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मानवता का मोती है क्षमा

महावीर जयंती- 7 अप्रैल

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- अजहर हाशमी

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क्षमा माँगने से अहंकार ढलता है और गलता है, तो क्षमा करने से सुसंस्कार पलता है और चलता है। क्षमा शीलवान का शस्त्र और अहिंसक का अस्त्र है। क्षमा, प्रेम का परिधान है। क्षमा, विश्वास का विधान है। क्षमा, सृजन का सम्मान है। क्षमा, नफरत का निदान है। क्षमा, पवित्रता का प्रवाह है। क्षमा, नैतिकता का निर्वाह है। क्षमा, सद्गुण का संवाद है। क्षमा, अहिंसा का अनुवाद है। क्षमा, दिलेरी के दीपक में दया की ज्योति है। क्षमा, अहिंसा की अँगूठी में मानवता का मोती है।

प्रत्येक धर्म में क्षमा की महिमा बतलाई गई है। उदाहरणार्थ सनातन धर्म में क्षमा-संबंधी कई आख्यान और दृष्टांत हैं। प्रतिशोध की आग में जल रहे ऋषि विश्वामित्र का महर्षि वशिष्ठ की हत्या के लिए वशिष्ठाश्रम में जाना और अनदेखे-अचीन्हे रहने के लिए छिपकर वार्तालाप सुनने के प्रयास में (जब वशिष्ठजी द्वारा अरुंधती को विश्वामित्र की तपस्या के तेज की महिमा बताई जा रही थी) अपनी प्रशंसा सुनकर पश्चाताप में डूबकर वशिष्ठजी से क्षमा माँगना ऐतिहासिक दृष्टांत है।

'यहाँ क्षमा माँगने वाले विश्वामित्र और क्षमा करने वाले वशिष्ठ दोनों ही सशक्त, समर्थ और सबल हैं। विश्वामित्र प्रतिशोध की शक्ति रखते हैं, परंतु वशिष्ठ से क्षमा माँग लेते हैं। क्षमा माँगते ही विश्वामित्र का अहंकार गलता है और तत्क्षण वशिष्ठ कह उठते हैं, 'ब्रह्मर्षि विश्वामित्र! कैसे हैं आप?' (उल्लेखनीय है कि विश्वामित्र की प्रतिशोध-भावना और क्रोध के कारण ही वशिष्ठ ने उन्हें ब्रह्मर्षि का संबोधन नहीं दिया था, किंतु जब विश्वामित्र का प्रतिशोध पश्चाताप में बदल गया अर्थात वे क्षमाप्रार्थी हो गए तो वशिष्ठ ने उन्हें 'ब्रह्मर्षि' कहकर पुकारा)।

उधर, वशिष्ठ भी प्रतिकार की क्षमता रखते हैं, परंतु विश्वामित्र को क्षमा कर देते हैं। इस्लाम धर्म के प्रवर्तक पैगम्बर हजरत मोहम्मद (सल्ल.) द्वारा उस बुढ़िया को क्षमा किया जाना, जो हर दिन उन पर कूड़ा-करकट फेंकने का दुष्कृत्य करती थी, क्षमा के महत्व की महत्वपूर्ण मिसाल है।

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जैन धर्म में तो क्षमापना का विशेष महत्व है। इन पंक्तियों के लेखक के विनम्र मत में, जैन धर्म अहिंसा की क्यारी में संयम से सिंचित, क्षमा की फुलवारी है। और अधिक स्पष्ट करूँ तो यह कहना उचित होगा कि जैन धर्म अहिंसा की डोरी से गुँथा हुआ प्रेम का पालना है जिसमें क्षमापनारूपी शिशु किलकारियाँ करता है।

भगवान महावीर (जब वे तपस्या में रत थे तब) के कानों में संगम ग्वाला कीलें ठोंकता है (यह भ्रम पालकर कि बैलों का चोर यही है) लेकिन क्षमा की शक्ति से ओत-प्रोत प्रभु महावीर स्वामी उसे क्षमा कर देते हैं। यह थी तीर्थंकर महावीर स्वामी की क्षमाशीलता, यह थी उनकी अहिंसा साधना, यह थी उनकी प्राणीमात्र के कल्याण की कामना, यह थी उनकी मैत्री-भावना। भगवान महावीर क्षमापना के पुरोधा हैं। और अंत में यह कि अहिंसा जैन-धर्म का हृदय है। क्षमा इस हृदय की धड़कन है। क्षमा होंठों का उच्चारण नहीं, आत्मा का आचरण होना चाहिए।

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