्जुन सूर्यास्त से पहले जयद्रथ का शीश काटने की शपथ लेता है। श्रीकृष्ण अपनी माया से समय से पहले ही सूर्यास्त कर देते हैं। छुपा हुआ जयद्रथ बाहर निकल आता है तभी सूर्य दिखाई देने लगता है और अर्जुन तत्क्षण उसका शीश उतार देता है।
 
अश्वत्थामा- अश्वत्थामा कौरवों की ओर से लड़े थे। गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा के मस्तक पर अमूल्य मणि विद्यमान थी, जो कि उसे दैत्य, दानव, शस्त्र, व्याधि, देवता, नाग आदि से निर्भय रखती थी। यही कारण था कि उन्हें कोई मार नहीं सकता था। पिता को छलपूर्वक मारे जाने का जानकर अश्वत्थामा दुखी होकर क्रोधित हो गए और उन्होंने ब्रह्मास्त्र का प्रयोग कर दिया जिससे युद्धभूमि श्मशान भूमि में बदल गई। यह देख कृष्ण ने उन्हें 3 हजार वर्षों तक कोढ़ी के रूप में जीवित रहने का शाप दे डाला।
 
दुर्योधन- कौरवों में ज्येष्ठ धृतराष्ट्र एवं गांधारी के 100 पुत्रों में सबसे बड़े दुर्योधन का शरीर वज्र के समान था, बस उसकी जंघा ही कमजोर थी। युद्ध के अंत में भीम ने उसकी जंघा उखाड़कर उसका वध कर दिया था। दुर्योधन के कर्ण की कभी नहीं सुनी। उसने हमेशा अपने मामा शकुनि की ही बातों पर ज्यादा ध्यान दिया। दुर्योधन का विवाह काम्बोज के राजा चन्द्रवर्मा की पुत्री भानुमति से हुआ था। दोनों के 2 संतानें हुईं- एक पुत्र लक्ष्मण था जिसे अभिमन्यु ने युद्ध में मार दिया था और पुत्री लक्ष्मणा जिसका विवाह कृष्ण के जामवंति से जन्मे पुत्र साम्ब से हुआ था।
 
दुःशासन- दुर्योधन का छोटा भाई, जो द्रौपदी को हस्तिनापुर राज्यसभा में बालों से पकड़कर लाया था। कुरुक्षेत्र युद्ध में भीम ने दुःशासन की छाती का रक्त पीकर अपनी प्रतिज्ञा पूरी की थी।
 
शल्य- रघुवंश के शल्य पांडवों के मामाश्री थे लेकिन कौरव भी उन्हें मामा मानकर आदर और सम्मान देते थे। पांडु पत्नी माद्री के भाई अर्थात नकुल और सहदेव के सगे मामा शल्य के पास विशाल सेना थी। जब युद्ध की घोषणा हुई तो नकुल और सहदेव को तो यह 100 प्रतिशत विश्वास ही था कि मामाश्री हमारी ओर से ही लड़ाई लड़ेंगे, लेकिन शल्य को दुर्योधन के प्यार और मान-सम्मान के आगे झुकना पड़ा। उन्होंने कौरव सेना का साथ दिया और वे बाद में कर्ण के सारथी भी बने थे। युद्ध में पांडवों ने शल्य का वध कर दिया था।
 
अभिमन्यु- अर्जुन और सुभद्रा के वीर पुत्र जो कुरुक्षेत्र युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए। दरअसल, अभिमन्यु जब सुभद्रा के गर्भ में थे तभी चक्रव्यूह को भेदना सीख गए थे लेकिन बाद में उन्होंने चक्रव्यूह से बाहर निकलने की शिक्षा कभी नहीं ली। अभिमन्यु श्रीकृष्ण के भानजे थे। उनकी पत्नी का नाम उत्तरा था जिसके गर्भ में परीक्षित पल रहा था। परीक्षित को ही श्रीकृष्ण ने अश्वत्थामा के अस्त्र से बचाया था।
 
