Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

संस्कार या प्यार का सबक

कैसी हो हमारी पाठशाला

Advertiesment
हमें फॉलो करें संस्कार या प्यार का सबक

गायत्री शर्मा

NDND
शिक्षा माँ सरस्वती का दिया एक ऐसा वरदान है, जो हमारे भविष्य को सँवारती है तथा हमें संस्कारवान बनाकर एक जिम्मेदार नागरिक बनाती है। यह व्यक्ति को केवल किताबी ज्ञान ही नहीं वरन् व्यावहारिक ज्ञान भी देती है। प्राचीनकाल से ही हमारे समाज में शिक्षा की अवधारणा रही है। पहले गुरुकुल में ज्ञानी गुरुओं द्वारा अपने शिष्यों को शिक्षा दी जाती थी और अब टीचर द्वारा स्टूडेंट को शिक्षा दी जाती है।

जैसे-जैसे परिवेश बदलता गया, वैसे-वैसे हमारी सोच भी परिवर्तित होती गई और इस बदलते दौर के साथ शिक्षा का स्वरूप भी बदलता गया। वर्तमान में हमारी जो शिक्षा प्रणाली है वह व्यवसायीकरण की शिकार है। इसके पीछे दोष केवल विद्यालय का नहीं है बल्कि उन पालकों का भी है, जो ऊँची फीस देकर अपने बच्चों को अँगरेजी स्कूलों में दाखिला दिलवाते हैं।

खून-पसीने से कमाए गए लाखों रुपए बच्चों की सालाना फीस में खर्च करने के बावजूद क्या बच्चों को बेहतर शिक्षा व संस्कार दिलाने का इनका उद्देश्य पूरा हो जाता है? शायद नहीं, क्योंकि इससे उनके बच्चों को किताबी ज्ञान तो मिल जाता है परंतु जीवन के व्यावहारिक ज्ञान से वो फिर भी अनभिज्ञ ही रहते हैं।

इन अँगरेजी स्कूलों में लड़का-लड़की की सहशिक्षा प्रणाली के फायदे कम और दुष्परिणाम अधिक नजर आने लगते हैं। इन स्कूलों में लड़का-लड़की के बीच जो संबंध होता है, वो भाई-बहन का नहीं, बल्कि गर्लफ्रेंड-ब्वॉयफ्रेंड या दोस्तों का होता है। गलती से भी वो एक-दूसरे को भाई-बहन नहीं मानते हैं क्योंकि उन्हें तो लड़का-लड़की के इस रिश्ते के बारे में तो बताया ही नहीं जाता है।

उन्हें तो बस ड्रेस कोड के नाम पर घुटने से ऊपर तक के कपड़े और मौज-मस्ती के नाम पर सामूहिक रूप से वेलेंटाइन डे, क्रिसमस आदि त्योहारों को मनाना बताया जाता है। आखिर शिक्षा के मंदिर में नौजवानों की यह कैसी पौध तैयार की जा रही है, जो देशप्रेम का पाठ पढ़ने के बजाय प्यार का सबक सीख रही है?

पश्चिम की तर्ज पर जिंदगी के खुलेपन की समर्थक अँगरेजी शिक्षा हमारी भारतीय संस्कृति के संस्कारों रूपी वस्त्र को उतारकर इसे नए युग की आवश्यकता का नाम दे रही है। एक ओर वो हिंदीभाषी विद्यालय हैं, जो बच्चों को देशप्रेम और संस्कारों की औषधि का सेवन करा रहे हैं तो दूसरी ओर ये अँगरेजी विद्यालय हैं, जो बच्चों को मॉम-डेड की संस्कृति में ढालकर कखुलेपन का टॉनिक पिला रहे हैं। अब फैसला आपके हाथ में है कि आप अपने बच्चों को कौन-सा सबक सिखाना चाहते हैं।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi