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डिजिटल चुनौती को हल्के ढंग से न ले मीडिया

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नई दिल्ली। प्रतिभाशाली हिंदी पत्रकार स्व. आलोक तोमर की स्मृति में दिल्ली के कांस्टीट्यूशन क्लब में हुए 'विमर्श' में वक्ताओं ने इस बात पर अफसोस जाहिर किया कि आज का मीडिया जमीनी मुद्दों और आम आदमी की समस्याओं के बरक्स उतना जागरूक नहीं रह गया है।
विमर्श की थीम थी- 'मीडिया के भविष्य की चुनौतियाँ', जिस पर बोलते हुए वक्ताओं ने कहा कि इन खबरों को गंभीरता से लिए जाने की जरूरत है कि डिजिटल चुनौती के चलते सन् 2040 के बाद अखबार विलुप्त हो जाएंगे।
 
विमर्श में केंद्रीय इस्पात और खान मंत्री नरेंद्रसिंह तोमर, पूर्व केंद्रीय मंत्री मनीष तिवारी, सांसद केसी त्यागी, प्रभात झा और डीपी त्रिपाठी, शिक्षाविद् निशीथ राय, बीबीसी हिंदी के संपादक निधीश त्यागी, प्रभासाक्षी.कॉम के समूह संपादक बालेन्दु शर्मा दाधीच और टेलीविजन पत्रकार दीपक चौरसिया ने अपने विचार रखे।
 
इस्पात और खान मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने आलोक तोमर के साथ अपने संबंधों का जिक्र किया और हाशिए के लोगों की आवाज उठाने की अपील की। प्रभात झा ने मीडिया की चुनौतियों को पत्रकार की अपनी समस्याओं और सीमाओं से जोड़ा। उनका कहना था कि पत्रकार खुद जीवन यापन की समस्या से जूझ रहा है और तमाम तरह के दबावों में काम कर रहा है ऐसे में सिद्धांतों पर टिके रहना चुनौतीपूर्ण हो जाता है। उन्होंने इन हालात को बदलने की अपील की।
 
पूर्व केंद्रीय मंत्री मनीष तिवारी ने पत्रकारिता के मौजूदा दौर से संबंधित अनेक चुनौतियों का जिक्र किया और कहा कि पिछली सरकार ने ऐसे कई कदम उठाए थे जिनसे विज्ञापनों पर टेलीविजन पत्रकारिता की निर्भरता कम होती। यह उसे बाहरी प्रभावों से मुक्त करने की दिशा में अहम कदम था। उन्होंने कहा कि डीटीएच प्रणाली की स्थापना से टेलीविजन चैनलों को विज्ञापनों से अलग भी आय अर्जित करने का एक मजबूत जरिया हासिल हुआ है। 
 
बीबीसी हिंदी के संपादक निधीश त्यागी ने कहा कि आज के पत्रकारों को भाषा पर ध्यान देने की बेहद ज़रूरत है। उन्होंने कहा कि सही वाक्य न लिख पाने वाले पत्रकारों की पूरी की पूरी पीढ़ी मीडिया के अस्तित्व के लिए बहुत बड़ी भावी चुनौती सिद्ध होने वाली है। 
 
बालेन्दु शर्मा दाधीच ने कहा कि फिलहाल प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को डिजिटल माध्यमों से आती हुई चुनौती उतनी गंभीर नहीं प्रतीत हो रही है,  लेकिन पाठक और दर्शक के पास समय की कमी और मोबाइल तथा इंटरनेट के प्रसार के प्रभावशाली आंकड़े और निशुल्क खबरें इस दिशा में इशारा कर रहे हैं कि सूचनाओं के लिए पारंपरिक समाचार माध्यमों पर निर्भरता कम हो रही है।
 
टेलीविजन पत्रकार दीपक चौरसिया ने कुछ वक्ताओं के इस आकलन से अहसमति जताई कि आज की पत्रकारिता जमीन से जुड़े मुद्दों से दूर होती जा रही है और गरीब तथा उपेक्षित व्यक्ति के लिए संघर्ष करने को कोई तैयार नहीं है। उन्होंने कहा कि आज भी पत्रकारिता जन-सरोकारों से जुड़ी है। वह बाहरी दबावों (आर्थिक या राजनैतिक) से मुक्त रहते हुए काम करने में सक्षम है। इस सिलसिले में उन्होंने बदायूं की दो लड़कियों की हत्या/आत्महत्या की घटना का जिक्र किया जिसे उभारने में मीडिया की अहम भूमिका रही। 
 
कार्यक्रम के दौरान भारतीय जनसंचार संस्थान के दो छात्रों नंदराम प्रजापति और आशीष कुमार शुक्ला को आलोक तोमर फेलोशिप प्रदान की गई। लखनऊ स्थित शकुंतला देवी पुनर्वास विश्वविद्यालय के उपकुलपति निशीथ राय ने हिंदी विभाग के टॉपर छात्र को आलोक तोमर स्मृति स्वर्ण पदक देने की घोषणा की।
 
कार्यक्रम का संचालन भारतीय जनसंचार संस्थान के प्रो. आनंद प्रधान ने किया। कार्यक्रम में आलोक तोमर की पत्नी सुप्रिया भी मौजूद थीं। अन्य उपस्थित लोगों में आज तक के प्रबंध संपादक सुप्रिय प्रसाद, जनसत्ता के संपादक ओम थानवी, टेलीविजन पत्रकार पुण्य प्रसून वाजपेयी, शैलेष, मुकेश कुमार, अनुरंजन झा, चौथी दुनिया के संपादक संतोष भारती, प्रसिद्ध लेखिका पद्मा सचदेव आदि शामिल थे। 

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