शिखंडी- शिखंडी के कारण ही भीष्म का शरीर छलनी हो गया था। यह पूर्व जन्म में अम्बा नामक राजकुमारी था। शिखंडी को उसके पिता द्रुपद ने पुरुष की तरह पाला था तो स्वाभाविक है कि उसका विवाह किसी स्त्री से ही किया जाना चाहिए। ऐसा ही हुआ लेकिन शिखंडी की पत्नी को इस वास्तविकता का पता चला तो वह शिखंडी को छोड़ अपने पिता के घर चली गई। इसी शिखंडी को कृष्ण ने अपने रथ पर आसीन किया और अर्जुन के साथ भीष्म के सामने ला खड़ा किया। भीष्म ने कृष्ण पर युद्ध धर्म के विरुद्ध आचरण करने का आरोप लगाते हुए एक स्त्री पर वार करने से मना कर अपना धनुष नीचे रख दिया। यही समय था जबकि अर्जुन ने शिखंडी की आड़ में अपने बाणों से भीष्म का शरीर छलनी कर दिया।
 
घटोत्कच- राक्षस जाति की हिडिम्बा को पांडु पुत्र भीम से प्रेम हो गया था। उसने अपनी माया से सुंदर शरीर धरकर भीम से विवाह किया और बाद में वह अपने असली रूप में आ गई। हिडिम्बा और भीम का पुत्र घटोत्कच था। घटोत्कच का पुत्र बर्बरीक था। द्रौपदी के शाप के कारण ही महाभारत के युद्ध में घटोत्कच कर्ण के हाथों मारा गया था।
 
बर्बरीक- बर्बरीक महान पांडव भीम के पुत्र घटोत्कच और नागकन्या अहिलवती के पुत्र थे। कहीं-कहीं पर मुर दैत्य की पुत्री 'कामकंटकटा' के उदर से भी इनके जन्म होने की बात कही गई है। बर्बरीक और घटोत्कच के बारे में कहा जाता है कि ये दोनों ही विशालकाय मानव थे। बर्बरीक के लिए 3 बाण ही काफी थे जिसके बल पर वे कौरव और पांडवों की पूरी सेना को समाप्त कर सकते थे। यह जानकर भगवान कृष्ण ने ब्राह्मण के वेश में उनके सामने उपस्थित होकर उनसे दान में छलपूर्वक उनका शीश मांग लिया।
 
बर्बरीक ने कृष्ण से प्रार्थना की कि वे अंत तक युद्ध देखना चाहते हैं, तब कृष्ण ने उनकी यह बात स्वीकार कर ली। फाल्गुन मास की द्वादशी को उन्होंने अपने शीश का दान दिया। भगवान ने उस शीश को अमृत से सींचकर सबसे ऊंची जगह पर रख दिया ताकि वे महाभारत युद्ध देख सकें। उनका सिर युद्धभूमि के समीप ही एक पहाड़ी पर रख दिया गया, जहां से बर्बरीक संपूर्ण युद्ध का जायजा ले सकते थे। आज उन्हें खाटू श्‍याम के नाम से जानते हैं।
 
शकुनि- गांधारी के भाई और दुर्योधन के मामा एवं कौरवों को छल व कपट की राह सिखाने वाले शकुनि उन्हें पांडवों का विनाश करने में पग-पग पर मदद करते थे। शकुनि की युक्ति के ही चलते जुआ खेला गया था और उसके छलपूर्ण पांसे के चलते ही पांडव अपना सबकुछ हार बैठे थे। शकुनि ने ही पांडवों को मरवाने के लिए लाक्षागृह की योजना बनाई थी। शकुनि के एक नहीं, कई कारनामे हैं। शकुनि जितनी नफरत कौरवों से करता था, उतनी ही पांडवों से भी, क्योंकि उसे दोनों की ओर से दुख मिला था। पांडवों को शकुनि ने अनेक कष्ट दिए। भीम ने इसे अनेक अवसरों पर परेशान किया। महाभारत युद्ध में सहदेव ने शकुनि का इसके पुत्र सहित वध कर दिया था।
 
इरावन- अर्जुन और उलूपी के बेटे इरावन या इरावत ने अपने पिता की जीत के लिए खुद की बलि दी थी। बलि देने से पहले उसकी अंतिम इच्छा थी कि वह मरने से पहले शादी कर ले। मगर इस शादी के लिए कोई भी लड़की तैयार नहीं थी, क्योंकि शादी के तुरंत बाद उसके पति को मरना था। इस स्थिति में भगवान कृष्ण ने मोहिनी का रूप लिया और इरावन से न केवल शादी की बल्कि एक पत्नी की तरह उसे विदा करते हुए रोए भी।
 
