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महिलाओं की सुरक्षा पर परिचर्चा

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नई दिल्ली। भारत के चौथे राष्ट्रपति वीवी गिरी की 120वीं जन्मतिथि के मौके पर पीडब्ल्यूईएससीआर (द प्रोग्राम्स ऑन वीमेन्स इकोनॉमिक, सोशल एंड कल्चरल राइट्स) ने नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी, निदान, कंसर्न और कबीर के लोग के साथ महिलाओं की सामाजिक सुरक्षा व संरक्षण के मुद्दे पर दिल्ली के कंस्टीट्यूशन क्‍लब में एक परिचर्चा का आयोजन किया, जिसकी अध्यक्षता पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ. संजय पासवान ने की।

अपने लिखित संदेश में दो केंद्रीय मंत्रियों, कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद और नरेंद्र तोमर ने कहा कि सरकार सामाजिक सुरक्षा के प्रति काफी प्रतिबद्ध है और उन्होंने इस प्रयास को अपना समर्थन दिया। इस अवसर पर हाल ही में गठित नेशनल फोरम ऑफ एक्शन ऑन कनवरजेंस के पोर्टल का औपचारिक लोकार्पण डॉ. संजय पासवान ने किया। इस फोरम में 40 से अधिक संगठन शामिल हैं।
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उद्घाटन भाषण में डॉ. संजय पासवान ने आह्वान किया कि ‘विवाद की बजाय आइए संवाद करें’। उन्होंने सभी राजनीतिक पार्टियों के नेताओं से आग्रह किया कि सिविल सोसायटी संगठनों से मजबूत रिश्ता बनाएं और सरकार, संस्था व समाज को एक साथ लाने के बुनियादी समझौते पर पहुंचें, ताकि सब मिलकर पंचायतों को सशक्त बना सकें, जिनसे वे केंद्र और राज्य सरकारों की तरह मजबूती से काम करें।

उन्होंने मौजूद लोगों को भरोसा दिलाया कि केंद्र सरकार योजनाओं तक सबकी पहुंच आसान बनाने की ठोस पहल कर रही होगी और कहा कि बहुत जल्द ही यह घोषणा होने जा रही है कि योजनाओं का लाभ उठाने के लिए उनके हकदारों का स्वयं-कथन ही दस्तावेज होगा।

वीवी गिरी के वचन-कर्म की प्रशंसा करते हुए डॉ. पासवान ने कहा कि वह एकमात्र मजदूर नेता थे, जो न केवल शीर्ष पद पर पहुंचे, बल्कि कामकाजी मजदूर वर्ग की चिंताओं को सबसे अधिक तवज्जो मिले, इसे भी सुनिश्चित किया। हर साल 13 अगस्त को वीवी गिरी के योगदान को याद करने की तारीख के तौर पर अपनी प्रतिबद्धता जताते हुए उन्होंने घोषणा की कि 2015 में इस तारीख को महिला कामगारों के अधिकारों को आगे बढ़ाने के लिए समर्पित किया जाएगा। महिला कामगार भी कई तरीके से उतनी ही असुरक्षित हैं, जितने सामाजिक हाशिये पर रह रहे दूसरे समुदाय, जैसे दलितों या भूमिविहीन किसान। उन्होंने याद दिलाया कि, ‘काफी एक्शन और रिएक्शन हुए, अब जरूरत व्यापक इंटरएक्शन की है।’
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इस अवसर पर अनुभवी महिला अधिकार कार्यकर्ता श्रीमती मोहिनी गिरी ने सभी पांच आयोजकों और डॉ. संजय पासवान का अभिवादन किया। वीवी गिरी से अपने जुड़ाव को याद करते हुए उन्होंने कहा कि बतौर उनकी पुत्र-वधू मुझे उनकी सादगी और नम्रता ने सबसे अधिक प्रभावित किया। जेल में बिताए अपने शुरुआती 17 सालों में ही उन्होंने अपने अंदर ये गुण आत्मसात किए।

उन्होंने केंद्र सरकार को कहा कि वह राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे द्वारा लिए गए फैसलों की पुनर्समीक्षा करे और इस सिद्धांत की ओर लौटे कि श्रम कानूनों में कोई बदलाव नहीं होना चाहिए, सरकार, नियोक्ता और कर्मचारी के बीच त्रिपक्षीय परामर्श के बगैर। उन्होंन संजय पासवान से कहा कि वह पुरानी सरकारों की उदासीनता को पलट दें और आईएलओ के सभी सदस्य देशों द्वारा पारित अंतरराष्ट्रीय समझौतों को मंजूरी दें। उन्होंने तमाम संगठनों से विनती की कि वे प्रण लें कि तब तक चैन से नहीं बैठेंगे, जब तक कि करोड़ों महिला कामगारों को उनकी वाजिब पहचान और सम्मान नहीं मिल जाता।

