Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

हीरो और आदर्श दो अलग-अलग शब्द हैं-संजय द्विवेदी

-विनीत उप्पल

हमें फॉलो करें हीरो और आदर्श दो अलग-अलग शब्द हैं-संजय द्विवेदी
, गुरुवार, 24 जुलाई 2014 (13:44 IST)
PR
पिछले आठ वर्षों से नियमित तौर पर कोई त्रैमासिक पत्रिका निकालना काफी गंभीर कार्य है। मीडिया के बाजारवाद के इस दौर में 'मीडिया विमर्श' जैसी पत्रिका निकालना काफी चुनौतीभरा कार्य है क्योंकि हर अंक किसी विषय पर केंद्रित होना और उसी विषय पर तमाम लेखों का संकलन संजय द्विवेदी जैसा शख्स ही कर सकता है। यही कारण है कि मीडिया विमर्श का हर अंक संग्रहणीय होता है। फिलहाल वह भोपाल स्थित माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता और जनसंचार विश्वविद्यालय के जनसंचार विभाग के अध्यक्ष हैं। मीडिया विमर्श के आठ साल पूरे होने पर कार्यकारी संपादक संजय द्विवेदी से बातचीत-

* मार्च-जून, 2014 अंक के जरिए आपने हिन्दी मीडिया के हीरो की खोज की है? क्या वाकई ये हीरो हैं?
मैं यहां स्पष्ट कर दूं कि वाकई ये हिन्दी मीडिया के हीरो हैं। हालांकि यदि आप यहां आदर्श की बात करेंगे तो मेरा मानना है कि आदर्श अलग चीज है और हीरो अलग। हीरो दलाल भी हो सकता है, खलनायक भी और जोकर भी। मैं इस बात से इत्तेफाक रखता हूं कि इनमें कई नाम हिन्दी पत्रकारिता के आदर्श नहीं हैं। इसलिए मैंने कवर पर नाम दिया हिंदी पत्रकारित के हीरो न कि हिन्दी पत्रकारिता के आदर्श। मेरा सोचना यह है कि हीरो वे हैं जो हिन्दी पत्रकारिता के नाम पर जाने-पहचाने जाते हैं। हीरो का मतलब विलेन भी होता है। जैसे डर फिल्म में शाहरुख खान हीरो होते हुए भी विलेन का काम करता है। दूर अंचल में कई पत्रकार ऐसे हैं, जिन्होंने आदर्श काम किया है लेकिन वे हीरो नहीं हैं क्योंकि उन्हें कोई पहचानता तक नहीं है। झारखंड में हो सकता है कि कोई तपस्वी पत्रकार बैठा हो, लेकिन लोग जानते हैं हरिवंश को। यह आदर्शों का खेल नहीं है। यह लिस्ट अच्छे लोगों की श्रृंखला नहीं है। हीरो के लिए आदर्श आवश्यक नहीं है। कुछ हीरो आदर्श होते हैं लेकिन आदर्श हीरो नहीं होते। हीरो का मतलब जो चेहरा हिन्दी मीडिया के नाम पर दिखता है और बिकता है।

* 'मीडिया विमर्श" के प्रकाशन का विचार कैसे आया?
मन में था कि मीडिया की कोई ऐसी पत्रिका हो तो जो मीडिया के कार्य को लेकर बातचीत करे। उस वक्त तक जो प्रकाशन थे, वे सरकारी क्षेत्र में थे और उनकी सीमाएं थीं और वे खुलकर बात नहीं कर पाते थे। ऐसी स्थिति में मेरे मन में आया कि ऐसा कोई स्वतंत्र मंच बने, जहां सब तरह की धाराओं से से जुड़े लोग मंच पर आएं। यहां मीडिया को लेकर चिंतन और आत्मचिंतन, दोनों हों। जिस समय शुरू किया था, उस समय यह नहीं सोचा था कि यह पत्रिका इतना लंबा समय तय करेगी।

* इसके प्रकाशन में किस तरह की समस्या का सामना करना पड़ा?
हर अंक के लिए सामग्री संकलन सबसे बड़ी समस्या है। लोग लिखने-भेजने के लिए तैयार रहते हैं लेकिन वे अपने मनचाहे विषयों पर लिखकर ही भेजते हैं और चाहते हैं कि उसको उसी तरह छाप दिया जाए। लेकिन हम लोग एक विषय तय करके पूरा का पूरा अंक प्लान करते हैं। ऐसे में सामग्री संकलन में जरूर समस्या आती है। अभी तक तो सफलता मिली हैं और आगे देखते हैं क्या होता है।

* मीडिया विमर्श को आप पत्रिका मानते हैं या शोध पत्रिका?
मैं कभी 'मीडिया विमर्श' को शोध पत्रिका बनाना नहीं चाहता और मैं इसे शोध पत्रिका मानता भी नहीं। शोध पत्रिका का थोड़ा अलग काम होता है। इस पत्रिका का लक्ष्य मीडिया की सामान्य विषयों पर बातचीत करनी है। मैं इस पत्रिका को गंभीरता का ताना-बाना देना भी नहीं चाहता। यह पत्रिका मुख्य तौर पर मेनस्ट्रीम जर्नलिज्म के लिए है। मीडिया में आने वाले नए छात्रों के लिए है। मीडिया के जो प्राध्यापक हैं, वे इसे पढ़ें। इसके पाठक लक्षित समूह हैं, जिनमें जर्नलिस्ट, मीडिया के छात्र हैं और मीडिया के प्राध्यापक शामिल हैं। तीसरा कोई इसका लक्षित समूह नहीं है। कभी-कभी हम शोध पेपर प्रकाशित कर देते हैं लेकिन इसे शोध पत्रिका बनाना हमारा लक्ष्य नहीं है और लोगों के बीच में यह स्थापित हो, यह इरादा है।

* तीनों लक्षित समूह में आपको किनसे सबसे अधिक सहायता मिली?
इस कार्य के लिए मुझे तीनों वर्गों से काफी सहायता मिली लेकिन सही तौर पर देखें तो सबसे ज्यादा उदासीनता मीडिया प्राध्यापकों की ओर से मिली। मीडिया के प्राध्यापक यदि इस ओर गंभीर होते तो इसकी प्रसार संख्या काफी बढ़ सकती थी। मीडिया प्राध्यापकों में लिखने-पढ़ने में भी उदासीनता दिखती है और इस तरह की पत्रिका को प्रमोट करने में रुचि क्यों नहीं ले रहे हैं, यह मैं नहीं जानता, जबकि यह उन्हीं का मंच है। आज जब अधिकतर विश्वविद्यालयों में मीडिया की पढ़ाई हो रही है तो ऐसे में इस तरह की पत्रिका विभागों में आने चाहिए।

* आगे की क्या प्लानिंग है?
अभी तो यह पत्रिका त्रैमासिक है और इसे मासिक या द्विमासिक करने का प्रयास कर रहा हूं लेकिन लगता है कि यह करना तो आसान है पर जो क्वालिटी मेंटेन कर रहा हूं वह कर नहीं पाऊंगा।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi