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पुण्य का संग्रह प्रयास

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तीर्थों के राजा प्रयाग में अर्द्धकुंभ का पर्व होने से यहाँ पर इस वर्ष का पुण्य अमृत स्थित है। इस स्थान पर दैवीय शक्ति से ओतप्रोत ऊर्जा, गंगाजी की दिव्यता, संतों का आशीर्वचन, भक्तों की भक्ति एवं दानियों की उदारता से यह भूमि इस पर्व पर देवभूमि हो जाएगी।

इस अवसर पर स्नान, व्रत, दान, जप, पाठ, संत सेवा करना जीवन को पवित्र बनाने का सहज उपाय है। गंगा स्नान के पश्चात भगवान विष्णु, भगवान शिव व सूर्य आदि देवों का ध्यान करते हुए तिल्ली, पुष्प, चावल सहित अर्घ्य देना चाहिए। देवता के स्तोत्र का जप-पाठ, पितरों के लिए तर्पण व दान करने के पश्चात संतों के दर्शन व सम्मान करना चाहिए।

तिल, शक्कर, फल, गर्म वस्त्रों का दान शास्त्रों में शुभ फलकारक है। जो जन प्रयाग में 14 जनवरी को नहीं जा सके वे उस स्थान का स्मरण करके स्नान के जल में गंगाजल मिलाकर स्नान करें। इस तरह स्नान के पश्चात अपनी इस पर्व की दिनचर्चा आरंभ करें।
  सूर्य संक्रांति यूँ तो हर माह आती है जब हिन्दू पंचांग के अनुसार सूर्य राशि परिवर्तन करता है। लेकिन जनवरी की सूर्य संक्रांति का विशेष महत्व है, क्योंकि इस दिन से सूर्य दक्षिण पंथी मार्ग से उत्तर पंथी मार्ग की ओर बढ़ता है।      


आ रही रवि की सवारी
नव-किरण का रथ सजा है,

कलि-कुसुम से पथ सजा है,
बादलों-से अनुचरों ने स्वर्ण की पोशाक धारी।

आ रही रवि की सवारी।
विहग बंदी और चारण,

गा रहे हैं कीर्ति-गायन,
छोड़कर मैदान भागी तारकों की फौज सारी।

आ रही रवि की सवारी।
चाहता, उछलूँ विजय कह,

पर ठिठकता देखकर यह-
रात का राजा खड़ा है राह में बनकर भिखारी।
आ रही रवि की सवारी। - हरिवंशराय बच्चन

सूर्य संक्रांति यूँ तो हर माह आती है जब हिन्दू पंचांग के अनुसार सूर्य राशि परिवर्तन करता है। लेकिन जनवरी की सूर्य संक्रांति का विशेष महत्व है, क्योंकि इस दिन से सूर्य दक्षिण पंथी मार्ग से उत्तर पंथी मार्ग की ओर बढ़ता है। इस परिवर्तन की खबर मौसम भी बिना नागा देता है। हवाएँ इसका पहला प्रमाण हैं। शीत का झोंका इसका दूसरा प्रमाण है। आज आसमान में लहराती रंग-बिरंगी पतंगें इन हवाओं के सबूत देंगी जो मौसम में परिवर्तन का संदेश लाई है।

होते थे उत्सव अधिकारी
वर्तमान में हम शादियों में भी इवेंट मैनेजमेंट का स्वरूप देखते हैं, जिसमें प्रोफेशनल तरीके से शादियों में सभी रस्मों को अदा किया जाता था। राजा-रजवाड़ों के समय भी उत्सव अधिकारी हुआ करते थे, जिनकी यह जिम्मेदारी होती थी कि सभी पर्वों को बिना किसी बाधा के संपन्नळ करवाए। यह अधिकारी बाकायदा पंद्रह-बीस दिन पूर्व से सभी तैयारियों के संबंध में योजना बनाते थे और इनके कई सहायक भी हुआ करते थे, जो इनके काम में हाथ बँटाते थे। इनका काम भी आसान नही था। राज दरबार में कैसी सजावट की जाए, इसके भी नियम बने होतेथे। यह नियम भी इतनी बारीकी में बने हुए थे कि कौन से दरबार में कौन से गमले व पर्दे लगाए जाएँगे, इसकी सूची भी पहले से ही बना ली जाती थी।

प्राचीन साहित्य में सूर्य का वं
ब्रह्मापुत्र मरीचि के बेटे कश्यप की पत्नी अदिति की कोख से सूर्य का जन्म हुआ। सूर्य के तीन विवाह का उल्लेख है। तीन पत्नियाँ संज्ञा, राज्ञी और प्रभा थीं। दस पुत्र और तीन पुत्रियाँ हुईं। प्रसिद्ध पुत्र वैवस्वतमनु ने ही मानव संस्कृति को जन्म दिया। बाद में इसी वंश परंपरा का सिलसिला अनेक देवी-देवताओं तक पहुँचा।

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