वर्तमान में समय पूर्व प्रसव की घटनाओं में निरंतर वृद्धि हो रही है। ऐसे शिशुओं की उचित देखभाल एवं उनके संबंध में संपूर्ण जानकारी होना शिशु की माता एवं अन्य परिवारजनों के लिए अत्यंत आवश्यक है।
* माता के गर्भ में शिशु के रहने की सामान्य अवधि 9 माह या 280 दिन के लगभग मानी जाती है। इस अवधि के पश्चात होने वाले प्रसव को पूर्णकालिक प्रसव और उसके पूर्व होने वाले प्रसव को अकाल प्रसव कहा जाता है।
* स्वस्थ शिशु का भार जन्म के समय लगभग तीन से साढ़े तीन किलो होना चाहिए। सामान्यतः सात, आठ व नौ मास में जन्मे शिशु का औसत भार क्रमशः डेढ़, दो व ढाई किलोग्राम होता है। इसी प्रकार पूर्ण विकसित शिशु की लंबाई लगभग बीस इंच होनी चाहिए। इससे कम लंबाई अर्धविकसित अवस्था की द्योतक है।
* अविकसित शिशु का सिर शेष शरीर की अपेक्षा अधिक बड़ा होता है। शिशु की अस्थियाँ निकली हुई दिखाई देती हैं। शरीर पर झुर्रियाँ होती हैं, त्वचा कुछ लाल दिखाई देती है, त्वचा पर गर्भकालीन रोम मिलते हैं। ऐसे शिशु सुस्त पड़े रहते हैं व उनका स्वर अत्यंत क्षीण होता है।
* दुग्धपान कराने के पश्चात उनका शरीर नीला पड़ जाता है। ऐसे शिशु का शारीरिक तापमान प्रायः कम होता है। कभी-कभी श्वास भी रुक-रुककर आती है, जिससे शिशु नीला पड़ जाता है। इसे 'सायलोसिस' कहते हैं।
* हृदय अपेक्षाकृत अधिक विकसित रहता है, परंतु किसी शिशु में उसकी क्रिया मंद भी होती है। रक्त कण व हीमोग्लोबिन की मात्रा बढ़ी हुई पाई जाती है।
* रक्त में अपुष्ट कोशिकाओं की उपस्थिति एवं उनकी टूट-फूट से शिशु को एनीमिया हो जाता है। कभी-कभी पीलिया भी देखा जाता है जो प्रायः गंभीर स्वरूप का होता है।
* अविकसित शिशु का यकृत यद्यपि बड़ा होता है परंतु उसकी क्रिया अल्प रहती है। उसके द्वारा बिलिरूबिन का उत्सर्जन ठीक न होने से पीलिया उत्पन्न हो जाता है।
* जन्म के कुछ दिनों बाद तक द्रव पदार्थ कम लेने के कारण मूत्र कम उतरता है व मूत्र में एल्बूमिन पाया जाता है। अविकसित शिशु में बौद्धिक क्षमता की कमी व मानसिकता विकास मंद होने की आशंका होती है।