मणिपुर में विधानसभा चुनाव के महज 11 दिन बच गए हैं, लेकिन चुनाव प्रचार को कोई ज्यादा शोर-शराबा नहीं सुनाई दे रहा है, उम्मीदवार बस अपने और अपने समर्थकों के मकानों पर झंडा टांग रहे हैं। राज्य में 28 जनवरी को चुनाव है।
मकानों पर झंडे लगाने के अलावा उम्मीदवार घर-घर जाकर अपने पक्ष में मतदाताओं को रिझा रहे हैं, लेकिन लाउडस्पीकर का उपयोग नहीं किया जा रहा है और बड़े-बड़े पोस्टर भी नदारद हैं।
खबरों के मुताबिक पिछले चुनाव में बार सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम (अफस्पा) की वापसी एक प्रमुख मुद्दा था, लेकिन इस बार यह बड़ा मुद्दा नहीं है। हालांकि राजनीतिक दल चुनाव प्रचार के दौरान गाहे-बगाहे इसे उठा रहे हैं।
उम्मीदवार बिजली की अनियमित आपूर्ति, पेयजल की कमी, उग्रवाद, राष्ट्रीय राजमार्ग को समस्या से मुक्त करने में पिछली सरकार की विफलता जैसे मुद्दे उठा रहे हैं। किसी भी बड़े राजनीतिक दल ने कोई बड़ी सभा नहीं की है। हो सकता है इसकी वजह उग्रवादी संगठनों की धमकी हो।
खबरों में कहा गया है कि पिछली बार के विपरीत इस बार शांतिपूर्ण प्रचार अभियान चल रहा है। राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि हर मतदाता को अपनी पसंद के प्रत्याशी चुनने का अवसर मिलना चाहिए और उग्रवादी संगठनों एवं प्रशासन द्वारा बहुत ज्यादा प्रतिबंध उपयुक्त नहीं है।
सात उग्रवादी संगठनों ने कांग्रेस और उसके कार्यकर्ताओं के अभियान पर रोक लगा दी है। उनका कहना है कि कांग्रेस मणिपुर के क्रांतिकारी आंदोलन के खिलाफ है उग्रवादी संगठनों ने कहा है कि चुनाव से पहले और बाद में उनके आदेश को नहीं मानने वाले को बख्शा नहीं जाएगा।
पिछले दो सप्ताहों में इन संगठनों ने मणिपुर घाटी में कई स्थानों पर हथगोले फेंके और बम विस्फोट किए जिसकी वजह से कई घायल हो गए और मकान ध्वस्त हो गए।
चुनाव कार्यालय के सूत्रों ने बताया कि उम्मीदवारों को रात में प्रचार अभियार पर नहीं जाने की सलाह दी गयी है। वैसे सभी प्रत्याशियों को पर्याप्त सुरक्षाकर्मी उपलब्ध कराए गए हैं। सूत्रों के अनुसार सुरक्षाबलों की 350 कंपनियों में 218 कंपनियां यहां पहुंच चुकी है और वे गश्ती कर रही हैं। (भाषा)