महर्षि व्यास- महाभारत महाकाव्य के लेखक। पाराशर और सत्यवती के पुत्र। इन्हें कृष्ण द्वैपायन के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि वे कृष्ण वर्ण के थे तथा उनका जन्म एक द्वीप में हुआ था। कहते हैं कि वे आज भी जिंदा हैं।
 
परशुराम- अर्थात परशु वाले राम। वे द्रोण, भीष्म और कर्ण जैसे महारथियों के गुरु थे। वे भगवान विष्णु का षष्ठम अवतार हैं। कहते हैं कि वे आज भी जिंदा हैं।
 
एकलव्य- द्रोण का एक महान शिष्य जिससे गुरु दक्षिणा में द्रोण ने उसका अंगूठा मांगा था। एकलव्य एक राजपुत्र थे और उनके पिता की कौरवों के राज्य में प्रतिष्ठा थी। बालपन से ही अस्त्र-शस्त्र विद्या में बालक की लय, लगन और एकनिष्ठता को देखते हुए गुरु ने बालक का नाम 'एकलव्य' रख दिया था। एकलव्य के युवा होने पर उसका विवाह हिरण्यधनु ने अपने एक निषाद मित्र की कन्या सुणीता से करा दिया। एकलव्य का एक पुत्र था जिसका नाम केतुमान था। एकलव्य के युद्ध में वीरगति को प्राप्त होने के बाद उसका पुत्र केतुमान सिंहासन पर बैठता है और वह कौरवों की सेना की ओर से पांडवों के खिलाफ लड़ता है। महाभारत के युद्ध में वह भीम के हाथ से मारा जाता है।
 
कंस मामा- महाभारत और पुराणों में जरासंध की बहुत चर्चा होती है। वह उस काल के सबसे शक्तिशाली जनपद मगध का सम्राट था। जरासंध का दामाद था कंस, जो भगवान श्रीकृष्ण का मामा था। कंस ने अपने पिता उग्रसेन को राजपद से हटाकर जेल में डाल दिया था और स्वयं शूरसेन जनपद का राजा बन बैठा था। शूरसेन जनपद के अंतर्गत ही मथुरा आता है। कंस के काका शूरसेन का मथुरा पर राज था। कंस ने मथुरा को भी अपने शासन के अधीन कर लिया था और वह प्रजा को अनेक प्रकार से पीड़ित करने लगा था। श्रीकृष्ण की बुआ के बेटे शिशुपाल का झुकाव भी कंस की ओर था।
 
जरासंध- कंस के मारे जाने के बाद उसका ससुर जरासंध कृष्ण का कट्टर शत्रु बन गया। इसी ने कालयवन को बुलाकर श्रीकृष्ण को युद्ध के लिए ललकारा था। जरासंध मगध का अत्यंत क्रूर एवं साम्राज्यवादी प्रवृत्ति का शासक था। वह बृहद्रथ नाम के राजा का पुत्र था और जन्म के समय 2 टुकड़ों में विभक्त था। जरा नाम की राक्षसी ने उसे जोड़ा था तभी उसका नाम जरासंध पड़ा। उसके 2 टुकड़े कर देने के बाद भी वह जिंदा हो जाता था। भीम ने श्रीकृष्ण के इशारे पर उसकी जंघा पकड़कर उसके 2 टुकड़े कर दिए लेकिन वह फिर जुड़कर जिंदा हो जाता था। तब 14वें दिन श्रीकृष्ण ने एक तिनके को बीच में से तोड़कर उसके दोनों भागों को विपरीत दिशा में फेंक दिया। भीम, श्रीकृष्ण का यह इशारा समझ गए और उन्होंने वही किया। उन्होंने जरासंध को दोफाड़ कर उसके एक फाड़ को दूसरे फाड़ की ओर तथा दूसरे फाड़ को पहले फाड़ की दिशा में फेंक दिया। इस तरह जरासंध का अंत हो गया, क्योंकि विपरित दिशा में फेंके जाने से दोनों टुकड़े जुड़ नहीं पाए।
 
