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महत्वपूर्ण हैं महावीर के संदेश

जियो और जीने दो

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हमें फॉलो करें भगवान महावीर का जन्म कल्याणक
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भगवान महावीर एक ऐसा व्यक्तित्व है जिन्होंने आध्यात्मिक क्षेत्र में पूर्णता हासिल की। उनके लिए कुछ भी शेष न था और यह हम सभी का जीवन उद्देश्य भी होना चाहिए। भगवान महावीर का जन्म कल्याणक है। वास्तव में महापुरुषों की जयंती बार-बार मनाने का यही उद्देश्य होता है कि हम भी उन जैसे गुणों को धारण करें, उनके जैसे महापुरुष बनने का संकल्प लें। महापुरुष द्वारा अपने समय में दिए गए उपदेश, संदेश तथा सिद्धांत महत्वपूर्ण हैं तथा हमारे लिए दीपक का कार्य कर मार्ग दिखाते हैं।

इसी तरह प्रभु महावीर ने नारी शक्ति को बराबरी का सम्मान दिलाया। नारी भी मोक्ष की अधिकारिणी है। साधना के जीवन में भी नारी काफी मात्रा में संयम जीवन अंगीकार कर रही है। इस तरह अनेक क्षेत्रों में चाहे वह शैक्षणिक, राजनीतिक, सामाजिक आदि सभी क्षेत्रों में नारी की कार्यप्रणाली प्रगति की ओर बढ़ रही है।

अहिंसा का मार्ग ही प्रत्येक मानव का धर्म होना चाहिए। अहिंसा को ग्रहण करने से मनुष्य कई प्रकार की व्याधियों से मुक्त हो जाता है। सभी धर्मों में अहिंसा को अलग-अलग प्रकार से परिभाषित किया गया है। लेकिन उसका मूल मंत्र एक ही है कि व्यक्ति अपने आपको बाहरी नहीं भीतरी जीवन में भी अंहिसा रूपी प्राणी बनाकर रखे। वहीं वर्तमान से लेकर अतीत तक अहिंसा का एक अलग स्थान है।

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भगवान महावीर भारतीय संस्कृति के ऐसे तीर्थंकर है, जिन्होंने जगत को जियो और जीने दो का सूत्र दिया। हर प्राणियों को स्वतंत्रता से जीने का अधिकार दिया है। स्वतंत्रता ही मानव की अमूल्य धरोहर है, इस बात का ज्ञान हम सभी को करवाया।

संकुचित दायरे में रहने वाला इंसान कभी संन्यास नहीं ले सकता। संन्यास लेने के लिए दायरा दिल नहीं बल्कि दरिया दिल चाहिए। भगवान महावीर को संन्यास किसी के कहने से नहीं, बल्कि स्वयं के प्रति जागने के कारण हुआ था।

दिगंबर जैन और श्वेताम्बर जैन भले ही अलग-अलग हैं किन्तु सबका आराध्य देव एक ही है। जैन धर्म के चारों संप्रदाय के तीर्थंकर एक ही हैं, णमोकार मंत्र एक है, ध्वज एक है, महावीर की शिक्षा एक है। फिर भेद कहां है?

बाह्य वेशभूषा, पूजा पद्घति, उपासना और क्रिया भले ही अलग-अलग हो किन्तु सभी जैनी जुड़े हुए जैन धर्म रूपी वटवृक्ष से ही हैं। वटवृक्ष की शाखा-प्रशाखाएं अलग-अलग हो, यह स्वाभाविक है पर जड़ अर्थात मूल तो एक ही है। जैन समाज को चाहिए कि वह अपने दिगंबर-श्वेतांबर जैसे विशेषणों को कचरे के डिब्बे में डालकर सिर्फ जैन होने का विश्लेषण करें।

समय की मांग है कि हम तिथि और तीर्थों को छोड़कर तीर्थंकरों के मार्ग पर चलें। अगर हम ऐसा कर सकें तो यह भगवान महावीर स्वामी के प्रति हमारी सच्ची विनयांजलि होगी।

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