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नहीं भूल सकता मां का वह सख्त लेकिन समर्पित रूप

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जितेन्द्र मुछाल

मदर्स डे संस्मरण
जितेंद्र मुछाल, न्‍यूयॉर्क से .... 

जब मैं 12 साल का बालक था और अपनी किशोरावस्था की ओर कदम रख रहा था, तब दुर्भाग्यवश एक गंभीर बीमारी की चपेट में आ गया था। लगातार छ: माह तक मैं बिस्‍तर पर ही रहा। मेरे अंदर का वह बालक अब चलना, कूदना या भागना भूल चुका था। भारी दवाइयां कई सारे साइड इफेक्‍ट्स लेकर आईं। मेरे घुटनों और कोहनियों के जोड़ इतने जम चुके थे कि वे अपना काम ठीक से नहीं कर पा रहे थे। इन छ: माहों में मेरे पूरे परिवार ने मेरी कितनी सेवा की, मैं अंदाज़ा भी नहीं लगा सकता, लेकिन मेरी मां ने मेरे लिए जो किया वह शब्‍दों से परे है। उन तमाम बातों में से केवल एक उदाहरण मैं आपसे साझा कर रहा हूं।



मेरी उंगलियों और पंजों को दोबारा लचीला बनाने के लिए डॉक्‍टरों ने केवल एक परामर्श दिया-दिन में दो बार टखनों के नीचे के पंजे और हाथ की हथेलियों को गर्म पिघले मोम से लगभग नहला देना। इसे समझने के लिए आप सोचिए कि किस तरह किसी जलती हुई मोमबत्‍ती से गिरते ही मोम किसी सतह पर तुरंत ही जम जाता है, चाहे वह हमारे हाथ पर गिरे या फिर किसी टेबल पर यह तुरंत ही जम जाता है। एक बार मोम गिरने पर यह जम जाता है और शरीर के हिस्‍से को अपने भीतर कैद कर लेता है।

तकरीबन 30 मिनट के बाद, जब इस मोम की पर्त को हटाया जाता है, तो इसके भीतर कैद शरीर के हिस्सों से काफी मात्रा में प्राकृतिक रूप से पसीना निकलना शुरु हो जाता है, जिससे कुछ समय के लिए शरीर के हिस्‍सों को नरमी या लचीलापन प्राप्‍त होता है।


लेकिन अब सवाल यह था कि बिल्‍ली के गले में घंटी कौन बांधेगा? यानी इस बालक को दिन में दो बार खौलता हुआ मोम कौन लगाएगा, जबकि वह चीखेगा, चिल्‍लाएगा या तड़पेगा? अस्‍पताल के सारे सपोर्ट स्‍टाफ ने ऐसा करने से मना कर दिया और परिवार के सारे सदस्‍यों ने भी। लेकिन मां हमेशा अपने बच्‍चे की भलाई के लिए तैयार रहती है, चाहे अपने खुद के हाथों से उसे कष्‍ट देना ही क्‍यों न हो।

जब मेरी मां मेरे हाथ और पैरों में खौलता हुआ मोम लगाती थीं। वह दृश्‍य इतना पीड़ादायक होता था कि कमरे का दरवाज़ा लगा दिया जाता था और सभी लोग कमरे से बाहर चले जाते थे, क्‍योंकि वे जलते हुए मोम से एक बच्‍चे को होने वाली पीड़ा को देख नहीं सकते थे। इस दौरान मैं चिल्‍लाता, रोता, और मां को क्‍या-क्‍या नहीं कहता। मुझे यकीन है कि मेरी मां अंदर से रोती थी, लेकिन मेरे सामने वो एक आत्‍मसंयमी और सख्‍त चेहरे के साथ पेश आती थी। इस मोम को लगाने का सिर्फ एक ही तरीका था, इसे पेंट ब्रश की सहायता के शरीर पर बार-बार लगाना। सुबह और शाम जब भी वह नियत समय आता था मैं सिर्फ यही आशा करता था कि मैं अपनी मां को देखूं भी नहीं क्‍योंकि मुझे मालूम था कि उनके आने से मुझे कितनी पीड़ा झेलनी पड़ेगी।

उन सेवाओं, आशीर्वाद और शुभकामनाओं के कारण मैं दोबारा उठ खड़ा हुआ और कुछ ही महीनों में दोबारा एक सामान्‍य जीवन जीने लगा। अब मैं उस बीमारी से मुक्‍त हो चुका था। उन सारी पीड़ाओं और तकलीफ की स्‍मृतियां आज धुंधला गई हैं। वो दिन और रातें अब मेरे लिए किसी बुरे सपने की तरह हैं। लेकिन एक बात आज भी बिल्‍कुल स्‍पष्‍ट है और वह है मेरी मां का अपने बेटे के लिए अगाध प्रेम और उनका मेरे भले के लिए समर्पण - जो अपने खुद के बेटे के कोमल हाथ और पैरों पर खौलता मोम लगाने के दौरान भी अपनी जगह से नहीं डिगा।

मां तुझे सलाम !!! अम्‍मा तुझे सलाम !!!

(मां, मैं तुझे सलाम करता हूं। प्‍यारी मां मैं तुझे नमन करता हूं और तेरे आगे सजदा करता हूं!)

(जीवन की सत्‍य घटना पर आधारित)

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