Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

महात्मा गांधी के रोचक और शिक्षाप्रद 4 प्रसंग, यहां पढ़ें

हमें फॉलो करें महात्मा गांधी के रोचक और शिक्षाप्रद 4 प्रसंग, यहां पढ़ें
, बुधवार, 27 जनवरी 2021 (19:28 IST)
Gandhi Jee Story
 
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनके जीवन के प्रेरणादायी प्रसंग बहुत ही रोचक और शिक्षाप्रद है। आइए यहां पढ़ें गांधीजी के जीवन से जुड़े कुछ खास प्रसंग- 
 
प्रसंग 1. एक बार एक मारवाड़ी सज्जन गांधीजी से मिलने आए। उन्होंने सिर पर बड़ी-सी पगड़ी बांध रखी थी। 
 
वे गांधीजी से बोले- 'आपके नाम से तो 'गांधी टोपी' चलती है और आपका सिर नंगा है। ऐसा क्यों? 
 
इस पर गांधीजी ने हंस कर जवबा दिया, '20 आदमियों की टोपी का कपड़ा तो आपने अपने सिर पर पहन रखा है। तब 19 आदमी टोपी कहां से पहनेंगे? उन्हीं 19 में से एक मैं हूं।' 
 
गांधीजी की बात सुनकर उस मारवाड़ी सज्जन ने शर्म से अपना सिर झुका दिया। 
 

 
प्रसंग 2. महात्मा गांधी सन् 1921 में खंडवा गए। वह लोगों को स्वदेशी का संदेश यानी अपने देश में बनी वस्तुओं का प्रयोग और विदेशी वस्तुओं का त्याग करने को कह रहे थे। वहां उनकी सभा में चमकीले कपड़े पहने हुए कुछ बालिकाओं ने स्वागत गीत गाया। 
 
तत्पश्चात वहां उपस्थित स्थानीय नेताओं ने गांधी जी को भरोसा दिलाया कि वे हर तरह से स्वदेशी वस्तुओं का प्रचार करेंगे। इस पर गांधी जी ने उनसे कहा, 'मुझे अब भी सिर्फ भरोसा ही दिलाया जा रहा है, जबकि यहां गीत गाने वाली बालिकाओं ने किनारी गोटे वाले विदेशी कपड़े पहनकर मेरा स्वागत किया। मुझे तो स्वदेशी प्रचार खादी के बारे में दृढ़ निश्चय चाहिए।'
 

प्रसंग 3. यह सन् 1929 की बात है। गांधी जी भोपाल गए। वहां की जनसभा में उन्होंने समझाया, 'मैं जब कहता हूं कि रामराज आना चाहिए तो उसका मतलब क्या है?' रामराज का मतलब हिन्दूराज नहीं है। रामराज से मेरा मतलब है ईश्वर का राज। मेरे लिए तो सत्य और सत्यकार्य ही ईश्वर हैं। 
 
प्राचीन रामराज का आदर्श प्रजातंत्र के अदर्शों से बहुत कुछ मिलता-जुलता है और कहा गया है कि रामराज में दरिद्र व्यक्ति भी कम खर्च में और थोड़े समय में न्याय प्राप्त कर सकता था। यहां तक कहा गया है कि रामराज में एक कुत्ता भी न्याय प्राप्त कर सकता था।'


प्रसंग 4. यह घटना 25 नवंबर, 1933 की है, जब गांधी जी रायपुर से बिलासपुर जा रहे थे। रास्ते में अनेक गांवों में उनका स्वागत हुआ, किंतु एक जगह लगभग 80 साल की एक दलित बुढ़िया सड़क के बीच में खड़ी हो गई और रोने लगी। उसके हाथों में फूलों की माला थी। उसे देखकर गांधी जी ने कार रुकवाई। लोगों ने बुढ़िया से पूछा- वह क्यों खड़ी है? बुढ़िया बोली- 'मैं मरने से पहले गांधी जी के चरण धोकर यह फूलमाला चढ़ाना चाहती हूं तभी मुझे मुक्ति मिलेगी। 
 
गांधी जी ने कहा- 'मुझे एक रुपया दो तो मैं पैर धुलवाऊं।' गरीब बुढ़िया के पास रुपया कहां था? फिर भी वह बोली- 'अच्छा! मैं घर जाकर रुपया ले आती हूं, शायद घर में निकल आए।' पर गांधी जी तो रुकने वाले न थे। बुढ़िया एकदम निराश हो गई। 
 
उसकी पीड़ा के आगे गांधी जी को झुकना पड़ा और उन्होंने पांव धुलवाना स्वीकार कर लिया। बुढ़िया ने बड़ी श्रद्धा से गांधी जी के पांव धोए और फूल माला चढ़ाई। उस समय उसके चेहरे से ऐसा लग रहा था जैसे उसे अमूल्य संपत्ति मिल गई हो।
 
फिर गांधी जी बिलासपुर पहुंचे। वहां उनके लिए एक चबूतरा बनाया गया था, जिस पर बैठकर उन्होंने जनसभा को संबोधित किया। जब सभा समाप्त हुई और गांधी जी चले गए तो लोग उस चबूतरे की ईंट, मिट्टी-पत्थर, सभी कुछ उठा ले गए। चबूतरे का नामोनिशान तक मिट गया था। उस चबूतरे का एक-एक कण लोगों के लिए पूज्य और पवित्र बन गया था।
प्रस्तुति एवं संकलन - राजश्री कासलीवाल

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

भारी बिकवाली के दबाव में सेंसेक्‍स 938 अंक लुढ़का, निफ्टी में भी आई गिरावट