बच्चों को पर्याप्त समय दें :
बच्चों को पर्याप्त समय दें। उन्हें पर्याप्त सुविधाएँ प्रदान करना ही काफी नहीं है। उन्हें समय देकर, उनकी बातें-समस्याएँ सुनकर ही माता-पिता उनकी भावनात्मक आवश्यकताओं को समझ पाते हैं। थोड़ी बहस हो जाए छोटी-छोटी चर्चाएँ, वाद-विवाद चाहे वे पढ़ाई से संबंधित हों, सामान्य ज्ञान से या नैतिकता से, घर में अवश्य किए जाना चाहिए।
इससे उन्हें माता-पिता या परिवारजनों के सामने अपनी बात रखने का अवसर मिलता है। विचारों का आदान-प्रदान भी जरूरी है। इसका मनोवैज्ञानिक रूप से बहुत महत्व है। इन चीजों से बच्चे का बौद्धिक विकास होता है। साथ ही अपना मत सही ढंग से प्रकट करने की वैचारिक समझ आती है।
पहले हम फिर बच्चे :
बच्चों में जीवन मूल्यों के प्रति चेतना जगाना अत्यंत आवश्यक है। सच्चाई, ईमानदारी, अनुशासनप्रियता, प्रेम, सौहार्द इत्यादि गुणों का मात्र निर्देश ही पर्याप्त नहीं है। हमें यानी माता-पिता को सबसे पहले स्वयं इन गुणों का पालन करना होगा, तभी बच्चे भी उन गुणों का पालन करेंगे। बच्चों के चारित्रिक विकास के लिए यह अत्यंत आवश्यक है।
बच्चों की क्षमता को पहचानें :
बच्चों की क्षमता समझ कर ही माता-पिता को उनसे किसी भी प्रकार की अपेक्षा करना चाहिए। परिवार या समाज के दबाव में आकर उन्हें कभी भी, किसी भी क्षेत्र को अपनाने के लिए बाध्य नहीं करना चाहिए। उनकी योग्यता-क्षमता तथा रुचि सर्वोपरि है। रुचिप्रद विषय न होने से या क्षमता से कठिन विषय होने से उन्हें असफलता मिलेगी, जो असंतोष का कारण बनेगी।
संपूर्णता हर किसी में नहीं मिलती :
कोई भी व्यक्ति संपूर्ण नहीं होता है। अतः हमारा प्रयास होना चाहिए कि हमारे बच्चे अपने कार्यक्षेत्र में विशिष्टता प्राप्त करने का प्रयास करें, संपूर्णता नहीं।
उपर्युक्त सभी बातें ऐसी हैं, जिन्हें हम सभी जानते हैं, समझते हैं, परंतु उन्हें व्यवहार में नहीं लाते हैं। बच्चों में शिक्षा के साथ ही जीवन मूल्यों के प्रति चेतना जागृत करने का प्रयास 'घर' से ही शुरू हो तो हमारा परिवार समाज में आदर्श बन सकेगा। हम सबके जीवन में सुख-शांति का संचार हो सकेगा।