कर्ण एक महान योद्धा थे। वे चाहते तो युद्ध के पहले दिन ही पांडवों को मार देते लेकिन ऐसा संभव नहीं हो सकता। इसका कारण दुर्योधन द्वारा घटोत्चक पर कर्ण को अमोघ अस्त्र चलाने का कहना, दूसरा कुंती का वचन और तीसरा कृष्ण की नीति। आओ जानते हैं संक्षिप्त में।
कुंती ने लिया जब कर्ण से वचन- श्रीकृष्ण ने युद्ध के एनवक्त पर कर्ण को यह राज बता दिया था कि कुंती तुम्हारी असली मां है। एक बार कुंती कर्ण के पास गई और उससे पांडवों की ओर से लड़ने का आग्रह करने लगी। कुंती के लाख समझाने पर भी कर्ण नहीं माने और कहा कि जिनके साथ मैंने अब तक का अपना सारा जीवन बिताया उसके साथ मैं विश्वासघात नहीं कर सकता।
तब कुंती ने कहा कि क्या तुम अपने भाइयों को मारोगे? इस पर कर्ण ने बड़ी ही दुविधा की स्थिति में वचन दिया, 'माते, तुम जानती हो कि कर्ण के यहां याचक बनकर आया कोई भी खाली हाथ नहीं जाता अत: मैं तुम्हें वचन देता हूं कि अर्जुन को छोड़कर मैं अपने अन्य भाइयों पर शस्त्र नहीं उठाऊंगा।'
कुंती के द्वारा यह वचन ले लेने के कारण ही युधिष्ठिर कई बार कर्ण से बच गए। युद्ध में ऐसे भी कई मौके आए जबकि कर्ण युधिष्ठिर, भीम, नकुल और सहदेव को मार देता लेकिन वह ऐसा नहीं कर पाया।
कर्ण के पास इंद्र का अमोघ अस्त्र था। कर्ण को इंद्र ने वचन दिया था कि यह अस्त्र जिस पर भी तुम चलाओगे उसकी मृत्यु निश्चित ही होगी, लेकिन इसका प्रयोग तुम बस एक बार ही कर सकोगे। कर्ण ने देवराज इंद्र से प्राप्त अमोघ अस्त्र को अर्जुन के लिए बचाकर रखा था, लेकिन युद्ध में घटोत्कच ने उत्पात मचा रखा था और वह किसी के द्वारा भी नहीं मारा जा रहा था। तब दुर्योधन ने घबराकर कर्ण से कहा कि तुम इसे अपने अमोघ अस्त्र से मार दो। कर्ण के लाख मना करने के बाद भी दुर्योधन नहीं माना और कहा कि ये आदमी हमारी पूरी सेना को अकेला ही मार देगा। तब कर्ण ने घटोत्कच पर इंद्र का वह अस्त्र चला दिया और घटोत्कच मारा गया।