भारतीय नववर्ष का प्रारंभ यूं तो चैत्र माह से होता है जो कि चंद्रमास पर आधारित है परंतु भारतीय कैलेंडर सिर्फ चंद्रमास पर ही आधारित नहीं है। यह सौर मास, सवन मास, नक्षत्र मास पर भी आधारित है। सभी मासों का आधार पंचांग है। दरअसल, मास के चार भेद हैं- सौर, चंद्र, सावन, नक्षत्र। सूर्य की एक संक्रांति से दूसरी संक्रांति का समय सौरमास कहलाता है।
चन्द्र के आधार पर माह के 2 भाग हैं- कृष्ण और शुक्ल पक्ष। इसी तरह सूर्य के आधार पर वर्ष के 2 भाग हैं- उत्तरायन और दक्षिणायन। मकर संक्रांति के दिन से सूर्य उत्तरायन हो जाता है। उत्तरायन अर्थात इस समय से धरती का उत्तरी गोलार्द्ध सूर्य की ओर मुड़ जाता है, तो उत्तर ही से सूर्य निकलने लगता है। इसे सोम्यायन भी कहते हैं। 6 माह सूर्य उत्तरायन रहता है और 6 माह दक्षिणायन। जब सूर्य कर्क में प्रवेश करता है तो दक्षिणायन हो जाता है। मकर संक्रांति से लेकर कर्क संक्रांति के बीच के 6 मास के समयांतराल को उत्तरायन कहते हैं। सूर्य के उत्तरायण के समय चंद्रमास का पौष-माघ मास चल रहा होता है जबकि दक्षिणायन के अषाढ़-श्रावण मास चल रहा होता है।
12 राशियों को सौर मास माना जाता है- सौर मास के नाम:- मेष, वृषभ, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, कुंभ, मकर, मीन।
सौर वर्ष का दिन प्रारंभ : सौर नववर्ष सूर्य के मेष राशि में जाने से प्रारंभ होता है। सूर्य जब एक राशि ने निकल कर दूसरी राशि में प्रवेश करता है तब दूसरा माह प्रारंभ होता है। 12 राशियां सौर मास के 12 माह है। सौरवर्ष का पहला माह मेष होता है जबकि चंद्रवर्ष का महला माह चैत्र होता है। नक्षत्र वर्ष का पहला माह चित्रा होता है।
सौरमास क्या है जानिए:- सूर्य के राशि परिवर्तन को संक्रांति कहते हैं। सौर मास के नववर्ष की शुरुआत मकर संक्रांति से मानी जाती है। वर्ष में 12 संक्रांतियां होती हैं, उनमें से 4 का महत्व है- मेष, कर्क, तुला और मकर संक्रांति। वृषभ, सिंह, वृश्चिक, कुंभ संक्रांति विष्णुपद संज्ञक हैं। मिथुन, कन्या, धनु, मीन संक्रांति को षडशीति संज्ञक कहा गया है। मेष, तुला को विषुव संक्रांति संज्ञक तथा कर्क, मकर संक्रांति को अयन संज्ञक कहा गया है।
यह सौरमास प्राय: 30, 31 दिन का होता है। कभी-कभी 28 और 29 दिन का भी होता है। मूलत: सौरमास (सौर-वर्ष) 365 दिन का होता है। इसी सौरमास के आधार पर ही रोमनों ने अपना कैलेंडर विकसित किया था। फिर इसमें परिवर्तन कर ग्रेगोरियन कैलेंडर विकसित किया किया, जो सौरमास के समान है।
उत्तरायन और दक्षिणायन सूर्य:- सूर्य जब धनु राशि से मकर में जाता है, तब उत्तरायन होता है। उत्तरायन के समय चन्द्रमास का पौष-माघ मास चल रहा होता है। सूर्य मिथुन से कर्क राशि में प्रवेश करता है, तब सूर्य दक्षिणायन होता है। सौरमास के अनुसार जब सूर्य उत्तरायन होता है, तब उत्सवों के दिन शुरू होते हैं और सूर्य जब दक्षिणायन होता है, तब व्रतों के दिन शुरू होते है। व्रत का समय 4 माह रहता है जिसे चातुर्मास कहते हैं। चातुर्मास में प्रथम श्रावण मास को सर्वोपरि माना गया है।
यदि सूर्य का राशि में प्रवेश दिन में होता है तो वह दिन मास का प्रथम दिन होता है परंतु रात्रि में प्रवेश होता है तो दूसरा दिन मास का प्रथम दिन होता है। किसी राशि में सूर्य के प्रवेश का काल विभिन्न पंचांगों में भिन्न भिन्न स्थानीय समय के अनुसार होता है। अतः मास के प्रथम दिन के विषय में एक दिन का अन्तर हो सकता है।
