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निमोनिया से बचाएँ नौनिहालों को

हमें फॉलो करें निमोनिया से बचाएँ नौनिहालों को
- डॉ. शरद थोर

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नवजात शिशु अपनी समस्या बोलकर बता नहीं सकते। सर्दियों के मौसम में यदि उनके शरीर का तापमान कम होने लगे तो उनकी जान जोखिम में पड़ जाती है। जरूरी यह है कि बच्चे को बराबर गर्म रखें। यदि गलती से उसे ठंड लग जाए तो तत्काल उसका इलाज योग्य चिकित्सक से कराएँ। घर की दवाइयाँ मामूली समस्या का निदान कर सकती हैं। स्थिति की गंभीरता को समझें और बच्चे को तत्काल इलाज मुहैया कराएँ।

हमारे देश में हर साल पाँच वर्ष से छोटे 20 से 30 प्रतिशत बच्चे विभिन्न बीमारियों के कारण मर जाते हैं। अस्पतालों में लगभग एक तिहाई पलंग इन्हीं बच्चों से भरे रहते हैं। इस मौसम में जो बच्चे अस्पतालों में आते हैं, वे ज्यादातर सर्दी-खाँसी से ग्रस्त होते हैं। यदि ऐसे बच्चों का इलाज समय पर न हो तो वे निमोनिया से पीड़ित हो जाते हैं।

निमोनिया के प्रमुख दो लक्षण हैं, एक- खाँसी व दूसरा साँस चलना। ऐसे बच्चों को बुखार भी अक्सर होता है। निमोनिया यदि तीन माह से छोटे बच्चों में हो तो ज्यादा खतरनाक होता है। ऐसे बच्चों को अस्पताल में भर्ती कर एंटीबायोटिक्स दवाइयों द्वारा उपचार किया जाता है। निमोनिया की वजह से अगर कोई बच्चा दूध न पी पा रहा हो, बहुत सुस्त हो, उसका तापमान कम हो रहा हो या फिट्स के दौरे भी आ रहे हों तो यह अत्यंत गंभीर अवस्था है। तीन माह से ज्यादा उम्र के बच्चों की स्थिति भले ही उतनी गंभीर न लगे, लेकिन उस पर निगाह रखना अत्यंत आवश्यक है। जन्म के समय जिन बच्चों का वजन कम होता है उन बच्चों की निमोनिया से मृत्यु होने के अवसर अधिक होते हैं। जो बच्चे कुपोषित हों या जिनको माता निकली हो या बड़ी खाँसी हो तो वे भी जोखिम से दूर नहीं हैं।

निमोनिया के कार

ज्यादातर मामलों में निमोनिया बैक्टीरिया या वायरस के संक्रमण की वजह से होता है। कुछ बच्चों में जन्मजात विकार, साँस की नली में रुकावट, एचआईवी संक्रमण या दिल में जन्मजात विकार होने से निमोनिया होता है। इस रोग के ज्यादातर मामले सर्दियों की शुरुआत में याइसके दौरान सामने आते हैं। अधिकांश रोगियों में इसका निदान खून की जाँच व छाती का एक्सरे करके किया जाता है।

इलाज

बैक्टीरियल निमोनिया में एंटीबायोटिक्स दवाइयाँ दी जाती हैं। इसके अलावा यदि बुखार हो तो पेरासिटेमॉल दी जाती है। बहुत तेज साँस हो तो भर्ती करने के उपरांत ऑक्सीजन दी जाती है। अगर बच्चे का खाना-पीना ठीक न हो तो सलाइन भी चढ़ाना पड़ती है। एक साल से छोटे बच्चों में जान बचाने के लिए समय पर निदान व तुरंत उपचार आवश्यक है। ग्रामीण अंचलों के अधिकांश बच्चे निमोनिया होने पर दम तोड़ देते हैं, क्योंकि वहाँ स्वास्थ्य सुविधाओं का नितांत अभाव होता है।

बचने के उपा

एक साल से छोटे बच्चे को ऊनी कपड़े, मोजे, कैप आदि पहनाकर रखें। रात में ज्यादा ठंड होने पर कमरे को गरम रखने का उपाय करें। सर्दी-खाँसी होने पर अगर बच्चा दूध नहीं पी रहा हो या तेज बुखार हो तो तुरंत डॉक्टर से परामर्श करें। जिस बच्चे की तेज साँस चल रही हो, सुस्त हो, कमजोर हो, उल्टियाँ कर रहा हो, फिट्स आ रहे हों, नीला पड़ रहा हो, कुपोषित हो तो उसे तत्काल अस्पताल में भर्ती कर इलाज शुरू कराएँ।

याद रखे

* जन्म के बाद 6 माह तक सिर्फ माँ के दूध पर पलने वाले बच्चे को निमोनिया कम होता है।

* निमोनिया से बचने हेतु कुछ टीके भी उपलब्ध हैं, जो लगवाना चाहिए। इनमें बीसीजी, एचआईवी, डीपीटी व न्यूमोकॉक्कल के टीके प्रमुख हैं।

* गर्भवती महिला की अच्छी देखभाल करने से जन्म लेने वाले बच्चे का वजन अच्छा रहता है। जन्म के समय बच्चे का वजन ढाई किलो से अधिक होना चाहिए। ऐसे बच्चों को निमोनिया होने का जोखिम न्यूनतम रहता है।

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