कालयवन- यह जन्म से ब्राह्मण लेकिन कर्म से असुर था और अरब के पास यवन देश में रहता था। पुराणों में इसे म्लेच्छों का प्रमुख कहा गया है। कालयवन ऋषि शेशिरायण का पुत्र था। गर्ग गोत्र के ऋषि शेशिरायण त्रिगत राज्य के कुलगुरु थे। कालयवन की सेना ने मथुरा को घेर लिया। जब कालयवन और कृष्ण में द्वंद्व युद्ध का जय हो गया तब कालयवन श्रीकृष्ण की ओर दौड़ा। श्रीकृष्ण तुरंत ही दूसरी ओर मुंह करके रणभूमि से भाग चले और कालयवन उन्हें पकड़ने के लिए उनके पीछे-पीछे दौड़ने लगा। श्रीकृष्ण लीला करते हुए दूर एक पहाड़ की गुफा में घुस गए। उनके पीछे कालयवन भी घुसा। वहां उसने एक दूसरे ही मनुष्य को सोते हुए देखकर सोचा, मुझसे बचने के लिए श्रीकृष्ण इस तरह भेष बदलकर छुप गए हैं। यह सोचकर उसने सोए हुए व्यक्ति को कसकर एक लात मारी। वह पुरुष बहुत दिनों से वहां सोया हुआ था। पैर की ठोकर लगने से वह उठ पड़ा और धीरे-धीरे उसने अपनी आंखें खोलीं। इधर-उधर देखने पर पास ही कालयवन खड़ा हुआ दिखाई दिया। वह पुरुष इस प्रकार ठोकर मारकर जगाए जाने से कुछ रुष्ट हो गया था। उसकी दृष्टि पड़ते ही कालयवन के शरीर में आग पैदा हो गई और वह क्षणभर में जलकर राख का ढेर हो गया। कालयवन को जो पुरुष गुफा में सोए मिले, वे इक्ष्वाकुवंशी महाराजा मांधाता के पुत्र राजा मुचुकुंद थे। इस तरह कालयवन का अंत हो गया।
 
शिशुपाल- शिशुपाल 3 जन्मों से श्रीकृष्ण से बैर-भाव रखे हुआ था। इस जन्म में भी वह विष्णु के पीछे पड़ गया। दरअसल, शिशुपाल भगवान विष्णु का वही द्वारपाल था जिसे कि सनकादि मुनियों ने शाप दिया था। वे जय और विजय अपने पहले जन्म में हिरण्यकश्यपु और हिरण्याक्ष, दूसरे जन्म में रावण और कुंभकर्ण तथा अंतिम तीसरे जन्म में कंस और शिशुपाल बने। कृष्ण ने प्रण किया था कि मैं शिशुपाल के 100 अपमान क्षमा करूंगा अर्थात उसे सुधरने के 100 मौके दूंगा।
 
एक बार की बात है कि जरासंघ का वध करने के बाद श्रीकृष्ण, अर्जुन और भीम इन्द्रप्रस्थ लौट आए, तब धर्मराज युधिष्ठिर ने राजसूय यज्ञ की तैयारी करवा दी। उस यज्ञ में शिशुपाल श्रीकृष्ण को अपमानित कर गाली देने लगा। 100 अपशब्दों के बाद शिशुपाल के मुख से अपशब्द के निकलते ही श्रीकृष्ण ने अपना सुदर्शन चक्र चला दिया और पलक झपकते ही शिशुपाल का सिर कटकर गिर गया।
 
पौंड्रक- चुनार देश का प्राचीन नाम करुपदेश था। वहां के राजा का नाम पौंड्रक था। इसके पिता का नाम वसुदेव था। यह द्रौपदी स्वयंवर में उपस्थित था। पौंड्रक को उसके मूर्ख और चापलूस मित्रों ने यह बताया कि असल में वही परमात्मा वासुदेव और वही विष्णु का अवतार है, मथुरा का राजा कृष्ण नहीं। पुराणों में उसके नकली कृष्ण का रूप धारण करने की कथा आती है। वह हर बार श्रीकृष्ण को युद्ध के लिए ललकारता रहता था। अंत में श्रीकृष्ण ने उसका वध कर दिया था।
 
