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आतिश-ए-इश्क जब जलाये है...

-भरत तिवारी

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हमें फॉलो करें भरत नाट्यम नृत्यांगना स्नेहा चक्रधर
, गुरुवार, 17 जुलाई 2014 (20:00 IST)
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इंडियन हैबिटैट सेंटर के स्टाइन ऑडिटोरियम में 10 जुलाई 2014 की शाम कुछ ऐसा ही नज़ारा था, अवसर था भरत नाट्यम नृत्यांगना स्नेहा चक्रधर की प्रस्तुति ‘आतिश-ए-इश्क’ का।

आतिश-ए-इश्क, एक सफल प्रयोग रहा, जिसमे भरत-नाट्यम, सूफी गायन और बारहमासा लोकसंगीत के विरह-प्रधान गीत तीनों को एक मंच पर पेश किया गया।

दक्षिण भारतीय नृत्य भरत-नाट्यम को सूफी गायन का सुर मिला और नृत्य मुद्राओं को आधार दिया ‘बारहमासा’ ने, बारहमासा जो विरहणी के अन्तर्मन की अभिव्यक्ति का माध्यम रहा है। साल के बारह महीनों में विरह के अलग-अलग रूपों का वर्णन यहां मिल जाता है। बारहमासा का प्रारम्भ वसंत से होता है और अंत होली के उल्लास से।
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पद्मश्री गीता चंद्रन की शिष्या स्नेहा चक्रधर के भावभंगिमापूर्ण नृत्य ने दर्शकों से पूरी तरह भरे हाल में सबका मन मोह लिया। दर्शकों को ध्रुव संगारी के गायन ने भी बहुत प्रभावित किया, उनके सूफी गायन को हम ‘हक़ मौला’ (कोक स्टूडियो) में भी सुन चुके हैं। साथी संगीत वादकों ने भी कहीं कोई कमी नहीं रखी, तबले पर दिल्ली घराने के उस्ताद अमजद खान ने पहली बार भरत-नाट्यम में अपना तबला वादन किया। काशिफ़ अहमद निजामी जो सारंगी पर थे वो खुद एक गायक भी हैं, उनकी सारंगी की संगत लाजवाब रही। इनके साथ मंच पर नट्टूवंगम पर राधिका कथल थी तथा वेशभूषा संध्या रमन ने तैयार की थी।

इन सब को साथ जोड़ने का श्रेय उन गीतों को जाता है, जिन्हें अशोक चक्रधर ने लिखा है, अशोकजी ने कार्यक्रम का संचालन भी किया। उन्होंने कहा कि “आज मेरी कृति की कृति का कार्यक्रम है” तालियों के बीच उन्होंने दर्शकों को बताया कि स्नेहा के पिता होने का उन्हें गर्व है।
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कार्यक्रम में उपस्थित दर्शकों में वरिष्ठ साहित्यकार अजित कुमार, बल्देववंशी, शीला झुनझुनवाला, डॉ कृष्ण दत्त पालीवाल, डॉ सीतेश अलोक, राजनारायण बिसारिया, डॉ. रीतारानी पालीवाल, वीरेन्द्र प्रभाकर, पवन दीक्षित, जैनेन्द्र कर्दम, सुरेश गोयल (पूर्व महानिदेशक ICCR), मेहता (पूर्व महानिदेशक ICCR), लक्ष्मीशंकर वाजपेयी, ममता किरण, वर्तिका नंदा तथा लेखिका तस्लीमा नसरीन आदि मौजूद थे।

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भरत तिवारी : खुद का ब्लॉग लिखने वाले भरत तिवारी नियमित रूप से लेखन करते हैं। देश-विदेश के विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में भी उनकी रचनाएं प्रकाशित होती हैं साथ ही वे शब्दांकन नामक एक ईपत्रिका का भी संपादन करते हैं। हिन्दी, उर्दू और अंग्रेजी का ज्ञान रखने वाले भरत कविता, कहानी, गजल, लेख, नज्म आदि नियमित रूप से लिखते हैं।

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