अहिंसा के मार्ग पर चलने वाले महात्मा गांधी के किस्से व आंदोलन के बारे में आपने कई बार किताबों में पढ़ा होगा। साथ ही कई बार आपने गांधीजी की जीवनी भी पढ़ी होगी। गांधीजी का स्वाभाव कड़क अनुसाशन और और गंभीर विचारक के साथ विनोदप्रिय भी था। गांधीजी किसी भी सवाल का जवाब बेहतर सेंस ऑफ ह्यूमर के साथ देने जानते हैं। एक बार खुद गांधीजी ने कहा था कि 'अगर मुझमें सेंस ऑफ ह्यूमर न होता तो मैं अब तक आत्महत्या कर चुका होता।' चलिए ऐसी ही कुछ रोचक कहानियों (mahatma gandhi story in hindi) के बारे में जानते हैं...
1. सरोजनी नायडू गांधीजी को कहती थीं 'मिक्की माउस'
जवाहरलाल नेहरु द्वारा लिखी गई अपनी आत्मकथा 'The Discovery of India' में यह मेंशन है कि सरोजनी नायडू गांधीजी को प्यार से 'मिक्की माउस' कहकर पुकारती थीं। गांधीजी भी अपने लैटर में उनके लिए 'डियर बुलबुल', 'डियर मीराबाई' और मज़क में कभी कभी 'अम्माजान' व 'मदर' भी लिखते थे।
2. सेंस ऑफ ह्यूमर न होता तो पागल हो चुके होते
गांधीजी किताबी विचारों को ज़मीन पर उतारने की श्रमता रखते थे। वो प्रतीकों को अपना हथियार बनाकर हास्य-व्यंग्य को माध्यम के तौर पर इस्तेमाल करते थे। इस बात पर एक ब्रिटिश पत्रकार ने उनसे पुछा कि 'इसका मतलब है कि आपके मनोविनोद को आपकी झुंझलाहट या खीज समझी जाए।' तो इस पर गांधीजी ने जवाब देते हुए कहा कि 'जिन विषम और विकट परिस्थितियों में मैं काम करता हूं, अगर मुझ में इतना अधिक सेन्स ऑफ ह्यूमर ना होता, तो मैं अब तक पागल हो गया होता।'
3. इंग्लैंड के प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल ने उड़ाया था मज़ाक
आपको बता दें कि इंग्लैंड के प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल ने महात्मा गांधी को 'अधनंगा फकीर' कहकर उनका बहुत मज़ाक उड़ाया था। चर्चिल को लगता था कि लंदन में पढ़ाई कर चुका एक मामूली व्यक्ति कैसे इतने भव्य ब्रिटिश राज को इतनी बड़ी चुनौती दे सकता है। इस बात के लिए चर्चिल ने महात्मा गांधी का कई बार मज़ाक उड़ाया है।
4. राजा हरिश्चन्द्र के नाटक से हुए थे प्रेरित
आपको बता दें कि बचपन में गांधीजी, राजा हरिश्चन्द्र से बहुत प्रभावित हुए थे। गांधीजी बच्चपन में राजा हरिश्चंद्र का नाटक देखने के लिए अपने दोस्तों के साथ चले गए। नाटक में राजा हरिश्चन्द्र अपना सत्यवचन निभाने के लिए अपना राज्य और अपने परिवार को खो देता है। इस नाटक को देखने के बाद गांधीजी पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा और उन्होंने सत्य के खातिर मुसीबत का सामना करने का सोचा।
5. स्कूल परीक्षा में नकल करने से इंकार किया
गांधीजी बचपन से ही स्वाभाविक रूप से ईमानदार थे। स्कूल में टीचर ने सभी बच्चों को एक इंग्लिश स्पेलिंग लिखने के लिए दी और उन्होंने गांधीजी की स्पेलिंग देखी जो कि गलत थी। टीचर ने उन्हें पास के बच्चे से स्पेलिंग की नकल करने को कहा लेकिन गांधीजी ने उसकी नकल नहीं की। गांधीजी की इस कहानी से उनकी ईमानदारी के बारे में पता लगाया जा सकता है।