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बदलाव के दौर से गुजर रही है पत्रकारिता

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इंदौर। पत्रकारिता के क्षेत्र में पिछले 40-50 सालों में बहुत बदलाव हुए हैं। पहले अखबार में चार लाइनें छपती थीं तो तहलका मच जाता था, लेकिन आज पूरा पेज छप जाए तो भी फर्क नहीं पड़ता। आज के दौर में पत्रकारिता के समक्ष सबसे बड़ा खतरा साख का है।
 
संभागीय जनसंपर्क कार्यालय इंदौर द्वारा आयोजित 'मीडिया संवाद कार्यक्रम' में ये बातें वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक गिरिजा शंकर ने कहीं। उन्होंने कहा कि अनुकुल परिस्थितियों में काम करना चुनौती नहीं है, बल्कि विपरीत परिस्थितियों में अपने काम को अंजाम दें। हमें यह भी सोचने की जरूरत है कि जिसके लिए हम पत्रकार बने हैं, क्या वो हम कर पाए हैं? 
उन्होंने कहा कि बदलाव के इस दौर में पाठक की सोच में भी बदलाव आया है। इसके लिए खबरों की विश्वसनीयता होना बहुत जरूरी है। दो गलत खबरें एक सही खबर को दबा देती हैं। हमारी रिपोर्ट में तथ्यात्मक चूक नहीं होनी चाहिए। गिरिजा शंकर ने कहा कि पत्रकार कभी भी खुद को विशिष्ट नहीं समझे। विशिष्टता से पूर्वाग्रह आ जाता है। आप जज नहीं हैं। तथ्य जैसे हैं वैसे ही रखें। घटनाओं पर पैनी नजर रखें और उन्हें पुरानी घटनाओं से जोड़कर देखें। 
 
वरिष्ठ पत्रकार डॉ. प्रकाश हिन्दुस्तानी ने कहा कि बदलाव पूरी दुनिया में हो रहे हैं और मीडिया भी इससे अछूता नहीं है। आज पत्रकार भी साधन संपन्न हो गए हैं। पहले मालिकों और पत्रकारों में दिखावा नहीं होता था मगर आज अखबार की खबरों के बजाय मालिक की कार की चर्चा ज्यादा होती है। डॉ. हिन्दुस्तानी ने कहा कि पत्रकारों को सोशल मीडिया के नए माध्यमों से जुड़ना चाहिए। सोशल मीडिया पर अपनी इमेज का खयाल जरूर रखें। हैशटैग का उपयोग सही तरीके से करें। उन्होंने कहा कि कोई भी अखबार बड़ा या छोटा नहीं होता। महत्वपूर्ण यह है कि आपके सरोकार क्या हैं।  
 
इस अवसर पर वेबदुनिया के संपादक जयदीप कर्णिक ने कहा कि पत्रकारिता का भला करना है तो हमें अपनी बात साफगोई से रखनी होगी। जो लोग देखना या पढ़ना चाहते हैं, उसकी आड़ में हमें गलत चीजें प्रस्तुत नहीं करना चाहिए। आज हर कोई बड़ा पत्रकार बनना चाहता है, लेकिन काम कोई नहीं करना चाहता। उन्होंने कहा कि एयरकंडीशन ऑफिसों में बैठकर होने वाली प्लानिंग से पत्रकारिता को बहुत नुकसान हो रहा है। उन्होंने कहा कि समाज के साथ पत्रकारिता के क्षेत्र में भी बुराइयां आई हैं, मगर हम दिक्कतों के बीच भी अच्छी पत्रकारिता करें। वेब मीडिया में काम करने के लिए जरूरी है आपका भी ब्लॉग हो। गूगल पर यह भी लगातार देखें कि अभी चल क्या रहा है। सोशल मीडिया पर भी पत्रकार की उपस्थिति जरूरी है। 
 
नागरिक पत्रकारिता की बात पर कर्णिक ने कहा कि पत्रकारिता में जवाबदेही बहुत जरूरी है। जिस तरह सभी कंपाउंडर डॉक्टर नहीं हो सकते, उसी तरह सभी नागरिक पत्रकार नहीं हो सकते। दरअसल, पत्रकारिता बंजारगी है तो मगर आवारगी नहीं है। आज भी अच्छी कॉपी और अच्छी खबरें लिखने की बहुत गुंजाइश है। जर्मनी में पत्रकारिता के सवाल के जवाब में जयदीप कर्णिक ने कहा कि वहां अब काफी बदलाव आ रहे हैं। 31 दिसंबर की रात को महिलाओं के साथ हुई छेड़छाड़ की घटनाओं ने जर्मनी को बहुत बदल दिया है। उन्होंने कहा कि एक सबसे बड़ी बात यह है कि वहां टीआरपी की होड़ नहीं है। 9/11 के दौरान मीडिया ने वहां की सरकार पर कोई आरोप नहीं लगाया न ही खून के धब्बे चैनलों और अखबारों में नजर आए।
 
पुष्पेन्द्रपाल सिंह ने कहा कि पत्रकारिता के क्षेत्र में बदलाव तो बहुत हुए हैं, लेकिन महत्वपूर्ण यह है कि इन बदलावों के साथ हम कितने बदले हैं। बदलाव थोड़े दिन के लिए तो आकर्षित करते हैं, लेकिन बाद में लोग प्रस्तुति और विषय वस्तु पर ही आ जाते हैं। उन्होंने कहा कि इस दौर में साक्षरता की तुलना में जागरूकता ज्यादा बढ़ी है। ऐसे में पाठक का ज्ञान पत्रकार से ज्यादा होगा तो पत्रकारिता औचित्यहीन हो जाएगी। ऐसे में सही और समग्र सूचना देने की जरूरत है।
 
इंदौर प्रेस क्लब के अध्यक्ष अरविन्द तिवारी ने अपने अनुभवों को साझा करते हुए कहा कि अच्छी रिपोर्टिंग के लिए संवाद और संपर्क बहुत जरूरी है। साथ ही एक पत्रकार को सामाजिक सरोकारों का भी ध्यान रखना चाहिए। प्रेस क्लब महासचिव नवनीत शुक्ला ने कहा कि आज पत्रकारिता बाजार की हो गई है समाज से दूर हो गई है। आज पत्रकार को समाज के लोग नहीं पहचानते, बाजार के लोग पहचानते हैं। इस अवसर पर जनसंपर्क विभाग के अपर संचालक जीएस मौर्य, महिपाल अजय समेत अन्य अधिकारी, कर्मचारी और पत्रकार भी उपस्थित थे।

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