क्षमा के बारे में महावीर स्वामी के उपदेश-
खामेमि सव्वे जीवे सव्वे जीवा खमंतु मे।
मित्ती मे सव्वभूएसु वेरं मज्झं न केणइ॥
क्षमा के बारे में स्वामीजी ने कहा है- मैं सब जीवों से क्षमा चाहता हूँ। मैं सब जीवों को क्षमा करता हूँ। सब जीवों के प्रति मेरा मैत्रीभाव है। मेरा किसी से वैर नहीं है।
सव्वस्स जीवरासिस्स भावओ धम्मनिहिअनिअचित्तो।
सव्वे खमावइत्ता खमामि सव्वस्स अहयं पि॥
मैं सच्चे हृदय से धर्म में स्थिर हुआ हूँ। सब जीवों से मैं सारे अपराधों की क्षमा माँगता हूँ। सब जीवों ने मेरे प्रति जो अपराध किए हैं, उन्हें मैं क्षमा करता हूँ।
जं जं मणेण बद्धं जं जं वायाए भासियं पावं।
जं जं कायेण कयं मिच्चा मि दुक्कडं तस्स॥
मैंने अपने मन में जिन-जिन पाप की वृत्तियों का संकल्प किया हो, वचन से जो-जो पाप वृत्तियाँ प्रकट की हों और शरीर से जो-जो पापवृत्तियाँ की हों, मेरी वे सभी पापवृत्तियाँ विफल हों। मेरे पाप मिथ्या हों।