Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

आज का दिन बस मां के लिए

संस्मरण

हमें फॉलो करें आज का दिन बस मां के लिए

स्मृति आदित्य

वह 20 नवंबर की रात मेरी जिन्दगी की सबसे भयावह रात थी। उस रात मेरी माँ को ब्रेन हैमरेज हुआ था। एक नियमित दिनचर्या वाली‍, चुस्त फुर्तीली माँ के लिए हम बच्चों ने कभी इस स्थिति की कल्पना भी नहीं की थी। यूँ तो कोई संतान अपनी माँ के लिए ऐसी अनहोनी नहीं सोचती। लेकिन जिनकी माँ अस्वस्थ रहतीं हैं वे अक्सर एक अनाम आशंका और डर को दिल में लिए फिरते हैं

WD


लेकिन अपनी माँ की सेहत का सिर्फ हमें ही नहीं बल्कि खुद माँ को भी एक विशेष प्रकार का अभिमान था। प्रकांड ज्योतिषी पद्मभूषण पं. सूर्यनारायण व्यास की पुत्री होने के हर नियम का पालन करने वाली वे आयुर्वेद की ज्ञाता और परम धार्मिक महिला हैं।

सुबह 3 बजे उनका शीतल जल से स्नान हो जाता और कब वे महाकालेश्वर की भस्मार्ति में शामिल होने अकेले चल पड़ती इस बात से हम दीर्घसूत्री संतान हमेशा अनजान रहें। बस एक आवाज आती 'दरवाजा लगा लेना।' और हम तीनों भाई-बहन में से कोई एक उनींदा सा, धकियाता दरवाजे तक जाता और लौट आता। अक्सर यह श्रमसाध्य काम मेरे जिम्मे आता, घर में सबसे छोटी हूँ ना।


माँ भस्मार्ति से लौट आती तब भी हम तीन मधुर निद्रा में लीन रहते। अब माँ का जो रूप हमें देखने को मिलता वह किसी क्रोधित देवी के दर्शन से कतई कमतर नहीं होता। महाकाल का पवित्र हरिओम का जल, जिसमें देश भर की नदियों का जल मिला होता है। हमें एक अनोखे अंदाज में मिलता। यानी जिस जल को लोग बड़े ही आदर के साथ आचमन करते हैं हमें वो बिस्तर पर लगभग सन्नाते हुए मिलता। कौन कहता है माँ दयालु होती है (?) हमने तो अक्सर माँ के उस ताँबे के लोटे से बकायदा चोट ग्रहण करते हुए हरिओम का जल लिया था।

आनन-फानन में हम तीनों इधर-उधर बिखर जाते।

वे गुस्से में घर के ठाकुर जी(देवता) का चंदन घिसने लग जाती। फिर उनका हवन शुरू होता।फिर रंगोली, सूर्य आराधना और ना जाने क्या-क्या। जब तक आम की लकडि़यों के पावन धुएँ में गुगल, कपूर, जौ, तिल, घी, शकर, चावल की समिधा पड़ती हम भय के मारे घर को साफ-सुथरा करने में जुट जातें।

मुझे याद नहीं कि हम बच्चों ने कभी किसी चालीसा, मंत्र, श्लोक या आरती के लिए कोई पुस्तक कभी उठाई हो । हमें वो सब माँ की पूजा से ही सुन-सुन कर याद हुए।

हम जब तक नहा कर तैयार होते वे रसोई में अपना मोर्चा संभाल चुकी होती। नाश्ते का रिवाज तो इंदौर आने पर पता चला हमने अपने जीवन में सुबह का नाश्ता कभी नहीं किया। माँ हमेशा इसकी विरोधी रहीं हैं। वे 9. 30 पर सारा भोजन तैयार कर लेतीं और 10 बजे उनका किचन एकदम चमकता दिखाई देता। माँ और रिश्तेदारों के साथ खुद हमें भी इस बात का आश्चर्य है कि वो फुर्ती हम में क्यों नहीं दिखाई देती?


हाँ, बात उस रात की। उस दिन 20 नवंबर था। 21 नवंबर को मेरे भाई का जन्मदिन आता है। उनकी पोस्टिंग भोपाल में है। हर साल वो जन्मदिन माँ के साथ ही मनाते हैं। 20 तारीख को उनका फोन आया कि मैं भोपाल से रात में निकल रहा हूँ, कल माँ को लेकर इंदौर आ जाऊँगा ‍िफर हम सब साथ में जन्मदिन मनाएँगे। हम दोनो बहनें इंदौर स्थित आवास में सोने की तैयारी कर चुके थे। लगभग 20 मिनट बाद ही भाई का घबराया हुआ सा फोन आया कि तुम दोनों अभी उज्जैन के लिए निकलों।

कुछ समझ में नहीं आया एकदम हुआ क्या?

भाई ने कहा कि पापा का फोन आया था माँ बेहोश हो गई है उन्हें अस्पताल ले जा रहें हैं।

अरे, ऐसा कैसे हो सकता है? अभी-हाल तो माँ से भी बात हुई। रात को 10 बजे हम दोनों बहनें अकेली कैसे जा सकती थीं? उस समय मैं एक निजी मास कम्यूनिकेशन कॉलेज की प्रिंसिपल थी।

मैंने अपने डायरेक्टर डॉ. अनिल कुमार भदौरिया को फोन लगाया और लगभग रूँआसी होकर उन्हें अपनी उलझन बताई। मैं जीवन भर उनका अहसान और उनके हौंसला बँधाते शब्द नहीं भूलूँगी। उन्होंने कहा था- सबसे पहले तो घबराना छोड़ों क्योंकि आपकी माँ महाकालेश्वर की भक्त हैं उन्हें इस तरह से अचानक कभी कुछ नहीं हो सकता। दूसरा गाड़ी का इंतजाम तो मैं कर दूँगा लेकिन उज्जैन आप दोनों अकेली मत जाना।

