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क्या फर्स्ट आए तो ही मिलेगा कम्प्यूटर?

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- वि‍नीता मोटलानी

ND
प्रतियोगी परीक्षाओं के परिणाम घोषित हो रहे थे। मेरी परिचिता मीतू के बेटे ऋषभ ने भी प्रतियोगी परीक्षा दी थी जिसका परिणाम आ चुका था। मैंने सहज ही जानने के लिए फोन लगाया। उधर से मीतू का धीमा-सा जवाब आया कि परिणाम अपेक्षाकृत नहीं रहा। मैंने कहा कोई बात नहीं दोबारा ट्राय कर लेगा।

तुम चिंतित क्यों हो रही हो। इस पर मीतू बोली चिंतित नहीं हूँ, परंतु ऋषभ की अनावश्यक माँग से घर में तनाव व्याप्त है। मैं कुछ समझ नहीं पाई इसलिए दोबारा उससे पूछा कैसा तनाव? उसने बताया कि 'हमने ऋषभ से कहा था कि यदि वह परीक्षा में अव्वल रहा तो बाइक दिलाएँगे, पर अब जब परिणाम ही अनुकूल नहीं रहा तो कैसी बाइक...!' मैं उसकी बात सुनकर सोच में पड़ गई।

लगभग हर अभिभावक चाहता है कि उनका बच्चा सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करे। इसलिए बचपन से ही अपेक्षाएँ लगी रहती हैं कि बेटा तुम इस साल 90 प्रतिशत लाए तो तुम्हारी साइकल पक्की, तुम्हारा कम्प्यूटर, आईपॉड और भी महँगे-महँगे उपहार जो बच्चे के अवचेतन पर एक प्रलोभन की तरह समा जाते हैं।

आज एकल परिवारों में अधिकांश माता-पिता कामकाजी हैं। वे भौतिक सुख-सुविधाएँ जुटाकर व महँगे स्कूलों में बच्चों को पढ़ाकर अपने कर्तव्यों की पूर्ति कर लेते हैं। ऐसे में जरूरी हो जाता है कि अपने बच्चे में पढ़ाई के अलावा छुपी अन्य क्षमताओं को पहचानें। उनके साथ कुछ समय बिताएँ। उन्हें अच्छे नागरिक तथा अच्छा इंसान बनना भी सिखाएँ। जीवन के प्रति सदैव सकारात्मक सोच बनाए रखकर उसे उसके वांछित लक्ष्य की तरफ निरंतर बढ़ाने का प्रयास करें।

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