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प्रियंका पांडेय

ND
तुम्हारी आँचल की छाँव में
करने को बाल-क्रंदन
तड़प रहा है मेरा मन।

तुम्हारी गोद में सिर रख
साड़ी के किनारे को भींचकर
जी भर कर कर लूँ मैं रुदन
तो हल्का हो जाए मेरा मन।

स्नेह भरी तुम्हारी एक थपकी
हटा दे मन का विषाद तम
हो जाए प्रफुल्लित यह जीवन
हट जाए मेरा एकाकीपन...।

जग के मोह में गुम हुआ
जाने किस लोभ मे लुप्त हुआ
भागदौड़ के झंझावत में
फँसकर रह जाता त्रसित ये मन।

मन को अब है एक ही आस
तुम्हारे चरणों में हो दुख का ह्रास,
जो रहे सदा आशीष तुम्हारा
कट जाएँ फिर सब कष्ट अपार।

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