शनिवार के दिन मकर संक्रांति आना दुर्लभ संयोग
मकर संक्रांति के शुभ मुहूर्त 14 जनवरी को सुबह 7 बजकर 50 मिनट से लेकर शाम 05 बजकर 57 मिनट तक है। साल में 12 संक्रांतियां आती है उनमें से इस मकर संक्रांति का सर्वाधिक महत्व है क्योंकि इस दिन सूर्य देव मकर राशि में आते हैं और इसके साथ देवताओं का दिन शुरु हो जाता है।
मकर संक्रांति के दिन स्नान, दान और पूजन का बड़ा ही महत्व है। लेकिन इन सबसे ज्यादा महत्व है सूर्य देव का अपने पुत्र शनि के घर में आना। इस साल मकर संक्रांति पर कुछ ऐसा संयोग बना है जिससे सूर्य और शनि दोनों को एक साथ खुश किया जा सकता है और यह ऐसा संयोग है जो कई वर्षों के बाद बना है।
दरअसल इस साल मकर संक्रांति 14 जनवरी को है क्योंकि इस दिन सूर्य देव सुबह 7 बजकर 38 मिनट पर मकर राशि में प्रवेश कर रहे हैं। संयोग की बात है कि इस दिन शनिवार का दिन है। शनिवार के दिन मकर संक्रांति का होना एक दुर्लभ संयोग है। यह शनि को खुश करने का यह बहुत ही अच्छा अवसर है।
शास्त्रों के अनुसार उत्तरायन देवताओं का दिन, तो दक्षिणायन देवताओं की रात्रि होती है। यह समय दान के लिए विशेष महत्व रखता है। इस समय पवित्र नदियों में किया गया स्नान सभी पापों से मुक्ति दिलवाने वाला.होता है।
सूर्य जब उत्तरायन का होता है,उस समय किए गए समस्त शुभ कार्य विशेष लाभ देने वाले माने जाते हैं। यही वजह है कि जनवरी से लेकर जून के मध्य तक सूर्य उत्तरायन होता है, उस समय शुभ कार्यों के लिएके लिए मुहूर्त अधिक होते हैं।
हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार संक्रांति का अर्थ होता है सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में जाना। अत: वह राशि जिसमें सूर्य प्रवेश करता है, संक्रान्ति की संज्ञा से विख्यात है। 14 जनवरी के दिन या इसके आसपास सूर्य मकर राशि में प्रवेश करते हैं इसलिए इसे मकर संक्रांति कहा जाता है। मकर संक्रांति के दिन दान-पुण्य करने का विधान है, मान्यता है कि ऐसा करने से पितर प्रसन्न होते हैं और मनुष्य के पुण्य-कर्मों में वृद्धि होती है।
हिन्दू धर्म के अनुसार संसार के दिखाए देने वाले देवों में से एक भगवान सूर्य की गति इस दिन उत्तरायण हो जाती है। मान्यता है कि सूर्य की दक्षिणायन गति नकारात्मकता का प्रतीक है और उत्तरायण गति सकारात्मकता का। गीता में यह बात कही गई है कि कि जो व्यक्ति उत्तरायण में शरीर का त्याग करता है, उसे मोक्ष प्राप्त होता है।
मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी भागीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा उनसे मिली थीं। इसके अलावा महाभारत काल के भीष्म पितामह ने भी अपना देह त्यागने के लिए मकर संक्रांति के पावन दिन का ही चयन किया था।
आध्यात्मिक महत्व होने के साथ इस पर्व को लोग प्रकृति से जोड़कर भी देखते हैं जहां रोशनी और ऊर्जा देने वाले भगवान सूर्य देव की पूजा होती है।