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प्रियंका कौशल
मैने ईश्वर को देखा है
अपनी माँ के रूप में
लेते ही जनम इस दुनिया में जिसके आँचल की छाँव ने बचाया धूप से
वह माँ, जो उठ जाती है, सबके उठने के पहले ही,
रखती है सबकी जरूरत का ख्याल
उसे पता है कि बेटे को पंसद है सब्जी भिंडी की और बेटी को नहीं भाता चावल।
बेटे को जाना है विदेश पढ़ने और बेटी के लिए ढूंढना है सुशील वर
वह माँ जो जोड़ती है जिंदगी भर अपने बच्चों के लिए
अपनी खुशियों को कर देती है कुर्बान क्योंकि वह चाहती हैं कि खुश रहे उसके बच्चें सदा
बीमार होने पर बच्चों के, वह जागती है रात-रात भर
लेकिन खुद की बीमारी का अहसास भी नहीं होने देती।
शायद ईश्वर भी शरमा जाए, माँ के त्याग को देखकर
उसे होने लगे ईर्ष्या, कि वह क्यों वंचित है इस ममता से
लेकिन उसे भी तो पता है कि वह खुद मौजूद है माँ के रूप में
इस दुनिया को स्नेह से परिपूर्ण बनाने के लिए, यह जताने के लिए कि निस्वार्थ भी दे सकता है कोई मानव अंतहीन होकर.....
और हाँ शायद इसलिए कभी-कभी मुझे होता है अहसास कि यह माँ कोई मानव नहीं, बल्कि ईश्वर की अनुपम कृपा है, जो खुद इस रूप में आया है सामने, बचाने मुझे दुनिया की बुराइयों से.....