महावीर स्वामी और सर्प
एक बार भगवान् महावीर कहीं जा रहे थे कि रास्ते में लोगों ने उनके पास आकर उन्हें आगे जाने से यह कहकर मना किया कि वहां एक भयानक सर्प रहता है, किंतु महावीर उनकी बात अनसुनी कर आगे बढ़े। तथापि कुछ लोग कौतूहलवश उनके पीछे-पीछे हो चले।
थोड़ी ही देर में सांप ने उन्हें देखा और उनके समीप आकर फुफकार कर विष छोड़ना आरंभ किया, किंतु महावीर ज्यों के त्यों खड़े रहे।
सर्प ने जब देखा कि उसका विष उन पर प्रभावहीन साबित हुआ है, तो उसने सोचा कि यह व्यक्ति निश्चित ही कोई महात्मा है। फिर भी उसने उनके अंगूठे को काट लिया। अचरज से उसने देखा कि खून के स्थान पर दूध बह रहा है। अब तो उसे पूर्णतया विश्वास हो गया और वह भी निश्चल पड़ा रहा।