रोहित जैन
मैं रोया यहांं दूर देस, वहांं भीग गया तेरा आंंचल
तू रात को सोती उठ बैठी, हुई तेरे दिल में हलचल
जो इतनी दूर चला आया, ये कैसा प्यार तेरा है मांं
सब गम ऐसे दूर हुए, तेरा सर पर हाथ फिरा है मांं
जीवन का कैसा खेल है ये, मांं तुझसे दूर हुआ हूंं मैं
वक्त के हाथों की कठपुतली कैसा मजबूर हुआ हूंं मैं
जब भी मैं तन्हा होता हूंं, मांं तुझको गले लगाना है
भीड़ बहुत है दुनिया में तेरी बांंहों में आना है...।
जब भी मैं ठोकर खाता था, मांं तूने मुझे उठाया है
थक कर हार नहीं मानूंं ये तूने ही समझाया है
मैं आज जहांं भी पहुंंचा हूंं, मांं तेरे प्यार की शक्ति है
पर पहुंंचा मैं कितना दूर तू मेरी राहें तकती है
छोती-छोटी बातों पर मांं, मुझको ध्यान तू करती है
चौखट की हर आहट पर मुझको पहचान तू करती है
कैसे बंधन में जकड़ा हूंं, दो-चार दिनों आ पाता हूंं
बस देखती रहती है मुझको, आंंखों में नहीं समाता हूंं
तू चाहती है मुझको रोके, मुझे सदा पास रखे अपने
पर भेजती है तू ये कह केे, जा पूरे कर अपने सपने
अपने सपने भूल के मांं तू मेरे सपने जीती है
होठों से मुस्काती है दूरी के आंंसू पीती है
बस एक बार तू कह दे मांं, मैं पास तेरे रुक जाऊंंगा
गोद में तेरी सर होगा, मैं वापस कभी ना जाऊंंगा