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मकर संक्रांति का संदेश!

मकर संक्रांति : सूर्य, पतंग और तिळ-गुड

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- ज्योत्स्ना भोंडवे
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हमारे देश में अधिकांश त्योहार महज रूढ़ियों और परंपराओं से जुड़े न होकर उनके पीछे ज्ञान, विज्ञान, कुदरत स्वास्थ्य और आयुर्वेद जैसे तमाम मुद्दे जुड़े हैं। मसलन 'मकर संक्रांति' को ही लें - पौष मास में सूर्य के मकर राशि में (तय तारीख के मुताबिक 14 जनवरी) प्रवेश के साथ मनाया जाता है।

यूं तो सूर्य साल भर में 12 राशियों से होकर गुजरता है। लेकिन इसमें भी 'कर्क' और 'मकर' राशि में इसके प्रवेश का विशेष महत्व है। क्योंकि मकर में प्रवेश के साथ सूर्य 'उत्तरायण' हो जाता है। जिसके साथ बढ़ती गति के चलते दिन बड़ा तो रात छोटी हो जाती है। जबकि कर्क में सूर्य के 'दक्षिणायन' होने से रात बड़ी और दिन छोटा हो जाता है।

पुराणों के मुताबिक 'उत्तरायण' का विशेष महत्व है और इस दौरान आई मृत्यु में 'मोक्ष' की प्राप्ति होती है। यही वजह रही कि महाभारत के युद्ध में भीष्म पितामह ने शरशय्या पर सूर्य के उत्तरायण होने तक इंतजार किया था।

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'मकर संक्रांति' यानी प्रकाश पर अंधकार के विजय का पर्व। मानवीय जीवन जो प्रकाश और अंधकार से घिरा है। अंधकार से प्रकाश को जाने के इस संक्रमण का दौर अज्ञान के अंधेरे में घिरे मानवी मन को ज्ञान के प्रकाश से निखार देता है।

आप जरा इसके व्यावहारिक नजरिए पर गौर करें - ग्रामीण कहावत के मुताबिक 'धन के पंद्रह, मकर पच्चीस चिल्ला जाड़े दिन चालीस।' जाड़ा पूरे चालीस दिन का होता है। जिसमें से सूर्य के धनु राशि में रहते पंद्रह दिन ठंड अपने पूरे शबाब पर होती है।

सूर्य के उत्तरायण होते ही दिन बड़ा होने के साथ कुदरत भी राहत महसूस करती है। वहीं तिळ-गुड आपस में मेलजोल बढ़ाने के साथ आपसी बैर-भाव भूल कर प्यार और सुलह का निर्माण करने का संदेश देता है क्योंकि मीठा बोलने से दिल खुश और सोच सकारात्मक होती है

मकर संक्रांति का संदेश है- 'तिळ गुड घ्या आणि गोड गोड बोला।'

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