इसमें कोई संशय नहीं कि महावीर का मार्ग पूर्णत:, स्पष्ट और कैवल्य ज्ञान प्राप्त करने का मार्ग है। यह राजपथ है। उनके उपदेश हमारे जीवन में किसी भी तरह के विरोधाभास को नहीं रहने देते। जीवन में विरोधाभास या द्वंद्व है तो फिर आप कहीं भी नहीं पहुँच सकते।
भगवान महावीर को समझने के लिए कैवल्य ज्ञान प्राप्त करना होगा। समुद्र को जानने के लिए समुद्र में डूबना होगा। महावीर की गहराई को फिर भी कोई छू नहीं सकता। धरती पर कुछ गिने-चुने ही महापुरुष हुए हैं। उनमें महावीर ध्यानियों में ऐसे हैं जैसे सागरों में प्रशांत महासागर।
महावीर का जीवन, दर्शन या तप कुछ भी रहा हो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। मुख्य बात यह कि उन्होंने 'कैवल्य ज्ञान' की जिस ऊँचाई को छुआ था वह अवर्णीय है। वह अंतरिक्ष के उस सन्नाटे की तरह है जिसमें किसी भी पदार्थ की उपस्थिति नहीं हो सकती। जहाँ न ध्वनि है और न ही ऊर्जा। केवल शुद्ध आत्मतत्व।
महावीर का जीवन : भगवान महावीर तीर्थंकरों की कड़ी के अंतिम तीर्थंकर हैं। उनका जन्म नाम वर्धमान है। राजकुमार वर्धमान के माता-पिता श्रमण धर्म के पार्श्वनाथ सम्प्रदाय से थे। महावीर से 250 वर्ष पूर्व 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ हुए थे।
भगवान महावीर का जन्म 599 ई.पू. अर्थात 2614 वर्ष पहले वैशाली गणतंत्र के कुंडलपुर के क्षत्रिय राजा सिद्धार्थ के यहाँ हुआ। उनकी माता त्रिशला लिच्छवि राजा चेटकी की पुत्र थीं। भगवान महावीर ने सिद्धार्थ-त्रिशला की तीसरी संतान के रूप में चैत्र शुक्ल की तेरस को जन्म लिया।
महावीर की शिक्षा : वर्धमान के बड़े भाई का नाम नंदिवर्धन व बहन का नाम सुदर्शना था। वर्धमान का बचपन राजमहल में बीता। आठ बरस के हुए, तो उन्हें पढ़ाने, शिक्षा देने, धनुष आदि चलाना सिखाने के लिए शिल्प शाला में भेजा गया।
विवाह मतभेद : श्वेताम्बर संघ की मान्यता है कि वर्धमान ने यशोदा से विवाह किया था। उनकी बेटी का नाम था अयोज्जा या अनवद्या। जबकि दिगम्बर संघ की मान्यता है कि उनका विवाह हुआ ही नहीं था। वे बाल ब्रह्मचारी थे।
श्रामणी दीक्षा : महावीर की उम्र जब 28 वर्ष थी, तब उनके माता-पिता का देहान्त हो गया। बड़े भाई नंदिवर्धन के अनुरोध पर वे दो बरस तक घर पर रहे। बाद में तीस बरस की उम्र में वर्धमान ने श्रमण परंपरा में श्रामणी दीक्षा ले ली। वे 'समण' बन गए। अधिकांश समय वे ध्यान में ही मग्न रहते।
कैवल्य ज्ञान : भगवान महावीर ने 12 साल तक मौन तपस्या तथा गहन ध्यान किया। अन्त में उन्हें 'कैवल्य ज्ञान' प्राप्त हुआ। कैवल्य ज्ञान प्राप्त होने के बाद भगवान महावीर ने जनकल्याण के लिए शिक्षा देना शुरू की। अर्धमगधी भाषा में वे प्रवचन करने लगे, क्योंकि उस काल में आम जनता की यही भाषा थी।
महावीर का तत्वज्ञान : ब्रह्मांड में दो ही तत्व हैं जीव और अजीव अर्थात जड़ और चेतन। दोनों एक दूसरे से परस्पर बद्ध हैं। इस बद्धता को ही कर्माश्रव व कर्मबंध कहते हैं। चेतन का जड़ के इस बंधन से मुक्त होना ही कैवल्य ज्ञान और पूर्ण मुक्त हो जाना निर्वाण है।
इसके अलावा अनेकांतवाद अर्थात वास्तववादी और सापेक्षतावादी बहुत्ववाद सिद्धांत और स्यादवाद अर्थात ज्ञान की सापेक्षता का सिद्धांत। उक्त दोनों सिद्धांतों में सिमटा है भगवान महावीर का दर्शन। दर्शन अर्थात जो ब्रह्मांड और आत्मा के अस्तित्व के प्रारंभ और इसकी स्थिति तथा प्रकार के बारे में खुलासा करता हो।
