- प्रो. महावीर सरन जैन
सर्वज्ञ महावीर ने लगभग 30 वर्ष के काल में जो उपदेश दिया वह प्राणीमात्र के हितों का संवाहक है। केवल चर्यी में गणधर जिज्ञासाएं प्रस्तुत करते थे। महावीर उनका समाधान करते थे। वे जहां-जहां गए, वहां-वहां के समाजों में उन्होंने चेतनता, गतिशीलता और पुरुषार्थ की भाव चेतना पैदा की।
उन्होंने जो बोला, सहज रूप से बोला, सरल एवं सुबोध शैली में बोला, सापेक्ष दृष्टि से स्पष्टीकरण करते हुए बोला। आपकी वाणी ने लोक हृदय को अपूर्व दिव्यता प्रदान की। आपका समवशरण जहां भी गया, वह कल्याण धाम हो गया।
निर्ग्रन्थ महावीर ने कोई ग्रंथ नहीं लिखा। उन्होंने जो उपदेश दिए, गणधरों ने उनका संकलन किया। वे संकलन ही शास्त्र बन गए। इनमें काल, लोक, जीव, पुद्गल आदि के भेद-प्रभेदों का इतना विशद एवं सूक्ष्म विवेचन है कि यह एक 'विश्व कोष' का विषय नहीं, अपितु ज्ञान-विज्ञान की शाखाओं-प्रशाखाओं के अलग-अलग विश्वकोषों का समाहार है।
इसकी पूर्ण विवेचना संभव नहीं है। यह एक ग्रंथ का विषय नहीं है। सम्प्रति भगवान महावीर द्वारा प्रतिपादित लोक मंगल की हितकारिता के कुछ सूत्रों का उल्लेख किया जा रहा है।