मदर्स डे पर यह कविता सोशल मीडिया पर आपको अलग-अलग नाम से मिलेगी लेकिन इसके असली रचनाकार प्रो. योगेश छिब्बर हैं, जो बधाई के सच्चे हकदार हैं। प्रस्तुत है रचना...
लेती नहीं दवाई अम्मा,
जोड़े पाई-पाई अम्मा।
दुःख थे पर्वत, राई अम्मा
हारी नहीं लड़ाई अम्मा।
इस दुनिया में सब मैले हैं
किस दुनिया से आई अम्मा।
दुनिया के सब रिश्ते ठंडे
गरमागर्म रजाई अम्मा।
जब भी कोई रिश्ता उधड़े
करती है तुरपाई अम्मा।
बाबू जी तनख़ा लाए बस
लेकिन बरक़त लाई अम्मा।
बाबूजी के पांव दबा कर
सब तीरथ हो आई अम्मा।
सभी साड़ियां छीज गई थीं
मगर नहीं कह पाई अम्मा।
अम्मा में से थोड़ी-थोड़ी
सबने रोज़ चुराई अम्मा।
घर में चूल्हे मत बांटो रे
देती रही दुहाई अम्मा।
बाबूजी बीमार पड़े जब
साथ-साथ मुरझाई अम्मा।
रोती है लेकिन छुप-छुप कर
बड़े सब्र की जाई अम्मा।
लड़ते-लड़ते, सहते-सहते,
रह गई एक तिहाई अम्मा।
बेटी की ससुराल रहे खुश
सब ज़ेवर दे आई अम्मा।
अम्मा से घर, घर लगता है
घर में घुली, समाई अम्मा।
बेटे की कुर्सी है ऊंची,
पर उसकी ऊंचाई अम्मा।
दर्द बड़ा हो या छोटा हो
याद हमेशा आई अम्मा।
घर के शगुन सभी अम्मा से,
है घर की शहनाई अम्मा।
सभी पराये हो जाते हैं,