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मार्मिक कहानी : अनाथ बच्चों का मदर्स डे सेलिब्रेशन

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डॉ.गरिमा संजय दुबे
आज आश्रम में बड़ी चहल पहल थी। कौशल्या जी और हिरेन भाई दौड़-दौड़ कर सारी तैयारियां करवा रहे थे। वैसे यह आयोजन कोई पहली बार नहीं हो रहा था उनके यहां, अक्सर ही कुछ दयालु, भावुक लोग अपने बच्चे का जन्मदिन अनाथाश्रम में मनाने आते और बच्चों में फल, कपड़े, मिठाई, खिलौने बांट जाते, साथ ही आर्थिक मदद भी कर जाते आश्रम की। 

कौशल्या जी, प्यार से बच्चे उन्हें यशोदा जीजी भी कहते। काम यशोदा वाला ही था उनका। बरसों संतान सुख से वंचित रहने पर अपनी इस पुश्तैनी जमीन पर यह अनाथ आश्रम खोल लिया था उन्होंने। बच्चों के दुख के आगे अपना दुख कम लगता उन्हें।

तभी हॉर्न बजा  और आश्रम के सब कर्मचारी और बच्चे गेट के पास स्वागत के लिए खड़े हो गए। सभी बच्चों ने नए कपड़े पहने थे। फिर शुरू हुआ जश्न, केक, गुब्बारे, चॉकलेट, मिठाई, खिलौने और गाना बजाना, बच्चों ने खूब मस्ती की और उस बच्चे को जिसका जन्मदिन था, ढेर सारी बधाइयां भी। 
 
आश्रम की परंपरानुसार एक गिफ्ट भी बच्चों के द्वारा दिलवाया गया। पार्टी खत्म हुई, सब अपने-अपने कमरे में सोने चले गए। कौशल्याजी और हिरेन भाई भी काम काज निपटाकर बच्चों के सर पर हाथ फेर सोने चले गए। कौशल्याजी को सारे बच्चे उदास से दिखे, कोई खिलौने और चॉकलेट, मि‍ठाई की तरफ देख भी नहीं रहा 
 
था। सब अपने-अपने बिस्तर पर गुमसुम पड़े थे। उन्होंने सोचा थक गए हैं शायद, लेकिन रात को बच्चों की खुसुर-फुसुर सुन कौशल्या जी की नींद खुल गई । 
 
दबे कदमों से जा के देखा तो सारे बच्चे राजू, जो कि आश्रम का सबसे बड़ा, समझदार और पहला बच्चा था, के पास बैठे सिसक रहे थे और राजू उनको समझा रहा था।
  
छ: साल का गोलू बोला - "राजू भइया देखा था आपने वह बच्चा कैसे अपनी मम्मी के हाथ पकड़ कर नाच रहा था। उसके मम्मी- पापा कैसे उसे लाड़ कर रहे थे 
 
ना !" सात साल के पप्पू ने कहा - "राजू भइया हमारे मम्मी पापा क्यों नहीं है? कहां चले गए हमें छोड़ कर ? अगर आज होते तो हमें भी ऐसे ही लाड़ करते ना ?
 
नन्हा चुन्नू बोला- "सबकी मां ऐसे ही होती है क्या प्यारी-प्यारी, कैसे उसके गाल पर पप्पी लगा रही थीी न वोआठ साल के नानू ने उसे जवाब देते हुए कहा - "हां  ऐसी ही होती है प्यारी प्यारी "।
 
चुन्नू ने उसे धौल जमाते हुए कहा -  "जा जा तुझे बड़ा पता है जैसे तूने तेरी मां को देखा है”।
 
नानू बुझ-सा गया लेकिन बोला - "मेरे दोस्त है ना स्कूल में, पेरेंट्स मीटिंग में आते हैं सबके मम्मी-पापा साथ में। एक बार मैंने उससे पूछा था तो उसने बताया कि मां बहुत प्यार करती है। हाथ से खाना खिलाती है, नहलाती है, अपने से चिपका कर सुलाती है। पापा उसके साथ खेलते हैं, वो घूमने-फिरने जाते हैं रात को। वो दोनों के बीच में सोता है"।
 
सब बच्चे उसकी बात ऐसे सुन रहे थे जैसे नानू के दोस्त की जगह वे खुद अपने मां-बाबा के साथ हों। यह देख कौशल्याजी की रुलाई फुट पड़ी। मुंह में पल्लू भर वे वहां से चली गई। तभी अर्जुन बोला -" हां राजू भइया एक दिन अपने आश्रम के पीछे रहने वाली आंटी औेर उनके बच्चे को भी मैंने साथ खेलते देखा, मैंने एक दिन झांक-झांक कर उनका घर भी देख लिया था, घर ऐसा ही होता होगा ना ?
 