महावीर का संघ : भगवान महावीर ने कैवल्य ज्ञान मार्ग को पुष्ट करने हेतु अपने अनुयायियों को चार भागों में विभाजित किया- मुनि, आर्यिका, श्रावक और श्राविका। प्रथम दो वर्ग गृहत्यागी परिव्राजकों के लिए और अंतिम दो गृहस्थों के लिए। यही उनका चतुर्विध-संघ कहलाया।
पंच महाव्रत : भगवान महावीर ने कैवल्य ज्ञान हेतु धर्म के मूल पाँच व्रत बताए- अहिंसा, अचौर्य, अमैथुन और अपरिग्रह। उक्त पंचमहाव्रतों का पालन मुनियों के लिए पूर्ण रूप से और गृहस्थों के लिए स्थूलरूप अर्थात अणुव्रत रूप से बताया गया है। हालाँकि महावीर का धर्म और दर्शन उक्त पंच महाव्रत से कहीं ज्यादा विस्तृत और गूह्म है।
महावीर का निर्वाण : महावीर का निर्वाण काल विक्रम काल से 470 वर्ष पूर्व, शक काल से 605 वर्ष पूर्व और ईसवी काल से 527 वर्ष पूर्व 72 वर्ष की आयु में कार्तिक कृष्ण (अश्विन) अमावस्या को पावापुरी (बिहार) में हुआ था। निर्वाण दिवस पर घर-घर दीपक जलाकर दीपावली मनाई जाती है।
महावीर के शिष्य : महावीर के हजारों शिष्य थे जिनमें राजा-महाराजा और अनेकानेक गणमान्य नागरिक थे। लेकिन कुछ प्रमुख शिष्य भी थे जो हमेशा उनके साथ रहते थे। इसके अलावा भी जिन्होंने नायकत्व संभाला उनमें भी प्रमुख रूप से तीन थे।
महावीर के निर्वाण के पश्चात जैन संघ का नायकत्व क्रमश: उनके तीन शिष्यों ने संभाला- गौतम, सुधर्म और जम्बू। इनका काल क्रमश: 12, 12, व 38 वर्ष अर्थात कुल 62 वर्ष तक रहा। इसके बाद ही आचार्य परम्परा में भेद हो गया। श्वेतांबर और दिगंबर पृथक-पृथक परंपराएँ हो गईं।
महावीर का संक्षिप्त परिचय |
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वर्द्धमान, सन्मति, वीर, अतिवीर, महावीर। |
पिता का नाम |
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त्रिशला (प्रियकारिणी) |
वंश का नाम |
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ज्ञातृ क्षत्रिय वंशीय |
गोत्र का नाम |
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चैत्र शुक्ल 13 ई.पू. 599 |
दीक्षा तिथि |
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मंगसिर वदी 10 ई.पू. 570 |
तप काल |
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12 वर्ष, 5 मास, 15 दिन |
कैवल्य ज्ञान प्राप्ति |
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वैशाख शुक्ल 10 ई.पू. 557 |
ज्ञान प्राप्ति स्थान |
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बिहार में जम्भक गाँव के पास ऋजुकूला नदी-तट |
उपदेश काल |
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29 वर्ष 5 मास, 20 दिन |
निर्वाण तिथि |
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लगभग 72 वर्ष की आयु में कार्तिक कृष्ण 30 ई.पू. 527 |
निर्वाण भूमि |
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पावापुरी (बिहार) |
मुख्य सिद्धांत |
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अर्धमगधी, पाली, प्राकृत |
तत्व ज्ञान |
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अनेकांतवाद, स्यादवाद |
उनके समकालिन |