मकर संक्रांति क्या है : मकर संक्रांति में 'मकर' शब्द मकर राशि को इंगित करता है जबकि 'संक्रांति' का अर्थ संक्रमण अर्थात प्रवेश करना है। मकर संक्रांति के दिन सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है। एक राशि को छोड़कर दूसरे में प्रवेश करने की इस विस्थापन क्रिया को संक्रांति कहते हैं। चूंकि सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है इसलिए इस समय को 'मकर संक्रांति' कहा जाता है।
पृथ्वी साढ़े 23 डिग्री अक्ष पर झुकी हुई सूर्य की परिक्रमा करती है तब वर्ष में 4 स्थितियां ऐसी होती हैं, जब सूर्य की सीधी किरणें 21 मार्च और 23 सितंबर को विषुवत रेखा, 21 जून को कर्क रेखा और 22 दिसंबर को मकर रेखा पर पड़ती है। वास्तव में चन्द्रमा के पथ को 27 नक्षत्रों में बांटा गया है जबकि सूर्य के पथ को 12 राशियों में बांटा गया है। भारतीय ज्योतिष में इन 4 स्थितियों को 12 संक्रांतियों में बांटा गया है जिसमें से 4 संक्रांतियां महत्वपूर्ण होती हैं- मेष, तुला, कर्क और मकर संक्रांति।
हिन्दू धर्मशास्त्रों के अनुसार मकर संक्रांति से देवताओं का दिन आरंभ होता है, जो आषाढ़ मास तक रहता है। हिन्दू धर्मशास्त्रों के अनुसार मकर संक्रांति से देवताओं का दिन आरंभ होता है, जो आषाढ़ मास तक रहता है। कर्क संक्रांति से देवताओं की रात प्रारंभ होती है। अर्थात देवताओं के एक दिन और रात को मिलाकर मनुष्य का एक वर्ष होता है। मनुष्यों का एक माह पितरों का एक दिन होता है। उनका दिन शुक्ल पक्ष और रात कृष्ण पक्ष होती है।
चंद्रमास क्या है?
सौर मास से चंद्र मास लगभग 10 दिन छोटा है। इस अंतर के चलते ही प्रत्येक तीन वर्ष में चंद्रमास में एक अधिमास जोड़ दिया जाता है। चन्द्रमा की कला की घट-बढ़ वाले 2 पक्षों (कृष्ण और शुक्ल) का जो एक मास होता है वही चन्द्रमास कहलाता है। यह शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से प्रारंभ होकर कृष्ण पक्ष अमावस्या को पूर्ण होने वाला 'अमांत' मास मुख्य चन्द्रमास है। कृष्ण प्रतिपदा से 'पूर्णिमात' पूरा होने वाला गौण चन्द्रमास है। यह तिथि की घट-बढ़ के अनुसार 29, 30 व 28 एवं 27 दिनों का भी होता है। हिन्दू पंचांग के इस चन्द्रमास के 30 दिन को चन्द्र कला के आधार पर 15-15 दिन के 2 पक्षों में बांटा गया है- शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष। शुक्ल पक्ष के अंतिम दिन को पूर्णिमा कहते हैं और कृष्ण पक्ष के अंतिम दिन को अमावस्या।
चन्द्रमास के नाम:- 1. चैत्र, 2. वैशाख, 3. ज्येष्ठ, 4. आषाढ़, 5. श्रावण, 6. भाद्रपद, 7. आश्विन, 8. कार्तिक, 9. अगहन, 10. पौष, 11. माघ और 12. फाल्गुन।
जानिए नक्षत्र मास क्या है:- आकाश में स्थित तारा-समूह को नक्षत्र कहते हैं। साधारणत: ये चन्द्रमा के पथ से जुडे हैं। ऋग्वेद में एक स्थान पर सूर्य को भी नक्षत्र कहा गया है। अन्य नक्षत्रों में सप्तर्षि और अगस्त्य हैं। नक्षत्र से ज्योतिषीय गणना करना वेदांग ज्योतिष का अंग है। नक्षत्र हमारे आकाश मंडल के मील के पत्थरों की तरह हैं जिससे आकाश की व्यापकता का पता चलता है। वैसे नक्षत्र तो 88 हैं किंतु चन्द्रपथ पर 27 ही माने गए हैं। जिस तरह सूर्य मेष से लेकर मीन तक भ्रमण करता है, उसी तरह चन्द्रमा अश्विनी से लेकर रेवती तक के नक्षत्र में विचरण करता है तथा वह काल नक्षत्र मास कहलाता है। यह लगभग 27 दिनों का होता है इसीलिए 27 दिनों का एक नक्षत्र मास कहलाता है।
नक्षत्र मास के नाम:- 1.चित्रा, 2.स्वाति, 3.विशाखा, 4.अनुराधा, 5.ज्येष्ठा, 6.मूल, 7.पूर्वाषाढ़ा, 8.उत्तराषाढ़ा, 9.शतभिषा, 10.श्रवण, 11.धनिष्ठा, 12.पूर्वा भाद्रपद, 13.उत्तरा भाद्रपद, 14.आश्विन, 15.रेवती, 16.भरणी, 17. कार्तिक, 18.रोहिणी, 19.मृगशिरा, 20.उत्तरा, 21.पुनर्वसु, 22.पुष्य, 23.मघा, 24.आश्लेषा, 25.पूर्वा फाल्गुनी, 26.उत्तरा फाल्गुनी और 27.हस्त।