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संक्रांति पर्व : तिल गुड़ घ्या आणि गोड़ गोड़ बोला

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"तिल गुड़ घ्या आणि गोड़ गोड़ बोला" मराठी की कहावत है। जिसका हिन्दी में अर्थ है : तिल-गुड़ दो और मीठा-मीठा बोलो। उल्लास व उमंग के महापर्व मकर संक्रांति पर यह कहावत सही चरितार्थ होती है। यह दिन समाज में सुख व समृद्धि के सूचक के रूप में मनाया जाता है। 
सूर्य के धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करने पर यह पर्व विशेष पुण्य फलदायी है। इस दिन सुबह होते ही श्रद्धालु गंगाजल से स्नान कर सूर्य को जल तर्पण करते हैं। वहीं सुहागन अखंड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए महिलाओं व ब्राह्मणों को दान-पुण्य करती हैं। संक्रांति के लिए घर-घर में तिल व गुड़ से लड्डू बनाए जाते हैं। 
 
सूर्य राशि परिवर्तन कर मकर राशि में प्रवेश करता है, जिसे सूर्य का संक्रमण काल कहा जाता है। संक्रमण काल के 16 घंटे पश्चात जो समय आता है, उसे पुण्यकाल कहा जाता है। अतः पुण्यकाल श्रद्धालुओं के लिए विशेष फलदायी माना गया है। 
 
दान का विशेष महत्व
 
मकर संक्रांति के शुभ मुहूर्त में स्नान, दान व पुण्य के शुभ समय का विशेष महत्व है। इस पावन पर्व पर तिल का उबटन लगाकर स्नान करना लाभकारी होता है। तत्पश्चात दान के रूप में गुड़, तेल, कंबल, फल, नई फसल की नई सब्जियां, छाता दान करने से जातकों को लाभ मिलता है।

वहीं सुहागन स्त्रियां भी मिट्टी के पात्र में मिट्टी की वस्तु, रेवड़ी, मटर, मूंगफली, पैसा, सुपारी, खिचड़ी आदि हल्दी, रोली व बिंदी रखकर पूजन करती हैं व 14 सुहागन महिलाओं को यह पूजन सामग्री दान करती हैं। गरीबों को दान करने से विशेष पुण्य मिलता है। 

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यह करें पर्व काल में : पवित्र नदी या सरोवर में स्नान, तिल के तेल की मालिश व तिल्ली के उबटन से स्नान। पश्चात सूर्यदेव का पूजन। वैदिक ब्राह्मणों को तांबे के कलश में तिल्ली भर कर दान दें उस पर गुड़ अवश्य रखें। सौभाग्यवती स्त्रियां सौभाग्य सामग्री का दान करें। लाल गाय को गुड़ व घास खिलाने के पश्चात पानी पिलाएं, ऐसा करने से पितृ प्रसन्न होते हैं।
 
शुभ कार्य होंगे आरंभ
 
मलमास समाप्त होकर शुभ कार्यों का आरंभ होगा। विवाह, मुंडन, यज्ञोपवीत, गृह आरंभ, वास्तु, कल-कारखानों की स्थापना, नवीन वस्तुओं की खरीददारी तथा कीमती धातुओं का क्रय जैसे कार्य कर सकते हैं।
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मकर संक्रांति के अवसर पर ब्रह्म मुहूर्त में ही स्नान करना अच्छा माना जाता है। कुछ लोग गंगा स्नान करते हैं। जो नहीं जा पाते वे घरों में ही पानी में गंगा जल मिलाकर स्नान कर मकर संक्रांति का पुण्य प्राप्त कर लेते हैं। इस दिन खिचड़ी का दान किया जाता है। तिल के व्यंजन खाने और दान में देने का विशेष महत्व है। 

पूर्व उत्तरप्रदेश में इसे खिचड़ी संक्रांति भी कहते हैं। कहा जाता है कि जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है तो माघ का महीना प्रारंभ हो जाता है। इस महीने उड़द की खिचड़ी एवं रेवड़ी-मूंगफली खाने से शरीर में ऊर्जा बढ़ती है। इस प्रकार यह पर्व प्रकृति परिवर्तन के साथ शरीर का संतुलन बनाए रखने की ओर भी इशारा करता है।  
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