फर्ज करें कि पंद्रह वर्ष की आयु में कपड़ा बेचने वाला बालक क्या देश के सबसे बड़े और प्रतिष्ठित घराने के अखबार का समूह संपादक बन सकता है? फर्ज करें कि हिन्दी की प्रिंट पत्रकारिता में कोई व्यक्ति कितनी उम्र में पत्रकारिता में आता है या फिर कितनी उम्र में कोई ख्यातिप्राप्त अखबार के किसी संस्करण का संपादक हो सकता है।
यदि ज्यादा दिमाग पर जोर न डालें तो आप यह सोचकर हैरत में रह सकते हैं कि महज 24 वर्ष की आयु में एक शख्स 'आज' अखबार का संपादक बनता है और फिर संपादक के तौर पर पहले 'आज', फिर 'आज तक', 'अमर उजाला' और फिर 'हिन्दुस्तान' का समूह संपादक बन जाता है। तीस साल से लगातार उनकी जिंदगी संपादक की कुर्सी पर बैठे-बैठे ही बीती है। यह नाम कोई और नहीं, बल्कि शशि शेखर का है।
सामान्य कद-काठी के शशि शेखर दिल्ली के दिल यानी कनाट प्लेस स्थित हिन्दुस्तान टाइम्स की 22 मंजिल वाली बिल्डिंग के दूसरे तल पर अपने ऑफिस में जब बैठे होते हैं तो उनका एक हाथ मोबाइल पर होता है व दूसरा हाथ खबरों को ढूंढते रिमोट पर रहता है और हर पल न्यूज चैनल बदलता रहता है। एक ओर जहां वे सभी रिपोर्टर और प्रभारियों के साथ खबरों को लेकर सीधे संपर्क में होते हैं, वहीं न्यूज चैनलों को खंगालते वक्त हर खबर पर नजर रहती है कि कोई खबर छूट तो नहीं रही। पिछले तीस वर्षों से सक्रिय संपादक की भूमिका निभा रहे शशिशेखर के साथ काम करने वाले हर शख्स को आश्चर्य होता है कि क्या इन्हें काम करने से थकान नहीं होती। वे जहां भी रहे, अखबार को बुलंदी पर पहुंचाया, पत्रकारों के बीच खामोशी के साथ काम किया और खबरों पर उनकी पैनी नजर पर कोई सवाल तो कर ही नहीं सकता।
पूरी तरह स्वनिर्मित शशिशेखर जहां भी रहे, दिल से रहे, विश्वास और ईमानदारी के साथ रहे। खुद सर्वोत्तम दिया और साथियों को बेस्ट देने के लिए प्रेरित किया। बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी से प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व विषय से एमए तक की शिक्षा ग्रहण करने वाले शशिशेखर अपने मातहत की क्षमताओं को बखूबी समझते हैं और उनका प्रयोग 'आज', 'अमर उजाला' और 'हिन्दुस्तान' में जमकर देखने को मिला। खबरों के इस खेल में उनकी स्पष्ट सोच है और उन्होंने कभी एक इंटरव्यू में कहा था कि खबर का मूल तत्व सत्य होता है। मिलावट करते हैं तो स्टोरी बनती है। हम लोग सत्य के संधान के व्यवसाय में हैं। वे कड़ी मेहनत, दूरदृष्टि, पक्का इरादा और अनुशासन को सफलता का मूल मंत्र मानते हैं। (मीडिया विमर्श में विनीत उत्पल)