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महावीर जयंती 2023 : 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी की 24 विशेष बातें

हमें फॉलो करें महावीर जयंती 2023 : 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी की 24 विशेष बातें

अनिरुद्ध जोशी

, सोमवार, 3 अप्रैल 2023 (11:24 IST)
Mahavir Janma Kalyanak: जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभनाथ थे और 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर है। महावीर स्वामी का जन्म दिवस संपूर्ण देश में मनाया जा रहा है। मंदिरों में कल्पसूत्र में उल्लेखित भगवान महावीर के जन्म-प्रसंग का वाचन करके सुनाया जाता है और विशेष पूजा अर्चना होती है। आओ जानते हैं भगवान महावीर के संबंध में 24 रोचक बातें।
 
1. जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी जैन धर्म के संस्थापक नहीं प्रतिपादक थे। उन्होंने श्रमण संघ की परंपरा को एक व्यवस्थित रूप दिया था।
 
2. उन्होंने 'कैवल्य ज्ञान' की जिस ऊंचाई को छुआ था वह अतुलनीय है। उनके उपदेश हमारे जीवन में किसी भी तरह के विरोधाभास को नहीं रहने देते हैं।
 
3. एक मान्यता के अनुसार भगवान महावीर का जन्म 27 मार्च 598 ई.पू. अर्थात 2610 वर्ष पहले हुआ था। उस वक्त चैत्र माह की शुक्ल त्रयोदशी थी। 
4. गर्भ तिथि अषाड़ शुक्ल षष्ठी (शुक्रवार 17 ई.पू. 599) और गर्भकाल 9 माह 7 दिन 12 घंटे का माना जाता है।
 
4. वैशाली गणतंत्र के कुंडलपुर में उनका जन्म हुआ था। कुंडलपुर बिहार के नालंदा जिले में स्थित है। यह स्थान पटना से यह 100 ‍किलोमीटर और बिहार शरीफ से मात्र 15 किलोमीटर दूर है। 
 
5. इस स्थान को जैन धर्म में जन्म कल्याणक क्षेत्र माना जाता है। 
 
6. भगवान महावीर ने 72 वर्ष की अवस्था में ईसापूर्व 527 में पावापुरी (बिहार) में कार्तिक (आश्विन) कृष्ण अमावस्या को निर्वाण प्राप्त किया। 
 
7. भगवान महावीर जी के निर्वाण दिवस पर घर-घर दीपक जलाकर दीपावली मनाई जाती है।
 
8. महावीर स्वामीजी के पिता कुंडलपुर के राजा थे जिनका नाम सिद्धार्थ था। उनकी माता त्रिशला (प्रियकारिणी) लिच्छवि राजा चेटकी की पुत्र थीं। 
 
9. महावीर स्वामी जी अपने माता पिता की तीसरी संतान थे। 
 
10. महवीर स्वामी का जन्म नाम वर्धमान था। 
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11. राजकुमार वर्धमान के माता-पिता श्रमण धर्म के पार्श्वनाथ सम्प्रदाय से थे। 
 
12. वर्धमान के बड़े भाई का नाम था नंदीवर्धन व बहन का नाम था सुदर्शना। 
 
13. महावीर को 'वीर', 'अतिवीर' और 'सन्मति' भी कहा जाता है। 
 
14. महावीर स्वामी जंत्रिक कुल से संबंधित थे। उनका वर्ण क्षत्रिय था।
 
15. महावीर के 34 भव (जन्म) है- 1.पुरुरवा भील, 2.पहले स्वर्ग में देव, 3.भरत पुत्र मरीच, 4.पांचवें स्वर्ग में देव, 5.जटिल ब्राह्मण, 6.पहले स्वर्ग में देव, 7.पुष्यमित्र ब्राह्मण, 8.पहले स्वर्ग में देव, 9.अग्निसम ब्राह्मण, 10.तीसरे स्वर्ग में देव, 11.अग्निमित्र ब्राह्मण, 12.चौथे स्वर्ग में देव, 13.भारद्वाज ब्राह्मण, 14.चौथे स्वर्ग में देव, 15. मनुष्य (नरकनिगोदआदि भव), 16.स्थावर ब्राह्मण, 17.चौथे स्वर्ग में देव, 18.विश्वनंदी, 19.दसवें स्वर्ग में देव, 20.त्रिपृष्‍ठ नारायण, 21.सातवें नरक में, 22.सिंह, 23.पहले नरक में, 24.सिंह, 25.पहले स्वर्ग में, 26.कनकोज्जबल विद्याधर, 27.सातवें स्वर्ग में, 28.हरिषेण राजा, 29.दसवें स्वर्ग में, 30.चक्रवर्ती प्रियमित्र, 31.बारहवें स्वर्ग में, 32.राजा नंद, 33.सोलहवें स्वर्ग में, 34.तीर्थंकर महावीर।
 
16. श्वेताम्बर मान्यता के अनुसार माता त्रिशला ने भगवान महावीर स्वामी के जन्म के पूर्व 14 महास्वप्न देखे थे।
 
17. सबसे पहले भगवान महावीर स्वामी ने ही संसार को अहिंसा का महत्व बताया था।
 
18. क्या है पंच महाव्रत : भगवान महावीर ने कैवल्य ज्ञान हेतु धर्म के मूल पांच व्रत बताए हैं- अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह।
 
19. महावीर स्वामी ने अपने उपदेश खासकर प्राकृत भाषा में दिए हैं जबकि वे अर्धमगधी और पाली का उपयोग भी करते थे।
 
20. महावीर के प्रमुख तीन शिष्य गौतम, सुधर्म और जम्बू ने महावीर के निर्वाण के पश्चात जैन संघ का नायकत्व संभाला।
 
21. महावीर स्वामी ने वैशाख शुक्ल 10 को बिहार में जृम्भिका गांव के पास ऋजुकूला नदी-तट पर स्थित साल वृक्ष ने नीचे कैवल्य ज्ञान प्राप्त किया था।
 
22. महावीर स्वामी को लगभग 72 वर्ष से अधिक आयु में कार्तिक कृष्ण अमावस्या-30 को 527 ई.पू. पावापुरी उद्यान (बिहार) में महापरिनिर्वाण प्राप्त हुआ था। 
 
23. महावीर स्वामी का दर्शन पंच महाव्रत, अनेकांतवाद, स्यादवाद और त्रिरत्न में सिमटा हुआ है। इसमें समानता यह है कि दोनों ही धर्म में अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान, सम्यक चरित्र, तप और ध्यान, अनिश्‍वरवाद आदि विद्यमान हैं। 
 
24. दीपावली के दिन 527 ईसापूर्व जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर को निर्वाण प्राप्त हुआ था। उस दिन कार्तिक मास की अमावस्या की ही रात थी। इसी दिन भगवान महावीर के प्रमुख गणधर गौतम स्वामी को भी कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। इसीलिए दीप और रोशनी के त्योहार दिवाली को जैन धर्म में भी धूमधाम से मनाया जाता है।

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