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रियलिटी शो और बच्चे

हम हैं छोटे उस्ताद

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गायत्री शर्मा

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टेलीविजन से हमारा एक गहरा जुड़ाव होता है। मनोरंजन के लिए देखे जाने वाले धारावाहिक कब हमारी जिंदगी में विवादों का कारण बन जाते हैं। इस बारे में हम कुछ नहीं कह सकते हैं। अब वो दौर नहीं रहा, जब हम लोग, बुनियाद, रामायण जैसे धारावाहिकों का चलन था, जो समाज को संगठित होने की शिक्षा देते थे।

इसके विपरीत अब दौर आ चुका है रियलिटी शो का, जिसमें भरपूर तरीके से आपकी फैसलों में दखलंदाजी व जिंदगी में हस्तक्षेप किया जाता है। इसमें अगर कोई अँगुली उठती है तो जवाब होता है - 'ये रियलिटी शो है भाई।'

दर्शकों की वाहवाही जीतने के लिए व अपने शो की टीआरपी बढ़ाने के लिए आजकल रियलिटी शो में छोटे बच्चों को हथियार बनाकर बाजी खेली जा रही है, जिसमें शायद इन शो के निर्देशकों की तो चाँदी हो रही है पर दूसरी ओर जीवन की जंग में उन बच्चों की हार हो रही है, जिनमें कल तक जीत का जुनून था पर आज हार की मायूसी।

टेलीविजन पर वर्तमान में दिखाए जाने वाले कई रियलिटी शो जैसे छोटे मियाँ, बूगी-वूगी, सारेगामा, अमूल स्टार वॉइस ऑफ इंडिया का केंद्र नन्हे बच्चे ही हैं, जो अपनी पढ़ाई व परिवार को छोड़कर इन कार्यक्रमों में शिरकत करने दूर-दूर से आते हैं व एक जोकर की तरह सबको हसाते है।

  शो की टीआरपी बढ़ाने के लिए आजकल रियलिटी शो में छोटे बच्चों को हथियार बनाकर बाजी खेली जा रही है, जिसमें शो के निर्देशकों की तो चाँदी हो रही है पर दूसरी ओर जीवन की जंग में उन बच्चों की हार हो रही है, जिनमें कल तक जीत का जुनून था पर आज हार की मायूसी।      
बच्चे मन के सच्चे :-
बच्चों के बारे में जैसा कि कहा जाता है कि वे तन और मन दोनों से ही कोमल होते हैं। एक छोटी सा आघात ही उनकी भावनाओं को ठेस पहुँचाने के लिए काफी है। फिर मजा नहीं आया, तुमने ऐसा गाना क्यों चुना, आज तुम नहीं छाए ... वगैरह कमेंट तो आग में घी की तरह काम करते हैं।

पढ़ाई की उम्र में एक ओर जहाँ ये मासूम बच्चे एक-दूसरे के प्रतिस्पर्धी बन जाते हैं वहीं पैसे व ख्याति का लालच इनसे इनका बचपन छीन लेता है व छोटी सी उम्र में ही बड़ा बना देता है। कई बार सुनने में आता है कि रियलिटी शो में हार के सदमे को न सह पाने के कारण किसी बच्चे ने आत्महत्या की कोशिश की तो किसी को अपने तनाव पर काबू पाने के लिए मनोचिकित्सक का सहारा लेना पड़ा। आखिरकार बच्चों के बीच टैलेंट की जंग के नाम पर जिंदगी से जंग कैसी?

बच्चों पर असर :-
वर्तमान में हर चैनल अपनी टीआरपी बढ़ाने के लिए बच्चों को जंग के बैदान में उतार रहा है। कई सम्माननीय जजों को बैठाने के बाद भी वे इन रियलिटी शो में बच्चों की तरह लड़ने लगते हैं। कोई अपनी कुर्सी छोड़कर भाग जाता है तो कोई दूसरों पर आरोप लगाकर स्वयं की श्रेष्ठता सिद्ध करने के कयासों में लगा रहता है। आखिर यह जंग बच्चों की है या बड़ों की? अब यह शो प्रतिभा को निखारने के मंच कम और लड़ाई के लिए तथा और सस्पेंस पैदा करने के लिए अधिक जाने जाने लगे हैं।

होने चाहिए ये सुधार :-
* रियलिटी शो में बच्चों की आयु सीमा तय होनी चाहिए। 5 से 9 साल तक के बच्चे को प्रतिस्पर्धा में उतारना उचित नहीं है।
* बच्चों के मोटापे, दाँत व आदतों के बारे में सार्वजनिक रूप से कोई टिप्पणी नहीं की जानी चाहिए।
* कार्यक्रम के जजों को वाणी में संयम व व्यवहार में शालीनता रखनी चाहिए, जिससे कि बच्चे उनसे अच्छी बातें सीखें।
* किसी बच्चे को विशेष रूप से तोहफा देना अन्य बच्चों को हतोत्साहित करता है।
* बच्चों को इन शो को फैशन शो का स्वरूप नहीं दिया जाना चाहिए।
* बच्चों के एलीमिनेशन को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाना उचित नहीं है।

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