आप भी अपने जीवन में कुछ प्रश्नों के उत्तर ढूंढ ही रहे होंगे। यदि ऐसा है तो निश्चित यक्ष द्वारा युधिष्ठिर से पूछे गए प्रश्नों को पढ़ना चाहिए। निश्चित ही उसमें से एक प्रश्न आपका भी होगा। अब सवाल यह उठता है कि यक्ष ने युधिष्ठिर से क्यों पूछे थे ये प्रश्न? तो इसके लिए पढ़िये छोटी-सी कथा और फिर जानिए पहला प्रश्न कौन-सा था।
यक्ष कथा : पांडवजन अपने वनवास के दौरान वनों में विचरण कर रहे थे। एक वृक्ष के नीचे सभी भाई विश्राम करने के लिए रुके। सभी को जब प्यास लगी तो युधिष्ठिर ने नुकल से कहा कि तुम वृक्ष पर चढ़कर देखो की कहीं आसपास जलाशाय है कि नहीं। नकुल ने देखा और उसे दूर कहीं जलाशय होने का आभास हुआ। युधिष्ठिर ने कहा कि जाओ और इन सभी तरकशों में जल भरकर ले आओ। नकुल कुछ दूर स्थित जलाशय के पास पहुंच गए और उन्होंने सोचा की पहले पानी पी लिया जाए फिर तरकशों को भर लेंगे। नकुल जैसे ही पानी पीने के लिए झुके तभी आकाशवाणी हुई। एक अदृश्य यक्ष ने नुकल को रोकते हुए कहा कि मेरा पहले से ही यह नियम है कि जो कोई भी मेरे प्रश्नों के उत्तर देगा उसे ही मैं पानी पीने दूंगा और यहां से जल ले जाने दूंगा। नकुल उस शर्त और यक्ष की आकाशवाणी को अनदेखा कर जलाशाय से पानी पीने लगे। उस पानी को पीते ही नकुल मूर्छित होकर भूमि पर गिर पड़े।
इधर, नकुल को आने में देर हुई तो युधिष्ठिर ने सहदेव को भेजा। सहदेव जब जलाशय के पास पहुंचे तो उन्होंने नकुल को मूर्छित अवस्था में देखा तो उन्हें बहुत शोक हुआ। फिर उन्होंने सोच पहले पानी पी लिया जाए फिर सोचा जाए कि क्या करना है। जैसे ही वह पानी पीने के लिए झुके तभी आकाशवाणी हुई। उस आकाशवाणी को सहदेव ने भी अनदेखा कर दिया और पानी पीने लगे। वे भी उस पानी को पीकर मूर्छित हो गए।
तब युधिष्ठिर ने अर्जुन को भेजा। अर्जुन ने जलाशाय के पास पहुंचकर दोनों भाइयों को मृत अवस्था में देखा तो उन्होंने तुरंत ही अपना धनुष निकालकर कमान पर चढ़ाया और सब ओर देखने लगे। उन्हें कोई नहीं दिखाई दिया। तब कुछ देर बाद प्यास से व्याकुल अर्जुन ने भी जलाशन से पानी पीने के लिए झुके तभी आकाशवाणी हुई, रुको मेरी आज्ञा के बगैर यहां कोई पानी नहीं पी सकता। यदि तुम मेरे पूछे गए प्रश्नों के उत्तर देते हो तो ही पानी पी सकते हो और ले भी जा सकते हो, अन्यथा नहीं।
अर्जुन ने कहा, जरा प्रकट होकर रोको, फिर तो मेरे बाणों से विद्ध होकर ऐसा कहने का साहस भी नहीं करोगे। ऐसा कहकर अर्जुन ने सभी दिशाओं में शब्दभेदी बाण चला दिए। तब यक्ष ने कहा, अर्जुन इस व्यर्थ के उद्योग से क्या होना है? तुम मेरे प्रश्नों का उत्तर दो और जल पी लो। यदि बिना उत्तर दिए जल पिया तो मर जाओगे।'
यक्ष के ऐसा करने पर भी अर्जुन ने कोई ध्यान नहीं दिया और पानी पी लिया। पानी पीते ही वह भी नकुल और सहदेव की तरह मृत जैसे हो गए। फिर भीम को भेजा और भीम ने भी नकुल, सहदेव और अर्जुन की तरह गलती की और वह भी भूमि कर मूर्छित होकर गिर पड़े।
अंत में चिंतातुर युधिष्ठिर स्वयं उस जलाशय पर पहुंचे। उन्होंने देखा की मेरे चारों भाई जलाशय के पास मूर्छित होकर मृत अवस्था में पड़े हैं। यह दृश्य देखकर युधिष्ठिर बहुत चिंतित होने लगे। वे सोचने लगे कि इनको किसने मारा इनके शरीर पर कोई घाव भी नहीं है। यहां किसी अन्य के चरणचिन्ह भी तो नहीं है। तब युधिष्ठिर को समझ आया कि हो न हो इस जल में ही कुछ है। फिर उन्होंने जल को गौर से देखा तो पता चला कि इस जल का पानी तो स्वच्छ और निर्मल है। फिर ये कैसे मरें?
