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Maharashtra : 20 साल बाद उद्धव-राज साथ, किसे नफा, किसे नुकसान, क्या महाराष्ट्र की राजनीति में लौट पाएगी 'ठाकरे' की धाक

ठाकरे ब्रदर्स के एक साथ आने के बाद यह सवाल उठ रहे हैं कि इस गठबंधन ने किसे ज्यादा फायदा मिलेगा?

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वेबदुनिया न्यूज डेस्क

मुंबई , शनिवार, 5 जुलाई 2025 (17:46 IST)
maharashtra politics News : महाराष्ट्र में एक महत्वपूर्ण राजनीतिक घटनाक्रम के तहत करीब 2 दशक बाद चचेरे भाई उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे करीब 20 साल बाद महाराष्ट्र और मराठी-मानुष के मुद्दे पर शनिवार को मंच पर साथ नजर आए। दोनों के साथ आने के साथ ही महाराष्ट्र की राजनीति में बड़े बदलाव की अटकलें नजर आने लगी। साथ ही दोनों के मिलन से किसे नफा और किसे नुकसान के अनुमान भी लगने लगे।  मराठी अस्मिता की रक्षा के मुद्दे को लेकर दोनों ठाकरे ब्रदर्स साथ में आए हैं। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि राजनीतिक अस्तित्व का संकट दोनों भाइयों को एक मंच पर लाने की वजह है। दोनों को अपना सियासी करियर ठीक करना है। जानकार मानते हैं कि दोनों साथ में मिलकर बीएमसी चुनाव भी लड़ सकते हैं। 
 
एमवीए और भाजपा दोनों में उत्सुकता
सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (BJP) नीत महायुति और विपक्षी गठबंधन महा विकास अघाड़ी (MVA) के नेता ठाकर बंधुओं के मिलन को बहुत उत्सुकता से देख रहे हैं। इस ऐतिहासिक मिलन से महाराष्ट्र की राजनीति में बड़े बदलाव की अटकलें लगाई जा रही हैं। श्री उद्धव ठाकरे शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) पार्टी के प्रमुख हैं और उनकी पार्टी एमवीए की सहयोगी है।

तीन भाषा नीति वापस लेने का जश्न 
मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस द्वारा प्राथमिक विद्यालयों में हिन्दी को तीसरी भाषा के रूप में पेश करने वाले दो प्रस्तावों को रद्द करने के बाद यह रैली दोनों दलों के लिए एक राजनीतिक जीत की प्रतीक है। चचेरे भाई उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे ने शनिवार को लगभग दो दशकों में पहली बार मंच साझा किया जिसमें महाराष्ट्र में तीन-भाषा नीति पर दो विवादास्पद सरकारी प्रस्तावों को भाजपा के नेतृत्व वाली महायुति सरकार की ओर से वापस लेने का जश्न मनाया गया। आयोजन स्थल वर्ली के एनएसआईसी डोम में आज शिवसेना (उद्धव गुट) और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (एमएनएस) मराठी विजय दिवस नाम के कार्यक्रम का आयोजन किया। 
 
कब हुए थे मतभेद 
राज ठाकरे ने उद्धव से मतभेद के बाद वर्ष 2005 में बालासाहेब ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना से बाहर हो गए थे और वर्ष 2006 में उन्होंने मनसे का गठन किया था। वर्ष 2026 में शिवसेना के संस्थापक बालासाहेब ठाकरे की 100वीं जयंती और शिवसेना का 60वां स्थापना वर्ष होगा। बालासाहेब ठाकरे 23 जनवरी 1926 को शिवसेना का गठन किया था। विभाजन के कारण यह पार्टी दोराहे पर खड़ी है, जो कभी राज्य की राजनीति में एक प्रमुख स्थान रखती थी। महाराष्ट्र में 25 साल से अधिक समय से गठबंधन की राजनीति चलन में रही है। प्रतिष्ठित शिवाजी पार्क से बालासाहेब ठाकरे ने 30 अक्टूबर, 1966 को अपनी पहली दशहरा रैली में ‘80 टके समाज-करण, 20 टके राज-करण’ (80 प्रतिशत सामाजिक कार्य, 20 प्रतिशत राजनीति) का संदेश दिया था।
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'ठाकरे' विरासत बचाने के लिए साथ 
महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के संस्थापक अध्यक्ष राज ठाकरे फिलहाल किसी गठबंधन में शामिल नहीं हैं। राजनीतिक जानकार मानते हैं कि दोनों का साथ आना विरासत को बचाने की लड़ाई है, क्योंकि शिवसेना का चुनाव चिह्न जा चुका है। अब ठाकरे के नाम पर राजनीति चलती है अगर इसे बचाना है तो राजनीति भी बचेगी और विरासत भी, इसलिए ठाकरे बंधु अब साथ आ रहे हैं। ठाकरे ब्रदर्स को अपने पुत्रों आदित्य ठाकरे और अमित ठाकरे को भी राजनीति में स्थापित करना है। राजनीति की जानकार यह भी मानते हैं कि दोनों के साथ आने से शिवसेना का संग्राम त्रिकोणीय से हटकर ठाकरे वर्सेस शिंदे हो जाएगा और इसका नुकसान एकनाथ शिंदे को होगा।