मात्र 25 मिनट के अंदर कार हमारे दरवाजे पर थी। मगर हम अकेली नहीं जा सकती थीं । सो पड़ौसी प्रो. लक्ष्मण शिन्दे को नींद में से उठाया मुझे याद है उन्होंने बिना एक भी प्रश्न किए शाल लपेटी,स्लीपर पहनी और पत्नी ममता शिन्दे से अपना पर्स लेकर कार में बैठ गए। ये तो उज्जैन जा कर देखा कि वे जल्दबाजी में सिर्फ बनियान में ही चल पड़े थे।
रास्ते भर हम बहनें घर पर अपने रिश्तेदारों को मोबाइल लगा रहीं थीं।

उस रात मैंने हर देवी-देवता को याद किया था। दिल से रोते हुए मेरी एक ही प्रार्थना थीं कि बस माँ को कुछ ना हो।
मेरी माँ मेरे लिए क्या और कितना महत्व रखती है यह मैंने सही मायनों में उसी रात जाना था। उसी रात मैंने अपने उन सारे झगड़ों के लिए भगवान से माफी माँगीं थीं जो अक्सर बड़ी होने के बाद से मैं माँ से करती रही हूँ। कभी-कभी तो मैं इतना तीखा बोल जाती थी कि माँ कह उठती - माँ तो तुम लोगों के लिए डस्टबीन हुआ करती है, है ना? इधर-उधर का, ऑफिस का सारा कूड़ा-करकट डाल दो और फिर उम्मीद करों कि सब कुछ भूला दिया जाए।'

मैं तड़प उठी थी तब माँ की यह बात याद कर के। लेकिन मेरी माँ कभी हम बच्चों के आगे बेबस या असहाय नहीं हुई। बात ज्यादा आगे बढ़ने ही नहीं देती और गरज कर कह बैठती मुझे उन माँओं में शामिल मत करना जो अपने बच्चे की बद्तमीजी सहन करती है। इसी समय हाथ उठ जाए तो फिर मत कहना। '' और सचमुच मैं सहम उठती। क्या भरोसा , मार ही दें। वैसे उनकी आँखों में इतनी ताब हमेशा रही हैं कि नज़र मिलाने का साहस आज भी नहीं कर पाती।


बहरहाल, उस रात हम 2 बजे उज्जैन पहुँच पाए थे। दूसरे दिन इंदौर के बॉम्बे हॉस्पिटल में उनकी सर्जरी हुई। कुछ दिनों तक वे कोमा में रहीं। जब होश आया तो नितांत अबोध बच्चे की तरह हमने उन्हें पाया। धीरे-धीरे उनकी याददाश्त आई। फिर उन्होंने लिख-लिख कर अपनी बात कहना शुरू की। अस्पताल में कैसे सीढि़यों पर हम सोया करते थे। कैसे भँवरकुआँ से बॉम्बे अस्पताल के चक्कर लगाया करते थे। वो सब तो अब याद करने की हिम्मत ही नहीं है।

घर लौटने के बाद की जिन्दगी माँ के लिए अत्यंत त्रासद थीं। वे जो कल तक हमें 'हरिओम का जल' सन्ना कर उठाती
आज अपनी हर जरूरत के लिए हम पर निर्भर हो गईं थी।

लेकिन आज मैं दिल से सलाम करती हूँ माँ के ज़ज्बे को, उनकी इच्छाशक्ति को। एक बच्चे की तरह उन्होंने तीन महीने में करवट लेना शुरू किया। फिर हमारे सहारे वे बैठना सीखी ।‍ फिर खड़े होना और चलना। इस बीच हम तीनों भाई-बहन ने रिश्तों की परिभाषा सीखी। अपने-पराए का भेद समझा और माँ की महत्ता से गहराई से अवगत हुए।

लगभग दो साल माँ ने अपार कष्ट सहन किया। हमारे लिए फिर लौट आने की उनकी मंशा ने उन्हें असीम ऊर्जा से भर दिया। हम भाई-बहनों का रोम-रोम कृतज्ञ है ईश्वर का कि हमारी पुकार उन्होंने सुनी। वह फिल्मी संवाद जो हमारे लिए कभी मजाक का सबब होता था' मेरे पास माँ है'। आज दिल की गहराईयों से उसे महसूस करते हैं।

आज माँ उज्जैन में स्वस्थ और बेटे-बहू व पोते के साथ मस्त है। और सबसे महत्वपूर्ण आज भी वे सुबह जल्दी उठती हैं, महाकाल तो नहीं जा पाती लेकिन 4 बजे आकाश में जगमगाते सप्तऋषियों की पूजा अवश्य करती हैं। 5 बजे दहलीज पर उनकी रंगोली सज जाती है। सूर्य अर्घ्य के साथ हवन की समिधा आज भी उसी तरह पड़ती है।

माँ अगर इतने कष्टों के बाद हमारे साथ है तो सिर्फ और सिर्फ इसलिए कि वे हमें बेहद प्यार करती है। उसी प्यार ने उन्हें फिर लौट आने की ऊर्जा दी। ईश्वर से प्रार्थना है कि संसार की हर माँ अपनी संतान के साथ रहें।

हमारे साथ WhatsApp पर जुड़ने के लिए यहां क्लिक करें
Share this Story:

वेबदुनिया पर पढ़ें

समाचार बॉलीवुड ज्योतिष लाइफ स्‍टाइल धर्म-संसार महाभारत के किस्से रामायण की कहानियां रोचक और रोमांचक

Follow Webdunia Hindi