Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

भगवान महावीर : अहिंसा के सिद्धांत

दूसरे के दुःख दूर करना ही अहिंसा है

Advertiesment
हमें फॉलो करें भगवान महावीर : अहिंसा के सिद्धांत
ND
भगवान महावीर ने दूसरे के दुःख दूर करने की धर्मवृत्ति को अहिंसा धर्म कहा है। महावीर के अनुसार अहिंसा के सिद्धांत में समाहित है मानवीय संवेदनाओं की पहचान, जीवन-मूल्यों और आदर्शों की महक और सात्विक वृत्तियों का प्रकाश।

सदाचार, आचरण की शुद्धता और विचारों की स्वच्छता तथा चारित्रिक आदर्श से मनोवृत्तियों का विकास इन सभी नैतिक सूत्रों की आधार भूमि है अहिंसा। यही धर्म का सच्चा स्वरूप भी है।

सर्वधर्म समभाव की आधारशिला है, समता, सामाजिक न्याय और मानव प्रेम की प्रेरक शक्ति भी है। सच्ची अहिंसा वह है जहाँ मानव व मानव के बीच भेदभाव न हो, हृदय और हृदय, शब्द और शब्द, भावना और भावना के बीच समन्वय हो। सारी वृत्तियाँ एक तान, एक लय होकर मानवीय संवेदनाओं के इर्द-गिर्द घूमें। सारे भेद मिटे, अंतर हट जाएँ और एक ऐसी मधुमती भूमिका का सृजन हो जहाँ हम सुख-दुःख बाँटे, आँसू और मुस्कान भी बाँटे।

महात्मा गांधी के मतानुसार- 'अहिंसा का, सत्य का मार्ग जितना सीधा है, उतना ही तंग भी, खांडे की धार पर चलने के समान है। नट जिस डोर पर सावधानी से नजर रखकर चल सकता है, सत्य और अहिंसा की डोर उससे भी पतली है। जरा चूके कि नीचे गिरे। पल-पल की साधना से ही उसके दर्शन होते हैं।'

वस्तुतः अहिंसक जीवन जीना बहुत बड़ी साधना है। हम अहिंसक होने का ढोंग कर रहे हैं, अहिंसक जीवन जी नहीं पा रहे हैं।

यह कैसी विडंबना है कि कुछ अहिंसा का दावा करने वाले कीड़े-मकोड़े को बचाने का प्रयत्न करते हैं किंतु भूखे, नंगे, दरिद्र मानव को छटपटाते हुए देखकर भी मन में करुणा नहीं लाते। बहुत बड़े-बड़े अहिंसावादी लोगों का उनके नौकरों के साथ जो व्यवहार होता है, उसे सुनकर दाँतों तले उँगली दबानी पड़ जाती है। वे हरी सब्जी खाने में हिंसा मानते हैं पर अपने आश्रितों को पीड़ित-प्रताड़ित करने में या उसकी आवश्यकताओं का शोषण करने में चातुर्य और कुशलता समझते हैं। यह हमारी अहिंसा की विडंबना है।

webdunia
ND
मंदिर में जाना, सामायिक करना, भजन-कीर्तन करना, यह सब व्यक्तिगत साधना के तरीके हैं। यदि कोई समझता हो कि इन तरीकों से अहिंसा की साधना पूरी हो जाएगी तो यह निरा भ्रम है। हमारा व्यवहार, व्यापार आदि कैसा है? यह देखकर ही अहिंसक जीवन की कसौटी की जा सकती है। अधिक-से अधिक शोषण के जरिए पैसा एकत्रित करने की धुन अहिंसा की साधना में सबसे बड़ी बाधा है।

तीर्थंकर महावीर के अनुसार दृष्टि निपुणता तथा सभी प्राणियों के प्रति संयम ही अहिंसा है। दृष्टि निपुणता का अर्थ है- सतत जागरूकता तथा संयम का अर्थ है- मन, वाणी और शरीर की क्रियाओं का नियमन। जीवन के स्तर पर जागरूकता का अर्थ तभी साकार होता है जब उसकी परिणति संयम में हो। संयम का लक्ष्य तभी सिद्ध हो सकता है जब उसका जागरूकता द्वारा सतत दिशा-निर्देश होता रहे। लक्ष्यहीन और दिग्भ्रष्ट संयम अर्थहीन काय-क्लेश मात्र बनकर रह जाता है।

भगवान महावीर ने दूसरे के दुःख दूर करने की धर्मवृत्ति को अहिंसा धर्म कहा है। सभी प्राणी आत्म सत्ता के स्तर पर समान है। उनमें अंतर्निहित संभावनाएँ समान हैं। कोई भी आत्मसाधक महापुरुष लौकिक और सामाजिक व्यवस्था के आधारभूत तत्वों की उपेक्षा नहीं कर सकता। महावीर ने पद दलित लोगों को सामाजिक सम्मान देकर उनमें आत्माभिमान जगाया।

धर्म के तीन मुख्य अंग होते हैं- 'दर्शन, कर्मकांड और समाजनीति। आधुनिक संदर्भ में किसी की धर्म की उपयोगिता का मूल्यांकन उसकी समाजनीति से किया जाता है। महावीर तो तत्कालीन आडंबरपूर्ण समाज व्यवस्था के विरोध में हुई एक सशक्त क्रांति के पुरोधा थे।

उन्होंने वर्ग-वैमनस्य को मिटाकर समता की स्थापना, दार्शनिक मतवादों का समन्वय, धार्मिक आडंबरों का बहिष्कार, पशु बलि का निषेध, अनावश्यक धन संचयन की वर्जना और अपनी संचित राशि पर स्वामित्व की भावना का निराकरण, आदि कार्य-प्रवृत्तियों द्वारा सामाजिक सुधार के आंदोलन की गति को तीव्रता और क्षिप्रता प्रदान की।

महावीर ने अहिंसा से सामाजिक क्रांति, अपरिग्रह से आर्थिक क्रांति और अनेकांत द्वारा वैचारिक क्रांति का सूत्रपात किया।

प्रस्तुतिः ललित गर्ग

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi