Mahabharat jua ka khel: महाभारत के युद्ध की मुख्य शुरुआत जुए के खेल से होती है। दुर्योधन के मन में दौपदी चल रही बदले की इस भावना को शकुनि ने हवा दी और इसी का फायदा उठाते हुए उसने पासों का खेल खेलने की योजना बनाई। उसने अपनी योजना दुर्योधन को बताई और कहा कि तुम इस खेल में हराकर बदला ले सकते हो।
खेल के जरिए पांडवों को मात देने के लिए शकुनि ने बड़े प्रेम भाव से सभी पांडु पुत्रों को खेलने के लिए आमंत्रित किया और फिर शुरू हुआ दुर्योधन व युधिष्ठिर के बीच पासा फेंकने का खेल। शकुनि पैर से लंगड़ा तो था, पर चौसर अथवा द्यूतक्रीड़ा में अत्यंत प्रवीण था। उसकी चौसर की महारथ अथवा उसका पासों पर स्वामित्व ऐसा था कि वह जो चाहता वे अंक पासों पर आते थे। एक तरह से उसने पासों को सिद्ध कर लिया था कि उसकी अंगुलियों के घुमाव पर ही पासों के अंक पूर्वनिर्धारित थे।
खेल की शुरुआत में पांडवों का उत्साह बढ़ाने के लिए शकुनि ने दुर्योधन को आरंभ में कुछ पारियों की जीत युधिष्ठिर के पक्ष में चले जाने को कहा जिससे कि पांडवों में खेल के प्रति उत्साह उत्पन्न हो सके। धीरे-धीरे खेल के उत्साह में युधिष्ठिर अपनी सारी दौलत व साम्राज्य जुए में हार गए। इसके बाद युधिष्ठिर ने नकुल और सहदेव को दाव पर लगाया फिर अर्जुन को अंत में भीम को भी वे हार गए।
अंत में कर्ण की सलाह पर शकुनि ने युधिष्ठिर को बाकी पांडव भाइयों सहित सब कुछ एक शर्त पर वापस लौटा देने का वादा किया कि यदि वे अपनी पत्नी द्रौपदी को दांव पर लगाएं। मजबूर होकर युधिष्ठिर ने शकुनि की बात मान ली और अंत में वे यह पारी भी हार गए। इस खेल में पांडवों व द्रौपदी का अपमान ही कुरुक्षेत्र के युद्ध का सबसे बड़ा कारण साबित हुआ।
यह बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि शकुनि के पास जुआ खेलने के लिए जो पासे होते थे वह उसके मृत पिता के रीढ़ की हड्डी के थे। अपने पिता की मृत्यु के पश्चात शकुनि ने उनकी कुछ हड्डियां अपने पास रख ली थीं। ऐसा भी कहा जाता है कि शकुनि के पासे में उसके पिता की आत्मा वास कर गई थी जिसकी वजह से वह पासा शकुनि की ही बात मानता था। कहते हैं कि शकुनि के पिता ने मरने से पहले शकुनी से कहा था कि मेरे मरने के बाद मेरी हड्डियों से पासा बनाना, ये पासे हमेशा तुम्हारी आज्ञा मानेंगे, तुमको जुए में कोई हरा नहीं सकेगा।
यह भी कहा जाता है कि शकुनि के पासे के भीतर एक जीवित भंवरा था जो हर बार शकुनि के पैरों की ओर आकर गिरता था। इसलिए जब भी पासा गिरता वह छ: अंक दर्शाता था। शकुनि भी इस बात से वाकिफ़ था इसलिए वह भी छ: अंक ही कहता था। शकुनि का सौतेला भाई मटकुनि इस बात को जानता था कि पासे के भीतर भंवरा है।