विचित्रवीर्य- शांतनु और सत्यवती के पुत्र विचित्रवीर्य की 2 पत्नियां अम्बिका और अम्बालिका थीं। दोनों को कोई पुत्र नहीं हो रहा था तो सत्यवती के पुत्र वेदव्यास की सहायता से पुत्रों को जन्म दिया। अम्बिका से धृतराष्ट्र, अम्बालिका से पांडु और दासी से विदुर का जन्म हुआ। तीनों ही ऋषि वेदव्यास की संतान थीं। इन्हीं 2 पुत्रों में से एक धृतराष्ट्र के यहां जब कोई पुत्र नहीं हुआ तो वेदव्यास की कृपा से ही 99 पुत्र और 1 पुत्री का जन्म हुआ।
 
गंगा- इंद्र के शाप के चलते शांतनु और गंगा को मनुष्य योनि में जन्म लेना पड़ा और फिर दोनों का मिलन हुआ। गंगा ने शांतनु से विवाह करने की शर्त रखी कि 'मैं आपसे विवाह तो करूंगी पर चाहे मैं कुछ भी करूं, आप कभी मुझसे ये नहीं पूछेंगे कि मैं वैसा क्यों कर रही हूं अन्यथा में स्वर्ग चली जाऊंगी।' शांतनु ने शर्त मंजूर कर ली। गंगा और शांतनु के पुत्र होते थे तो गंगा उन्हें नदी में बहा देती थी। शर्त में बंधे शांतनु कुछ नहीं करते थे, लेकिन अपने 8वें पुत्र को जब गंगा नदी में बहाने लगी तो शांतनु ने उन्हें रोककर पूछ ही लिया कि तुम ऐसा क्यों करती हो? शर्त भंग होने के बाद गंगा ने कहा कि ये 8 वसु थे जिन्हें शाप के चलते मनुष्य योनि में जन्म लेना पड़ा लेकिन इस 8वें पुत्र को अब मनुष्यों के दुख भी भोगना होंगे। यह पुत्र आगे चलकर भीष्म पितामह कहलाए।
 
सत्यवती- महाभारत की शुरुआत राजा शांतनु की दूसरी पत्नी सत्यवती से होती है। सत्यवती के बारे में पढ़ने पर पता चलता है कि यह एक ऐसी महिला थीं जिसके कारण भीष्म को ब्रह्मचर्य की प्रतिज्ञा लेनी पड़ी। कहते हैं कि सत्यवती ही एक प्रमुख कारण थी जिसके चलते हस्तिनापुर की गद्दी से कुरुवंश नष्ट हो गया। यदि भीष्म सौगंध नहीं खाते तो सत्यवती के पराशर से उत्पन्न पुत्र वेदव्यास के 3 पुत्र पांडु, धृतराष्ट्र और विदुर हस्तिनापुर के शासक नहीं होते या यह कहें कि उनका जन्म ही नहीं होता। तब इतिहास ही कुछ और होता।
 
अम्बा- शिखंडी पूर्व जन्म में अम्बा नामक राजकुमारी था। अम्बा ने आत्महत्या कर ली थी।
 
अम्बिका- शांतनु और सत्यवती के पुत्र विचित्रवीर्य की पत्नी, अम्बा और अम्बालिका की बहन। इनके पुत्र का नाम धृतराष्ट्र था।
 
अम्बालिका- शांतनु और सत्यवती के पुत्र विचित्रवीर्य की पत्नी, अम्बा और अम्बिका की बहन। इनके पुत्र का नाम पांडु था।
 
गांधारी- सत्यवती के बाद यदि राजकाज में किसी का दखल था तो वह थी धृतराष्ट्र की पत्नी गांधारी। कहते हैं कि गांधारी का विवाह भीष्म ने जबरदस्ती धृतराष्ट्र से करवाकर उसके संपूर्ण परिवार को बंधक बनाकर रखा था। गांधारी के लिए यह सबसे दुखदायी बात थी। गांधारी के लिए आंखों पर पट्टी बांधने का एक कारण यह भी था। धृतराष्ट्र आंखों से ही नहीं, मन से भी अंधों की भांति व्यवहार करते थे इसलिए गांधारी और उनके भाई शकुनि को अप्रत्यक्ष रूप से सत्ता संभालनी पड़ी। गांधारी को यह चिंता सताने लगी थी कि कहीं कुंती के पुत्र सिंहासनारूढ़ न हो जाए। ऐसे में शकुनि ने दुर्योधन के भीतर पांडवों के प्रति घृणा का भाव भर दिया था। हालांकि यह भी कहा जाता था कि शकुनि भीष्म, धृतराष्ट्र आदि से बदला लेना चाहता था इसीलिए उसने यह षड्यंत्र रचा था।
 
