लीजिए, मीडिया दुनिया में अब पढ़िए- एक पत्रकार की एक अजब-गजब कहानी। यह हैं नीलेश मिश्रा। भारतीय जनसंचार संस्थान, दिल्ली से पढ़े नीलेश पिछले कुछ सालों से एक खास कनेक्शन में व्यस्त हैं । नाम है- गांव कनेक्शन। इस नाम से अखबार तो जारी है ही, अब यह जुड़ गया है दूरदर्शन से भी। आज किस्सागो नीलेश नहीं हैं, आज किस्सा सुनाएंगे - एक और खास पत्रकार शिवेंद्र सिंह। टीवी की मोटी तनख्वाह की नौकरी छोड़ कर वे भी अब जुड़ गए हैं- गांव कनेक्शन से। -वर्तिका नंदा
...कि ग्रामीण भारत के पास अब अपना खुद का टीवी कार्यक्रम है। एक स्वाभाविक अकड़ जैसी ‘फीलिंग’ आती है ना इस वाक्य में कि अपना खुद का टीवी कार्यक्रम है। अपना खुद का...इसीलिए जब नीलेश मिश्र इस कार्यक्रम का टाइटल सांग लिखते हैं तो उसमें शब्द भी आते हैं रंगबाज़ी और ऐंठन...
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बातें करते सीधी सच्ची और अमिया खाते हैं कच्ची चले हाईवे पर फर्राटे से पगडंडी भी लगती अच्छी चौपाल पे बोले है बेटवा हम सीखेंगे इंटरनेटवा हमरी ये रंगबाजी है हममें थोड़ी ऐंठन है, अपना गांव कनेक्शन है...
गांव कनेक्शन से जुड़ने के बाद पिछले दिनों नीलेश के साथ मैं भी दूरदर्शन में एक इंटरव्यू के लिए गया था। नीलेश को जानता तो पिछले 12-13 साल से था, लेकिन उस दिन एक कमाल की बात पता चली। पत्रकार, लेखक, गीतकार, गायक और एंकर (कुछ छूट गया हो तो सखेद माफी) भाई नीलेश मिश्र ने गांव कनेक्शन शुरू करने के लिए अपना एक घर ही बेच दिया। सुना तो हमने भी था कि कुछ बड़ा करने के लिए ‘रिस्क’ उठाना पड़ता है, लेकिन जनाब ये तो कुछ जरूरत से बड़ा रिस्क नहीं हो गया। खैर, पहले गांव कनेक्शन अखबार शुरू हुआ और अब गांव कनेक्शन का टीवी शो भी शुरू हो गया है। हर सोमवार और मंगलवार दूरदर्शन पर रात 8 बजे।
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नीलेश बताते हैं 'बतौर पत्रकार मैंने देश के तमाम गांवों का सफर किया। इस दौरान तमाम अनुभव हुए। कई नई बातें पता चलीं, गांव का बदलता ट्रेंड देखने को मिला। ये भी लगा कि इन बदलावों को आम जनता तक कैसे पहुंचाया जाए, क्योंकि गांव की खबरें टीवी पर नहीं आती...अखबार में नहीं छपती। इसी सोच ने पहले गांव कनेक्शन अखबार और फिर गांव कनेक्शन टीवी शो की शुरुआत कराई।'
1.2 बिलियन की आबादी वाले देश की 830 मिलियन लोग गांवों से हैं। ऐसे में हमारा गांव कनेक्शन सिर्फ गांव की परेशानियों को उजागर करने का मंच नहीं है। बल्कि ये मंच है गांव के किस्से कहानियों को सुनाने का। सफलता की कहानी, हिम्मत की कहानी, हौसले की कहानी, किसी एक किसान के प्रयोग की कहानी, किसी एक औरत के जज्बे की कहानी। गांव कनेक्शन ने इन कहानियों के जरिए गांवों के स्टार खोजने शुरू कर दिए।
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कार्यक्रम के शुरुआती एपीसोड्स में गांव कनेक्शन टीम की सदस्य अल्प्यु सिंह ने हरियाणा के खापों पर दिलचस्प कहानी की। उन्होंने गांव की उन महिलाओं से दर्शकों को मिलवाया, जिन्होंने अब परदा ना करने की कसम खाई है। हमारी कंसल्टिंग एडीटर अनु सिंह चौधरी फिल्मी दुनिया के नामी गिरामी चेहरों के पास पहुंची उनसे उनका गांव कनेक्शन जाना। उत्तरप्रदेश, बिहार, झारखंड, राजस्थान, गुजरात, मध्यप्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, हरियाणा जैसे राज्यों से हमारी टीम के सदस्यों ने एक से बढ़कर दिलचस्प कहानियां हमें भेंजी। शायद इन्हीं वजहों से हमारा गांव कनेक्शन शुरू होने के पहले ही महीने में ‘नॉन फिक्शन’ में दूरदर्शन का नंबर एक शो बन गया।
नीलेश मिश्रा कहते हैं ’कार्यक्रम की कामयाबी के पीछे वजह बड़ी सीधी है। हमने गांव को गांव के चश्मे से ही देखा। हम खुद गांवों में गए। इसके अलावा आज की जो जनरेशन गांव के बारे में कुछ नहीं जानती, उन्हें भी गांव के बारे में पता चला। गांव का शहर से तो कनेक्शन बना ही, साथ ही साथ गांव का गांव से भी कनेक्शन जुड़ा। तमाम लोगों ने इस बारे में कहा कि उन्हें तो पहली बार भारत के गांवों की बदलती तस्वीर देखने को मिली’।
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गांव कनेक्शन शो आने वाले दिनों में गांव के स्टार्स को सम्मानित करने की योजना बना रहा है। ये बात अभी से तय है कि ऐसा कार्यक्रम जब भी होगा, होगा किसी गांव में ही। आखिर में अपनी बात, कुछ दोस्तों यारों ने पूछा इतने साल तक खेल पत्रकारिता करने के बाद अचानक गांव कनेक्शन कैसे...जवाब बड़ा सीधा है- हमारा भी गांव कनेक्शन है भाई...पिताजी बनारस के, मां बिहार की। भोजपुरी हम भी अच्छी खासी बोल लेते हैं। फिर दिल पर हाथ रख कर बोलिए कि आसपास में अगर पगडंडी, कोल्हू, गन्ना, गुड़, टिटहरी जैसे शब्द कानों में पड़ रहे हैं तो क्या आप अपने आप को रोक पाएंगे। बच्चे पीएसपी खेलने में बिजी हैं उन्हें क्या पता गांव की पगडंडियों पर पहिए को डंडी से दौड़ाने में कितना मजा आता है। अभी उम्र ही कितनी हुई है हमारी, क्यों ना करूं ये सब...बड़ा मजा आता है...आता है ना मजा़... (लेखक हमारा गांव कनेक्शन के एक्जीक्यूटिव प्रोड्यूसर हैं)