महाभारत में पांडव और कौरवों का कुरुक्षेत्र में युद्ध हुआ था। कौरवों को कुरु वंश का माना जाता है। ये राजा कुरु कौन थे और क्या था उनका कुरु वंश? जानिए कुछ ऐसी 10 खास बातें जिनका उल्लेख महाभारत में भी नहीं मिलेगा। यह जानकारी हमने कई अन्य स्रोत और किवदंतियों के आधार पर संकलित की है।
1. संपूर्ण धरती पर फैले थे कुरु के वंशज : धरती के महान सम्राट कुरु के वंशजों को अन्य देशों में अलग-अलग नाम से पुकारा गया है, लेकिन यह इतिहासकारों के लिए शोध का विषय हो सकता है कि क्या ईरान की प्राचीन जाति कुरोश और अरब के कुरैश भी कुरु के वंशज हैं?
2. कौन थे राजा कुरु : एक अन्य मत के अनुसार ययाति के 5 पुत्र थे- 1. पुरु, 2. यदु, 3. तुर्वस, 4. अनु और 5. द्रुह्मु। इन्हें वेदों में पंचनंद कहा गया है। पुरु के वंश में ही आगे चलकर सम्राट दुश्यंत हुए। दुष्यंत के शकुंतला से भरत हुए, भरत के सुनंदा से भमन्यु हुए, भमन्यु के विजय से सुहोत्र हुए, सुहोत्र के सुवर्णा से हस्ती हुए, हस्ती के यशोधरा से विकुंठन हुए, विकुंठन के सुदेवा से अजमीढ़ हुए, अजमीढ़ से संवरण हुए, संवरण के ताप्ती से कुरु हुए जिनके नाम से ये वंश कुरुवंश कहलाया।
3. चंद्रवंशी थे कुरुवंशी : कौरव चन्द्रवंशी थे और कौरव अपने आदिपुरुष के रूप में चन्द्रमा को मानते थे। इनके आराध्य शिव और गुरु शुक्राचार्य थे। पुराणों के अनुसार ब्रह्माजी से अत्रि, अत्रि से चन्द्रमा, चन्द्रमा से बुध और बुध से इलानंदन पुरुरवा का जन्म हुआ।
4. कुरुवंशी भीष्म : कुरु के शुभांगी से विदुरथ हुए, विदुरथ के संप्रिया से अनाश्वा हुए, अनाश्वा के अमृता से परीक्षित हुए, परीक्षित के सुयशा से भीमसेन हुए, भीमसेन के कुमारी से प्रतिश्रावा हुए, प्रतिश्रावा से प्रतीप हुए, प्रतीप के सुनंदा से तीन पुत्र देवापि, बाह्लीक एवं शांतनु का जन्म हुआ। देवापि किशोरावस्था में ही संन्यासी हो गए एवं बाह्लीक युवावस्था में अपने राज्य की सीमाओं को बढ़ाने में लग गए इसलिए सबसे छोटे पुत्र शांतनु को गद्दी मिली। शांतनु की गंगा से देवव्रत हुए, जो आगे चलकर भीष्म के नाम से प्रसिद्ध हुए।
भीष्म का वंश आगे नहीं बढ़ा, क्योंकि उन्होंने आजीवन ब्रह्मचारी रहने की प्रतिज्ञा की थी। शांतनु की दूसरी पत्नी सत्यवती से चित्रांगद और विचित्रवीर्य हुए। लेकिन इनका वंश भी आगे नहीं चला। इस तरह कुरु की यह शाखा डूब गई, लेकिन दूसरी शाखाओं ने मगध पर राज किया और तीसरी शाखा ने ईरान पर।
5. अंतिम राजा निचक्षु : महाभारत के बाद यदि भीष्म को अंतिम न माने और पांडवों को कुरुवंश का मानें तो... कुरुवंश का अंतिम राजा निचक्षु था। पुराणों के अनुसार हस्तिनापुर नरेश निचक्षु ने, जो परीक्षित का वंशज (युधिष्ठिर से 7वीं पीढ़ी में) था, हस्तिनापुर के गंगा द्वारा बहा दिए जाने पर अपनी राजधानी वत्स देश की कौशांबी नगरी को बनाया। इसी वंश की 26वीं पीढ़ी में बुद्ध के समय में कौशांबी का राजा उदयन था। निचक्षु और कुरुओं के कुरुक्षेत्र से निकलने का उल्लेख शांख्यान श्रौतसूत्र में भी है।
6. कुरु जनपद : प्राचीनकाल में भारत में 16 महाजनपद थे। उन 16 में से एक कुरु जनपद था। कुरु जनपद का उल्लेख उत्तर वैदिक युग से मिलता है। यह जनपद उत्तर तथा दक्षिण दो भागों में विभक्त था। महाभारत में उत्तर कुरु को कैलाश और बद्रिकाश्रम के बीच रखा गया है, जबकि प्रपंचसूदनी में कुरुओं को हिमालय पार के देश उत्तर कुरु का औपनिवेशिक बताया गया है, जो उत्तरी ध्रुव के निकट था। वहीं से श्वेत वराह आए थे। श्वेत वराह को विष्णु का अवतार माना जाता है।
हालांकि दक्षिण कुरु, उत्तर कुरु की अपेक्षा अधिक प्रसिद्ध है और वहीं कुरु के नाम से विख्यात है। यह जनपद पश्चिम में सरहिंद के पार्श्ववर्ती क्षेत्रों से लेकर सारे दक्षिण-पश्चिमी पंजाब और उत्तरप्रदेश के कुछ पश्चिमी जिलों तक फैला हुआ था। ऋग्वेद में कुरु जनपद के कुरुश्रवण, उपश्रवस् और पाकस्थामन् कौरायण जैसे कुछ राजाओं की चर्चा हुई है। कौरव्य और परीक्षित (अभिमन्यु पुत्र परीक्षित नहीं) के उल्लेख अथर्ववेद में हैं।
कई ग्रंथों में कुरु और पांचाल का उल्लेख एकसाथ हुआ है किंतु दोनों की भौगोलिक सीमाएं एक-दूसरे से भिन्न थीं। कुरु के पूर्व में उत्तरी पांचाल तथा दक्षिण में दक्षिणी पांचाल के प्रदेश थे। प्राचीनकाल में पांचाल संभव है कि गंगा-यमुना दोआब का कुछ उत्तरी भाग कुरु जनपद की सीमा में रहा हो। हालांकि पांचालों की सीमाएं युद्ध और काल के अनुसार बदलती रही है। एक समय में वे कुरु जनपद का ही हिस्सा बन गए थे। महाभारत में (वनवर्ष, अध्याय 83) कुरु की सीमा उत्तर में सरस्वती तथा दक्षिण में दृषद्वती नदियों तक बताई गई है। शतपथ ब्राह्मण, मनु स्मृति और पालि साहित्य में भी कुरु जनपद का उल्लेख मिलता है। महासुतसोम जातक में कुरु राज्य का विस्तार 300 योजन कहा गया है।