बहुत सोचने के बाद युधिष्ठिर को लगा कि हो न हो यहां कोई अन्य जरूर है। यह सोचकर उन्होंने जल पीने के बजाय जल में उतरने का निर्णय लिया और वे जैसे ही जल में उतरे तभी आकाशवाणी हुई, मैं बगुला हुं, मैंने ही तुम्हारे भाइयों को मारा है। यदि तुम भी मरे प्रश्नों का उत्तर नहीं दोगे तो तुम भी अपने भाइयों की तरह मारे जाओगे।
युधिष्ठिर ने ऐसे समय धैर्य दिखाया और कहा, कोई पक्षी तो यह कार्य नहीं कर सकता। आप या तो रुद्र हैं, वसु हैं या मरुत देवता हैं। पहले आप बताएं कि आप कौन हैं? तब यक्ष ने कहा कि मैं कोरा जलचर पक्षी ही नहीं हूं, मैं यक्ष हूं। तुम्हारे ये तेजस्वी भाई मैंने ही मारे हैं।' ऐसा कहकर यक्ष हंसने लगा।
यक्ष की इस कठोर वाणी को सुनकर भी युधिष्ठिर ने अपने विनम्रतापूर्वक हाथ जोड़कर यक्ष से अपने समक्ष प्रकक्ष होने का निवेदन किया। तब उन्होंने देखा की विकटनेत्र वाला एक यक्ष वृक्ष पर बैठा हैं। युधिष्ठिर ने कहा कि मैं आपके अधिकार क्षेत्र की चीज को ले जाना नहीं चाहता। आप मुझसे प्रश्न कीजिये। मैं अपनी बुद्धि के अनुसार उनके उत्तर दूंगा।
*यक्ष का पहला प्रश्न : सूर्य को कौन उदित करता है? उसके चारों और कौन चलते हैं? उसे अस्त कौन करता है? और वह किसमें प्रतिष्ठित है?
*युधिष्ठिर का उत्तर : ब्रह्म सूर्य को उदित करता है। देवता उसके चारों ओर चलते हैं। धर्म उसे अस्त करता है और वह सत्य प्रतिष्ठित है।
*टिप्पणी : ब्रह्म (ब्रह्मा, विष्णु महेश नहीं) अर्थात वह परम पिता परमेश्वर सर्वोच्च शक्ति ही है जिसके कारण यह संपूर्ण संसार चलायमान है। वहीं सूर्य को उदित करता है। उस परमेश्वर की शक्तियां सभी देवता ही सूर्य के चारों ओर विचरण करते हैं। इममें 12 आदित्य महत्वपूर्ण हैं। धर्म अर्थात सभी को धारण करने वाला, सभी का स्वभाव और यमदेव ही उसे अस्त करते हैं और सत्य ही में वह प्रतिष्ठित है। परमेश्वर ही सत्य है।