महिलाओं की सामाजिक सुरक्षा पर चर्चा करती हुई पीडब्ल्यूईएससीआर की निदेशक मिस प्रीति दारूका ने यह जोर डाला कि बिना सामाजिक सुरक्षा के लिंग समानता को पाना असंभव है। इस तथ्य के आलोक में उन्होंने सरकार से कहा कि सामाजिक सुरक्षा की सार्वभौमिकता को मानते हुए सामाजिक हाशिये पर रह रहे समुदाय की तमाम जरूरतों को पूरा करने के लिए वह हरसंभव कदम उठाए।

हालांकि, उन्होंने आगाह किया कि यह जरूरी नहीं कि विविध हालात में रह रहे समुदायों के लिए एक-समान प्रयास हों और इस पर जोर डाला कि तमाम सामाजिक सुरक्षा नीतियों में लिंग-विश्लेषण शामिल होना चाहिए। उन्होंने अपनी बातें इस मांग के साथ खत्म की कि महिलाओं को ‘अधिकार धारकों’ की पहचान मिले, कामगारों के रूप में उनके योगदान को पहचान मिले और सरकार से कहा कि वे विचार करें कि कैसे उन पहलकदमियों और तकनीकों को विकसित किया जाए, जिनसे महिलाओं की कठिन मेहनत कम हो सके।

उन्होंने हर किसी को याद दिलाया कि अपने बच्चों की देखभाल के बोझ को कम करने को मिड डे मील संभवत: बेहतरीन उदाहरणों में एक है, जो महिलाओं की सहायता से होती है। उन्होंने सरकार से कहा कि कनवरजेंस के मॉडल को अपनाएं, ताकि लिंग अनुकूल स्थिति सुनिश्चित हो और महिलाओं की सहायता और अन्य मंचों के जरिये उनकी सामूहिकता को बल मिले। उनकी अंतिम अनुशंसा रही कि ‘न्याय तक पहुंच’ ही ‘शासन की प्रामाणिकता’ है।
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मीटिंग में मौजूद सभी सहभागियों ने कई तरह के सवाल उठाए, जैसे जमीन की दस्तावेज में महिलाओं का हक कब मंजूर होगा, कब सेक्स वर्कर जैसे हाशिये पर रह रहे समुदाय को मुख्यधारा में शामिल किया जाएगा और सरकार महिलाओं और बच्चों के हक की रक्षा के लिए क्या करेगी? खाद्य सुरक्षा कानून के तहत मातृत्व अवकाश के अधिकारों को गारंटी देने और क्रेच को संस्थागत चाइल्ड केअर के रूप में शामिल करने के मुद्दे भी उठाए गए।

अपने समापन भाषण में रश्मि सिंह (नेशनल कन्वेनर ऑफ द नेशनल फॉरम फॉर एक्शन ऑन कनवर्जन्स) ने जोर डाला कि सबसे बड़ी चिंता योजनाओं और कार्यक्रमों की कमी नहीं है, बल्कि हाशिये पर रह रही आबादी और वंचित जनसंख्या तक न पहुंच पाना की असमर्थता है और यह सबको साथ लेकर चलने की व्यवस्था से ही दूर हो पाएगी। इस व्यवस्था को भागीदारी की जरूरत होगी, क्योंकि नई सरकार अकेले हाशिये पर रह रहे समुदायों तक पहुंचने में सफल नहीं हो सकती। ऐसे में, इस तरह के सम्मेलन न केवल सरकार को प्रक्रिया आसान बनाने में मददगार होगा, बल्कि महिलाओं को सशक्त बनाएगा, और जरूरतमंदों तक पहुंच को पक्का करेगा। इस तरह की प्रक्रिया में सामाजिक सामंजस्य बढ़ेगा, क्योंकि हरेक हितधारकों एक-दूसरे की सुनेंगे।

अंतत: वे सरकार से आग्रह करती हैं कि एक ही खिड़की वाले तंत्र को वह अपनाए, जो कि फिलहाल राजस्थान, बिहार, दिल्ली, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और महाराष्ट्र में हाशिये पर रह रही महिलाओं तक पहुंचने के लिए लागू है, ताकि सभी हितधारकों के लिए यह फलीभूत हो। सभी वक्ताओं ने वीवी गिरी की श्रम आंदोलन में उनकी भूमिका और कामगारों के अधिकारों के लिए उनके अथक काम को याद किया। इस अवसर पर अलग अलग सामाजिक क्षेत्रों से जुड़े विशेषज्ञ, सीएसओ, राजनीतिज्ञ आदि भी मौजूद थे।

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