गांधारी ने ही अपनी शक्ति के बल पर दुर्योधन के अंग को वज्र के समान बना दिया था लेकिन श्रीकृष्ण की चतुराई के चलते उसकी जंघा वैसी की वैसी ही रह गई थी, क्योंकि श्रीकृष्ण ने कहा था कि मां के समक्ष नग्न अवस्था में जाना पाप है। गांधारी मानती थीं कि श्रीकृष्ण के कारण ही महाभारत का युद्ध हुआ और उन्हीं के कारण मेरे सारे पुत्र मारे गए। तभी तो गांधारी ने भगवान श्रीकृष्ण को उनके कुल का नाश होने का श्राप दिया था।
 
कुंती- गांधारी के बाद कुंती महाभारत के पटल पर एक शक्तिशाली महिला बनकर हस्तिनापुर में प्रवेश करती है। कुं‍ती और माद्री दोनों ही पांडु की पत्नियां थीं। यदि पांडु को शाप नहीं लगता तो उनका कोई पुत्र होता, जो गद्दी पर बैठता लेकिन ऐसा नहीं हुआ। तब पांडु के आग्रह पर कुंती ने एक-एक कर कई देवताओं का आवाहन किया। इस प्रकार माद्री ने भी देवताओं का आवाहन किया। तब कुंती को 3 और माद्री को 2 पुत्र प्राप्त हुए जिनमें युधिष्ठिर सबसे ज्येष्ठ थे। कुंती के अन्य पुत्र थे भीम और अर्जुन तथा माद्री के पुत्र थे नकुल व सहदेव। कुंती ने धर्मराज, वायु एवं इन्द्र देवता का आवाहन किया था तो माद्री ने अश्विन कुमारों का। इससे पहले कुंती ने विवाहपूर्व सूर्य का आह्‍वान कर कर्ण को जन्म दिया था और उसे एक नदी में बहा दिया था।
 
एक शाप के चलते जब पांडु का देहांत हो गया तो माद्री पांडु की मृत्यु बर्दाश्त नहीं कर सकी और उनके साथ सती हो गई। ऐसे में कुंती अकेली 5 पुत्रों के साथ जंगल में रह गई। अब उसके सामने भविष्य की चुनौतियां थीं। ऐसे में कुंती ने मायके की सुरक्षित जगह पर जाने के बजाय ससुराल की असुरक्षित जगह को चुना। 5 पुत्रों के भविष्य और पालन-पोषण के निमित्त उसने हस्तिनापुर का रुख किया, जो कि उसके जीवन का एक बहुत ही कठिन निर्णय और समय था। कुंती ने वहां पहुंचकर अपने पति पांडु के सभी हितैषियों से संपर्क कर उनका समर्थन जुटाया। सभी के सहयोग से कुंती आखिरकार राजमहल में अपनी जगह बनाने में कामयाब हो गई। कुंती और समर्थकों के कहने पर धृतराष्ट्र और गांधारी को पांडवों को पांडु का पुत्र मानना पड़ा। राजमहल में कुंती का सामना गांधारी से भी हुआ। कुंती वसुदेवजी की बहन और भगवान श्रीकृष्ण की बुआ थीं, तो गांधारी गंधार नरेश की पुत्री और राजा धृतराष्ट्र की पत्नी थी।
 
द्रौपदी- सत्यवती, गांधारी और कुंती के बाद यदि किसी का नंबर आता है तो वह थीं 5 पांडवों की पत्नी द्रौपदी। द्रौपदी के लिए पांचों पांडवों के साथ विवाह करना बहुत कठिन निर्णय था। सामाजिक परंपरा के विरुद्ध उसने यह किया और दुनिया के समक्ष एक नया उदाहरण ही नहीं रखा बल्कि उसने अपना सम्मान भी प्राप्त किया और खुद की छवि को पवित्र भी बनाए रखा। द्रौपदी की कथा और व्यथा पर कई उपन्यास लिखे जा चुके हैं।
 