राजू चुप था। क्या बोलता, कैसे समझाता, जब आज तक अपने आप को समझा नहीं पाया, १५ साल पहले कोई इसी चौखट पर छोड़ गया था उसे। क्यों ? नहीं जानता। तब से यही घर और यही मां-बाबा। उसके बाद कितने ही बच्चे आए, कोई झाड़ियों में मिला, कोई नाली में, कुछ के मां-बाप किसी दुर्घटना में खत्म हो गए।

हर एक की अलग कहानी, लेकिन सबका साझा दुख। मां की याद, जो हर दिन झुलसा जाती है। जिन्होंने मां को देखा उन्हें भी, जिन्होंने नहीं देखा उन्हें भी। हर बार किसी बच्चे को उसकी मां के साथ देखकर मन जाने कैसा-कैसा हो जाता है बता नहीं सकता। 
 
बच्चों के बुझे हुए चेहरे देख वह उन्हें सांत्वना देता हुआ बोला, “चलो-चलो, बेफाल्तू में दिमाग मत खाओ। घर, मां क्या लगा रखा है ? क्या यह घर नहीं है, देखो पीछे वाली आंटी के घर से ज्यादा कमरे हैं। तभी उछलती कूदती गुड्डी बोली - “कल हमारे स्कूल में मदर्स डे मनाया था, कल रविवार है न तो दो दिन पहले ही मना लिया खूब मजा आया।” 
 
राजू के दिमाग में कुछ कौंधा, उछलते हुए बोला- “हम भी मदर्स डे मनाएंगे” ,
सब बच्चे एक साथ बोले " लेकिन हमारी मां तो है ही नहीं "
 
राजू बोल- "क्यों यशोदा जीजी नहीं है क्या हमारी मां, क्यों चुन्नू सबसे छुपा कर तेरे लिए मलाई कौन रखता है ? क्यों गुड्डी तेरे बीमार होने पर रात-रात भर तेरे सिरहाने कौन बैठता है ? चोट लगने पर कौन माथा सहलाता  है ? कौन मन पसंद की चीजें बारी-बारी से बनाता है ? रूठने पर कौन मनाता है ? रात को कहानी, लोरी कौन सुनाता है ? पढ़ाई में मदद कौन करता है ? घूमने कौन ले जाता है ? बोलो बोलो, मां  भी तो यही सब करती है।
 
सब बच्चे खुशी से बोले - "यशोदा जीजी और हिरेन दादा और कौन "हां-हां राजू भइया हमारे भी मां-बाबा हैं, हमारी भी मां है”, अचानक सब के चेहरे चमक उठे।
 
उनके आश्रम कृष्ण जन्म ही मनता था और कृष्ण लीला होती थी। इस बार बच्चों ने सोच लिया कि हम कल यशोदा मां को मदर्स डे विश करेंगे। राजू ने हंसते हुए कहा - “सुबह जल्दी उठ जाना”, सुबह की उत्सुकता में बच्चे अपना दर्द भूल मीठी नींद में सो गए।
 
यशोदा जीजी का रो-रो कर बुरा हाल था, हर जन्मदिन जो उनके यहां मनाया जाता है, वह बच्चों के दर्द को जिंदा कर देता है। यह वह क्यों नहीं सोच पाई? उन्हें याद आया कि इस आश्रम में हर बच्चे के साथ वह उस बच्चे से ज्यादा रोईं है। बच्चे की तड़फ, उसकी असहायता, उसकी आंखों में अपने को तलाशती बेचैनी, बच्चे का गुमसुम उदास, सहमा-सा चुप-चुप चेहरा और तकलीफ को बयान न कर पाने की मजबूरी में उसका बिलखना देख उनका ह्रदय चीत्कार उठता, वे हाथ जोड़ विधाता से कहती - "हे ईश्वर सब छीन लेना किसी से, लेकिन मां की गोद किसी बच्चे मत छीनना।" बच्चों में ही अपनी संतान की छवि देख वे तृप्त हो जातीं। वे और हिरेन भाई मां-बाबा बनने का प्रयास करते ।
 
सुबह उठते ही बच्चों के कमरे में पहुंची, सोए हुए मासूमों को देख दिल भर आया। तभी बाहर से आश्रम की सहयोगी ने आकर बताया कि– “कोई समाज सेवी संस्था का फोन है। आश्रम में मदर्स डे मनाना चाह रही है, सुनकर उनका मुंह विकृत हो गया –“अनाथाश्रम में मदर्स डे”। उठकर बाहर गईं -  "क्षमा कीजिए ,आपका उत्सव मेरे बच्चों को दुखी कर देगा, आप आर्थिक मदद ही कर सकें तो.......।"

फोन रख कर वे ऑफिस की तरफ चली गईं, जहां हिरेन भाई को उन्होंने रात वाली बात बता कर जन्मदिन मनाना बंद करने का नोटिस निकालने को कहा ।
  
बच्चे फुर्ती से उठ खड़े हुए। अपनी अलमारी में से जो भी रंग कूची, मोती, सिक्के, चमक, लड़ियां रिबन थी, निकाल लाए। राजू पहले ही तैयार बैठा था, सबने मिल कर एक बड़ा-सा कार्ड बनाया और उस पर लिख दिया- ''हमारी मां यशोदा मां''। एक दूसरे से छुपा कर रखी चॉकलेट निकाली तो सब एक दूसरे के छुपे खजाने को देख हंसने लगे। उधर यशोदाजी हैरान थी कि रविवार को देर से उठने वाले नन्हे शैतान आज इतनी सुबह कैसे, दरवाजा भी अंदर से बंद है। 
 
तभी दरवाजा खुला और वे क्या देखती है नन्हे-नन्हे हाथों में एक बड़ा-सा कार्ड थामे बच्चे चले आ रहे हैं। आंखों में आ गए आंसुओं की वजह से कार्ड पर क्या लिखा है, वे देख नहीं पाई। लेकिन उन मासूम आंखों में क्या लिखा था उसे पढ़ने के लिए किसी भाषा की जरूरत नहीं थी। उन्होंने दौड़ कर बच्चों को गले लगा लिया और उन्हें चूमने लगी। दोनों तरफ कई जोड़ी आंखों से बहते आंसुओं ने मन का विषाद धो डाला था।

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