फडणवीस ने किया साथ लाने का काम
शिवसेना (UBT) और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) मुंबई के वर्ली डोम में एक संयुक्त रैली में महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) के अध्यक्ष राज ठाकरे ने कहा कि मैंने अपने एक इंटरव्यू में कहा था कि मेरा महाराष्ट्र किसी भी राजनीति और लड़ाई से बड़ा है। आज 20 साल बाद मैं और उद्धव एक साथ आए हैं। जो बालासाहेब नहीं कर पाए, वो देवेंद्र फडणवीस ने कर दिखाया... हम दोनों को साथ लाने का काम। इधर रैली में शिवसेना (UBT) प्रमुख उद्धव ठाकरे ने भाजपा पर निशाना साधते हुए कहा कि जब भाजपा कहती है कि उन्हें एक संविधान, एक निशान और एक प्रधानमंत्री चाहिए, तो उन्हें याद रखना चाहिए कि एक निशान तिरंगा है, न कि भाजपा का झंडा, जो बर्तन साफ ​​करने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला कपड़े का एक टुकड़ा मात्र है। 
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क्या उद्धव को मिलेगा 'राज'
मौजूदा समय में चचेर ठाकरे बंधु अपनी-अपनी पार्टियों के पुनरुद्धार के लिए ‘पुराने धर्रे पर लौटने’ की योजना बना रहे हैं। दोनों पार्टियों ने 2024 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में अपना सबसे खराब प्रदर्शन किया है। शिवसेना की राजनीतिक यात्रा में चार प्रमुख विद्रोह हुए हैं। इस में पहला छगन भुजबल (1991), उसके बाद श्री नारायण राणे (2005), फिर राज ठाकरे (2005-06) और अंत में एकनाथ शिंदे (2022) ने बगावत की। मौजूदा समय में  शिंदे के पास 'धनुष-बाण' चुनावी चिह्न वाली ‘असली’ शिवसेना है।
 
राज ठाकरे ने 9 मार्च, 2006 को मनसे का गठन किया था और उनका चुनाव चिह्न 'रेलवे इंजन' है जबकि उद्धव ठाकरे शिवसेना (यूबीटी) के प्रमुख हैं और उनका चुनाव चिह्न 'मशाल' है। शिंदे ने उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली एमवीए सरकार को गिरा दिया थी। उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली सरकार में कांग्रेस और अविभाजित शिवसेना और   शरद पवार के नेतृत्व वाली अविभाजित राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) शामिल थी। शिवसेना से अलग होने के बाद  शिंदे ने भाजपा से हाथ मिलाकर मुख्यमंत्री बने थे और पूर्व मुख्यमंत्री एवं भाजपा नेता देवेंद्र फडणवीस को उपमुख्यमंत्री बने थे। 
एक साल बाद अजित पवार ने अपने चाचा  शरद पवार के खिलाफ बगावत की और उपमुख्यमंत्री बनने के लिए भाजपा से हाथ मिला लिया। पार्टी के लिए वर्ष 2024 का साल मिलाजुला रहा। लोकसभा चुनावों में महाराष्ट्र में एमवीए ने बहुत अच्छा प्रदर्शन किया, लेकिन राष्ट्रीय स्वयसेवक संघ (आरएसएस) के समर्थन से फडणवीस ने बाजी पलट दी। 2024 के विधानसभा चुनावों में शिवसेना मुश्किल से 20 सीटें जीत पाई, जबकि मनसे अपना खाता भी नहीं खोल पाई। इनपुट एजेंसियां Edited by: Sudhir Sharma

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