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आत्मा का कल्याण संयम से संभव

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भारतीय संस्कृति सत्य से सुंदर होने की संस्कृति है। पतित से पावन होने की संस्कृति है। भगवान महावीर ने परकल्याण के साथ-साथ स्वकल्याण पर बल दिया और आत्मा का कल्याण संयम से ही संभव है। जीवन में बहुत आवश्यक है।

बिना ब्रेक की गाड़ी जैसे किसी गड्ढे में ले जाकर पटक देती है, ऐसे ही बिना ब्रेक का जीवन पतन के गर्त में पहुंचा देता है। अच्छा दिखने के लिए नहीं अच्छा बनने के लिए परिश्रम करें।

सुखी जीवन जीने के लिए दो बातें हमेशा याद रखें :-

(1) अपनी मृत्यु
(2) भगवान

और दो बातें भूल जाओ :-

(1) आपने कभी किसी का भला किया हो उसे भूल जाओ।
(2) किसी ने आपका कुछ बुरा किया हो उसे भी भूल जाओ।

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संयम का अर्थ है संतुलन :- बैलेंस बाहर से नहीं अंदर से आता है। हमारा मित्र हमें साइकिल दे सकता है। दो चाक, दो हैंडिल और एक सीट। उसने हमें दिया लेकिन संतुलन देना उसके वश में नहीं है। संतुलन हमारे ही पास है। हम चाहें तो हमारा जीवन संतुलित और व्यवस्थित हो सकता है। न चाहें तो कभी नहीं, अर्थात्‌ हमारे जीवन में जब कोई कष्ट आए तो वज्र की तरह कठोर हो जाएं और दूसरों के कष्टों को देखकर फूलों की तरह कोमल हो जाएं।

दूसरों के दुखों को देखकर दुखी होना और उनके दर्द दूर करने का प्रयत्न करना अहिंसा है।

'पर दुख को जो दुख न माने,
पर पीड़ा में सदय न हो
सब कुछ दो पर प्रभो किसी को,
जग में ऐसा हृदय न दो।'

विश्व कल्याण यदि हम चाहते हैं तो हमें व्यक्तिगत स्तर पर सुधार करना होगा। सबसे पहले हम अपने आपको अच्छा बनाएं। तभी हम अपने परिवार को अच्छा बना पाएंगे। परिवार को अच्छा बनाने के बाद ही समाज को बेहतर बना सकते हैं। समाज बेहतर बनेगा तभी राष्ट्र बेहतर बनेगा।

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