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आत्मविकास की ज्योति प्रज्ज्वलित करें - महावीर

मन का असंयम ही समस्या का मूल

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भौतिक चकाचौंध एवं आपाधापी के इस युग में मानसिक संतुलन को बनाए रखने की हर व्यक्ति द्वारा आवश्यकता महसूस की जा रही है। वर्तमान की स्थिति को देखकर ऐसा महसूस हो रहा है कि कुछेक व्यक्तियों का थोड़ा सा मानसिक असंतुलन बहुत बड़े अनिष्ट का निमित्त बन सकता है।

मानसिक संतुलन के अभाव में शांति के दर्शन करना, आनंद का स्पर्श करना भी दुर्लभतम बनता जा रहा है, जैसे कि रेत के कणों से तेल को प्राप्त करना। इस अशांत वातावरण में मन को अनुशासित व स्थिर करना दुष्कर कार्य बनता जा रहा है। आज मानव तनाव की नाव में बैठकर जिंदगी का सफर तय कर रहा है।

बच्चा तनाव के साथ ही जन्म लेता है। गर्भ का पोषण ही अशांत, तनाव एवं निषेधात्मक विचारों के साथ होता है, तो बच्चे के मज्जा में तनाव व आक्रोश के बीज कैसे नहीं होंगे। हिंसा के इस युग में एक ज्वलंत प्रश्न है कि शांति कैसे मिले? तनाव से मुक्ति कैसे मिले? मन को स्थिर कैसे बनाया जाए? इन सारे निरुत्तरित प्रश्नों का समाधान आज भी उपलब्ध हो सकता है।

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जरूरी है कि हम उन्हीं तरीकों और विचारों के साथ किसी भी समस्या का हल नहीं करें, जिनके साथ हमने वह समस्या पैदा की है। समस्या की उत्पत्ति और समस्या के समाधान का मार्ग कभी भी एक नहीं हो सकता।

महावीर ने आत्मा को समय माना। उन्होंने ऐसा इसलिए माना कि जिस दिन आप इतने शांत एवं संतुलित हो जाएं कि वर्तमान आपकी पकड़ में आ जाए तो समझना चाहिए कि आप सामायिक में प्रवेश के लिए सक्षम हो गए हैं।

सामायिक अथवा ध्यान जीवन की आंतरिक अनुभूति है जिसका प्रभाव हमारे बाह्य जीवन में परिलक्षित होता है। इसीलिए बाहर के जगत में समय और क्षण के भीतर घटने वाली घटनाओं की उपेक्षा नहीं होनी चाहिए, बल्कि उन्हें रूपांतरित करने का प्रयास होना चाहिए।


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मन को अनुशासित करना जितना एक योग साधन के लिए उपयोगी है उतना ही एक साधारण व्यक्ति के लिए भी। यह मानव मात्र के लिए उपयोगी है। मनुष्य अनन्त शक्ति का भंडार है। किंतु मन को संतुलित करने का मार्ग नहीं जानता, इसलिए वह अपने आपको कभी निर्बल, कभी दुखी, कभी अज्ञानी और कभी अशांति का अनुभव करता है।

इन स्थितियों से निजात पाने का मार्ग है-संकल्प। असल में संकल्प हमें हमारी जीवन-ऊर्जा को अधोगामी होने से बचाता है बल्कि वह उसे उर्ध्वगामी बनाता है।

आधुनिक युग का प्रत्येक व्यक्ति किसी न किसी प्रकार की चिंता व तनाव से ग्रस्त है। आज विश्व के सर्वाधिक विकसित व संपन्न राष्ट्र अमेरिका में लोग तनाव व चिंता से निजात पाने के लिए प्रतिवर्ष 10 करोड़ डॉलर से अधिक व्यय करते हैं तथा कई टन मादक द्रव्यों का सेवन करते हैं। तनाव की यह समस्या नई नहीं है।

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प्राचीन काल में भी व्यक्ति इसके दुष्परिणामों से मुक्त नहीं था। लेकिन वर्तमान में इस समस्या ने काफी उग्र रूप धारण कर लिया है। जहां समस्या है वहां समाधान भी है। अशांत मन को अनुशासित करने की प्रक्रिया का मार्गदर्शन देने वाली कबीरदासजी की इस प्रेरणा का स्मरण रखें-जिन जागा तिन माणिक पाया।

किसी भी समस्या के मूल में मन का असंयम होता है। जब मन में कोई बुरा विचार पैदा होता है तो हमारा आचार व व्यवहार भी बुरा बन जाता है। शक्ति जागरण व शांत जीवन का महत्वपूर्ण सूत्र है-संयम। मन को अनुशासित कर असंयम से होने वाली समस्या पर काबू पाया जा सकता है।

तनाव व आपाधापी की जिंदगी में शांति के सुमन खिल सकते हैं, बशर्ते जीवन के प्रति सकारात्मकता का क्रम दीर्घकालित व निरंतरता लिए हुए हो। दीनता और हीनता की ग्रंथि दुर्भेद्य कारागार के बंधन के समान है। उसे तोड़े बिना विकास का कोई भी सपना साकार नहीं हो सकता।


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