द्रौपदी को इस महाभारत युद्ध का सबसे बड़ा कारण माना जाता है। द्रौपदी ने ही दुर्योधन को इंद्रप्रस्थ में कहा था, 'अंधे का पुत्र भी अंधा।' बस यही बात दुर्योधन के दिल में तीर की तरह धंस गई थी। यही कारण था कि द्यूतक्रीड़ा में उनसे शकुनि के साथ मिलकर पांडवों को द्रौपदी को दांव पर लगाने के लिए राजी कर लिया था। द्यूतक्रीड़ा या जुए के इस खेल ने ही महाभारत के युद्ध की भूमिका लिख दी थी, जहां द्रौपदी का चीरहरण हुआ था।
 
सुभद्रा- सुभद्रा तो कृष्ण की बहन थी जिसने कृष्ण के मित्र अर्जुन से विवाह किया था, जबकि बलराम चाहते थे कि सुभद्रा का विवाह कौरव कुल में हो। बलराम के हठ के चलते ही तो कृष्ण ने सुभद्रा का अर्जुन के हाथों हरण करवा दिया था। बाद में द्वारका में सुभद्रा के साथ अर्जुन का विवाह विधिपूर्वक संपन्न हुआ। विवाह के बाद वे 1 वर्ष तक द्वारका में रहे और शेष समय पुष्कर क्षेत्र में व्यतीत किया। 12 वर्ष पूरे होने पर वे सुभद्रा के साथ इन्द्रप्रस्थ लौट आए।
 
लक्ष्मणा- श्रीकृष्ण की 8 पत्नियों में एक जाम्बवंती थीं। जाम्बवंती-कृष्ण के पुत्र का नाम साम्ब था। साम्ब का दिल दुर्योधन-भानुमती की पुत्री लक्ष्मणा पर आ गया था और वे दोनों प्रेम करने लगे थे। दुर्योधन के पुत्र का नाम लक्ष्मण था और पुत्री का नाम लक्ष्मणा। दुर्योधन अपनी पुत्री का विवाह श्रीकृष्ण के पुत्र से नहीं करना चाहता था। भानुमती सुदक्षिण की बहन और दुर्योधन की पत्नी थी इसलिए एक दिन साम्ब ने लक्ष्मणा से प्रेम विवाह कर लिया और लक्ष्मणा को अपने रथ में बैठाकर द्वारिका ले जाने लगा। जब यह बात कौरवों को पता चली तो कौरव अपनी पूरी सेना लेकर साम्ब से युद्ध करने आ पहुंचे।
 
कौरवों ने साम्ब को बंदी बना लिया। इसके बाद जब श्रीकृष्ण और बलराम को पता चला, तब बलराम हस्तिनापुर पहुंच गए। बलराम ने कौरवों से निवेदनपूर्वक कहा कि साम्ब को मुक्त कर उसे लक्ष्मणा के साथ विदा कर दें, लेकिन कौरवों ने बलराम की बात नहीं मानी। तब बलराम ने अपना रौद्र रूप प्रकट कर दिया। वे अपने हल से ही हस्तिनापुर की संपूर्ण धरती को खींचकर गंगा में डुबोने चल पड़े। यह देखकर कौरव भयभीत हो गए। संपूर्ण हस्तिनापुर में हाहाकार मच गया। सभी ने बलराम से माफी मांगी और तब साम्ब को लक्ष्मणा के साथ विदा कर दिया। द्वारिका में साम्ब और लक्ष्मणा का वैदिक रीति से विवाह संपन्न हुआ।
 
सत्यभामा- सत्यभामा भगवान श्रीकृष्ण की पत्नी थीं। राजा सत्राजित की पुत्री श्रीकृष्ण की 3 महारानियों में से 1 बनीं। सत्यभामा के पुत्र का नाम भानु था। सत्यभामा को एक और जहां अपने सुंदर होने और श्रेष्ठ घराने की राजकुमारी होने का घमंड था वहीं देवमाता अदिति से उनको चिरयौवन का वरदान मिला था जिसके चलते वह और भ

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